‘नई कविता’ की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
नई कविता की विशेषताएँ
1. नई कविता में मानवतावाद – नई कविता की मूल प्रेरणा मानव है इसकी संवेदना मानव मात्र तक व्याप्त है आज जब विश्व में शोषण की प्रवृत्ति का प्राधान्य है, वर्ग समाज का अभिशाप तीव्रता की ओर है। जनता की मुसीबत भेदन और चीत्कार से मदोन्मत राष्ट्र सौदेबाजी की ताक में ऐसे वर्ग संघर्ष एवं शोषण के युग में मानव के प्रति अपार सम्मान जागृत करना नई कविता की प्रमुख प्रवृत्ति है। नई कविता मानवता और कविता की अनेक तरंगें उठीं। नूतन यथार्थ आत्माभिव्यक्ति तथा व्यक्ति की सही स्वतन्त्र चेतनावाद का रूप ग्रहण कर लेती है।”
नई कविता में मानव मात्र के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण जगाता हुआ कवि कहता है-
“जीवन है कुछ इतना विराट इतना व्यापक
उसमें है सबके लिए जगह सबका महत्व।”
2. नई कविता के आस्था के स्वर- आस्था नई कविता की आधारभूति है। नई कविता का साध्य नया मानव और मानव का यथार्थ जीवन है। अधर आशा लौ की भाँति मानव को जीवित रखने की एक मात्र सम्बल है।
द्वितीय सप्तक के कवियों में आस्था और विश्वास के स्वर तीव्रता से झंकृत होते हैं। आधुनिक विखराव और अनास्था पर विजय होने के स्वर देखिये-
“मनुज चल सके इसलिए तो अन्धकार में सूर्य चल रहा।
जहाँ गया मनु-पुत्र नदी ने जल पहुंचाया।
रत्न भरा धरा ने मानव को शत शत हीरों से लादा।
मनुज चला तो सृष्टि चली, अन्यथा पूर्व थी प्रकृति मात्र ।”
आस्था और विश्वास के स्वर प्रस्तुत उदाहरण में भी दृष्टव्य हैं-
“कल्पने निराशिनी,
मगर सुनो नवीन स्वर
सुनो सुनो नवीन स्वर
विशाल वक्ष ठोंक कर
सुदूर भूमि में तुम्हें जवान कवि पुकारता
लौट बन्धन तोड़कर
बेड़ियाँ झंझोड़कर
नवीन राष्ट्र की नवीन कल्पना संवारता।”
3. अनुभूति की सच्चाई या संवेदना की कविता- नई कविता जीवन के भोगे हुए प्रत्येक गहरे क्षण को आन्तरिकता के साथ ग्रहण करना चाहती है। क्षणों की अनुभूतियों को प्रस्तुत करने वाली कविताएँ लघु होने पर भी प्रभावकारी व्यंजना करने में सक्षम है। नये कवि को आज का मानव गुण-दोषों, पाप-पुण्यों एवं राग द्वेषों के साथ स्वीकार्य है।
“मैं जिन्दगी का मुसाफिर हूँ, उस बेलोस जिन्दगी का जो अपनी लाश की
पसलियों पर पाँव रखकर ठहाके मारती है।
और फिर दौड़कर
अपने ही अजात शिशु के कपोलों को चूम लेती है।
4. नई कविता में लघु मानव की प्रतिष्ठा- लघु मानव नई कविता की एक शोध है। लघु मानव की शोचनीय अभिव्यक्ति पर व्यय होकर ‘नई कविता के प्रतिमान में लक्ष्मीकान्त वर्मा ‘लघु मानव की लघुता को व्यापक महता के सन्दर्भों में संलग्न किया है। वे ‘लघु मानव’ के लघु परिवेश और लघु सीमा को पुन्स्वत्वहीन और निष्क्रिय मानते हैं।
‘लघु मानव’ को परिभाषित करते हुए ‘शिवदान सिंह चौहान ने कहा है कि- “एक परिवेश गलित व्यक्तित्वहीन, अनैतिक, क्षुद्र, यथार्थवादी, चिड़चिड़ा कुण्ठित, निराशाग्रस्त, सैक्स का पुजारी, खोखली हँसी और मिथ्या रोब का मुखौटा लगाए रहने वाला मानव मूल्यहीन प्राणी है। नयी कविता का साहित्यकार कुण्ठाजन्य असमर्थता का आभास देता हुआ कहता है-
“अपनी कुण्ठाओं की
दीवारों में बन्दी
मै घुटता हूँ।”
लघु मानव के स्वरूप की प्रतिष्ठा कवि के स्वरों में अवलोक्य है-
“और तब मेरी अपनी लघु स्थिति में
वह सब कुछ है जो ऋगु है पावन है मंगल है शुभ है।
किन्तु वह भी है, गौरव है, गलित, वीभत्स, कुरूप अपरूप है।
5. नई कविता में क्षणवाद- समाज की ‘लघु मानव’ को अपना मापदण्ड बना कर चलती है। युग चेतना की अपेक्षा अनुभूत यथार्थ को भी महत्व देती है तथा समय की इकाई क्षण को भी पूरी गरिमा से स्वीकार करती है। जीवन के प्रत्येक क्षण में कोई न कोई अनुभूति जागती है।
क्षण का बोध आधुनिक मानव के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है। क्षण में जीने और क्षण के स्वीकार करने में ही उसका जीव है।
क्षण की महत्ता के प्रति आज का कवि अत्यन्त सजग है-
“एक क्षण क्षण में प्रवहमान व्याप्त सम्पूर्णता ।
इसमें कदापि बड़ा नहीं था महाम्भुविधि जो प्रिया था अगत्स्य ने।”
6. नई कविता में व्यंग्यात्मकता – नया कवि स्वातन्त्र्य युग के समाज का एक सर्वाधिक प्रबुद्ध प्राणी है। समाज की वेदना और उसके यथार्थ को अनुभूति के स्तर पर जितनी सजीवता से भोगता, पिसता, घुटता और टूटता है उतनी ही अधिक उसकी वाणी व्यंग्यपूर्ण बनती जा रही है।
सामाजिक वैषम्य एवं रूढ़िवादी प्रवृत्तियों पर भी कवि ने तीखे व्यंग्य किये हैं। ‘हितोपदेश: चार पात्र’ में आधुनिक आडम्बरी सभ्यता पर प्रहार है। उदाहरणस्वरूप-
“अजीब यह बस्ती है
हर रस्सी यहाँ साँप हो जाती है।
और हर साँप एक उलझी रस्सी-सा
मुरदा, महज मुरदा हो जाता है।”
सरकारी अफसरों पर कवि ने कितना करारा व्यंग्य किया है उसका कुछ अंश दृष्टव्य है-
“तुम गरीब पैदा हुए थे, बडी मुश्किल से पढ़ा-लिखा
पाँच साल पहले का तुम्हारा गिड़गिडाता चेहरा मुझे आज भी याद है।”
नई कविता का व्यंग्य एक विशिष्ट उपलब्धि के रूप में स्वीकार किया गया है।
7. नई कविता में आत्म मुक्ति- नई कविता में कवि का दर्शन आत्म मुक्ति का है। ये मुक्ति लालसा जीवन का लक्षण है। नई कविता अपने को छोटे-बड़े, देशी-विदेशी साहित्य एवं सामूहिक गुटबन्दी से बचाती हुई स्वयं के मुक्ति दर्शन में निमग्न है। डॉ० नगेन्द्र के अनुसार- “साहित्य अपने शुद्ध रूप में अहग का विसर्जन है।”
नई कविता का मानव सारे दर्शन एवं साहित्यिक वादों से मुक्त है।
8. प्रखर बौद्धिकता – नई कविता का व्यक्ति बौद्धिक चेतना का हामी है। नया कवि अपने प्रबुद्ध व्यक्तित्व को समाज में वैशिष्ट न दिला पाने के कारण वह अत्यधिक कटु बन जाता है। सामाजिक विसंगतियाँ उसके चेतन व्यक्तित्व को इतना जागृत बना देती है कि वह अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए जीना चाहता है। नई कविता के सभी कवियों में बौद्धिकता के प्रति रुझान दृष्टिगत होता है।
9. नवीनता और परम्परा के प्रति आग्रह- नई कविता नवीनता की प्रवृत्ति को लेकर अग्रसर हुई है। नई कविता परम्परा और नैतिकता के राजमार्ग से हटकर स्वनिर्मित पथ पर चलने में संकल्पबद्ध है। नई कविता का जन्म ही धर्म निरपेक्ष लोकतन्त्र में होने के कारण नई पीढ़ी के समन्वित क्रान्तिकारी भावों को समाहित किए हुए हैं। नई कविता का कवि अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सजग है। नये कवि के लिए परम्पराएँ सदा से त्याज्य रही है। नई कविता परम्परा के इस दाय को स्वीकार करती किन्तु नवीन युग के परिवेश से कदम मिलाकर जो मूल्य नहीं चल पाते उसके प्रति आक्रोश भी नये साहित्य में अभिव्यक्त. होता है। पुरानी नैतिकता के ढोते ढोते कवि कितना टूट चुका है उसी के शब्दों में-
“मैं अधकुचला सिद्धार्थ हूँ
जिसने करी न कभी कोई यशोधरा
जिसका दिव्य स्वप्न
अमिताभ होने के पूर्व ही
नाली में जा गिरा।”
10. विषय और विधान की सूक्ष्मता- सौन्दर्य बोध के नये धरातल पर खड़े प्राचीन और रूढ़िगत मूल्यों के बहिष्कारक नये कवियों ने अनुद्घाटित संवेदनों अन्तर्दशाओं और विषयों को अपनी कविता में प्रमुखता दी है। नये विषयों की खोज, नूतनता, नये कवियों को देश-विदेश से, सब स्रोतों से आकर्षक विषयों, नयी व्याख्याओं और नई उत्प्रेक्षाओं की ओर प्रेरित किया। फिर क्या था विदेशी लोक कथाएँ एवं अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की चहल पहल भी कविता का अंग और विषय बनी।
विषय की दृष्टि से भी नयी कविता का नयापन है। नया कवि किस प्रकार यन्त्र चालित वर्तमान व्यवस्था में निराश, खिन्न और विद्रूप हो रहे एक लिपिक का चित्रण करता है अवलोक्य है-
“भूल से मैं सिर छोड़ आया हूँ दफ्तर में
हाथ बस में ही टंगे रह गये
आँखें जरूर फाइलों में ही उलझ गई।
मुँह टेलीफोन से ही चिपटा सटा होगा
और पैर हो न हो क्यू में रह गये हैं-
तभी तो मैं आज घर आया हूँ विदेह।”
11. शिल्प विधान- नये भाव बोधों एवं नूतन शिल्प प्रयोगों के योग से निर्मित नयी कविता अपरिचित और नयी प्रतीत होती है। उसकी नवीनता आत्म साक्षात्कार उपलब्ध है। लक्ष्मीकान्त वर्मा के शब्दों में- ” आत्म-साक्षात्कार के कारण नई कविता शिल्प गत रूढ़ियों और प्रयोगों की अपेक्षा वस्तुगत अनुभूति की कुण्ठा रहित अभिव्यक्ति है। उसके भाव लोक के आयाम काफी फैल गये हैं। विषय वैविध्य ने जो अनुभूति के असंख्य द्वार खोले हैं, शिल्प के क्षेत्र में जो नई उपलब्धियाँ हैं उसे तो स्वीकार करना ही होगा।” नूतन प्रयोग माध्यमों से पुराने शिल्प बन्धनों को तोड़ती हुई नयी कविता अपने तथ्य नये-नये ढंग से व्यक्त करती रही हैं। नन्द दुलारे वाजपेयी ने नयी कविता में शिल्प पक्ष के सभी अंकों का अभूतपूर्व विकास देखकर प्रयोग शिल्पी काव्य कहा है।
(अ) बिम्व विधान- नयी कविता में स्पर्शजन्य अनुभूति की संवेदनीयता चलते फिरते स्पर्शो के बिम्ब में ध्वनित है। दृष्टव्य है-
“लिपटा रजाई में
मोटे तकिये में घर कविता की काफी
ठंडक से अकड़ी उंगलियों से कलम पकड़
मैंने इस जीवन की गली-गली नापी।”
अनुभूति से बिम्ब का निकट सम्बन्ध होने के कारण रूर बिम्ब, अनुभव बिम्ब, विचार बिम्ब, इन्द्रिय बिम्ब, मानस बिम्ब आदि सभी प्रकार के बिम्बों का चित्रण नई कविता में किया गया है।
(ब) प्रतीक बिम्ब- कवियों की वाणी जब अपने मनोभावों को स्वरूप देने में असमर्थ हो जाती है तब प्रतीकों का स्फुरण होता है। नई कविता में प्रतीक विचार हिन्दी कविता की नवीनतम उपलब्धि है। नई कविता में जहाँ नये प्रतीकों का निर्माण हुआ है। वहाँ परम्परागत रूढ़ प्रतीकों का सृजन भी हुआ है। नयी कविता के साहित्य में प्रतीकों के भेद- प्राकृतिक प्रतीक, सांस्कृतिक प्रतीक, धार्मिक प्रतीक, ऐतिहासिक प्रतीक, साहित्यिक प्रतीक, सैद्धान्तिक आदि सभी प्रकार के प्रतीकों को आधार बनाया है।
प्राकृतिक प्रतीक का सौन्दर्य प्रस्तुत उदाहरण में दृष्टव्य है-
“अर्चना के धूप-सी गोद में लहरा गई।”
प्रतीक का सौन्दर्य प्रस्तुत उदाहरण में भी अवलोक्य है-
रात मैंने एक स्वप्न देखा
मैंने देखा कि मेनका अस्पताल में नर्स हो गई है
और विश्वामित्र ट्यूशन कर रहे हैं।”
नई कविता को भाषा संक्रान्ति के सबसे कठिन दौर से गुजरना पड़ रहा है। नये कवियों के सामने सरलता और अर्थ है। रात दुरूहता दो धाराएँ हैं। कवियों ने सादगी और जन-भाषा का अपनी रचनाओं में प्रयोग किया है जैसे-
“भूल जाओ
कभी तुम सुन्दर थी।
इन फटे पपड़ाये अधरों पर कभी रस
छलक छलक पड़ता था।”
नई कविता ‘क्षण जीवी’ लघु मानवों की कविता है। इसलिए उसकी शैली में वर्णन, विवेचन और उद्बोधन शैलियों का अभाव है। नई कविता की शैली भावाभिव्यंजन और व्यंग्यात्मक है। नये कवियों ने मुक्तक छन्दों का प्रयोग किया है। मुक्तको के कुछ नये रूप प्रकाश में आये हैं इन्हें हम जापानी भाषा के हाइक छन्दों में लिखी गई हाइक कविता कह सकते हैं।
नई कविता ने बदलते हुए युग बोध के अनुरूप भाषा, शिल्प के क्षेत्र में नई खोज की है, परम्परा प्राप्त नये शब्दों में नया अर्थ भरा है, जीवन बोध एवं सौन्दर्य बोध से सम्बन्धित मुहावरों को स्थान दिया गया है-
“यह झकाझक रात
चाँदनी उजली कि सुई में पिरों लो ताग
हो रही ताजी सफेदी नये चूने से
पुत रहे घर द्वार ।”
इस प्रकार कविता में भाषा को उसके विशिष्ट सन्दर्भों में एक नया रूप नया जीवन प्रदान करने का सफल प्रयास हो रहा है, जिसके कारण भाषा की शक्ति, गहनता और आन्तरिकता का विस्तार हो रहा है। भाषा का स्वरूप निखर रहा है, भविष्य की कविता के लिए यह शुभ संकेत है।
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