नवजात शिशु के व्यक्तित्व एवं विशेषताओं पर लेख लिखिए।
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नवजात शिशु का व्यक्तित्व (Personality of Neonate)
नवजात शिशु के व्यक्तित्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) जन्म से ही नवजात शिशुओं में व्यक्तिगत विभेद- विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न नवजात शिशुओं के व्यक्तित्व का अध्ययन किया जिससे पता चला कि उनमें जन्म से ही व्यक्तिगत विभेद पाया जाता है। कुछ शिशु जन्म से ही शान्त प्रकृति के होते हैं तो कुछ झगड़ालू प्रकृति के होते हैं। जन्म से ही प्रत्येक शिशु में कुछ ऐसी विशेषतायें होती हैं जो उसके भावी व्यक्तिगत विकास की आधारशिलायें होती है। शर्ली का विचार है कि इन्हीं विशेषताओं का आधारभूत तत्वों के आधार पर उसके भावी व्यक्तित्व के शील गुणों का विकास होता है। बाद में वातावरण का जो प्रभाव पड़ता है वह इन्हीं मौलिक व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं के कारण सीमित हो जाता है।
(2) नवजात शिशुओं में पाये जाने वाले व्यक्तिगत विभेद के अनेक कारण हैं- नवजात शिशुओं में जो व्यक्तिगत विभेद पाया जाता है उसके अनेक कारण होते हैं जैसे माँ का स्वास्थ्य, माँ का स्वभाव, जन्म की परिस्थितियाँ, जन्म के समय आघात आदि। मनोविश्लेषणवादियों का विचार है कि ‘जन्म शिशु के लिए एक आघात होता है’ उनका कथन है कि माँ के गर्भ में शिशु पर्याप्त सुरक्षा तथा आराम अनुभव करता है। जन्म लेने पर माँ के गर्भ से शिशु का सम्बन्ध टूट जाता है और वह इस विस्तृत संसार में प्रवेश कर अनुरक्षा अनुभव करता है। परिणामस्वरूप उसमें चिन्ता आ जाती है जो कि फ्रायड, रैंक और रिबिल के अनुसार उसके सारे व्यक्तित्व के विकास पर प्रभाव डालती है, किन्तु डस्पर्ट, रुजा तथा प्रॉट ने उक्त मत का खण्डन करते हुए कहा है कि नवजात शिशु में इतनी चेतना नहीं होती है कि वह उस प्रकार चिन्ता या आघात की अनुभूति कर सके। कुछ भी हो नवजात शिशु में कुछ ऐसी जन्मजात विशेषताएँ निहित रहती है जो उसके भावी व्यक्तित्व के विकास में पर्याप्त योगदान देती हैं।
नवजात शिशु की विशेषताएँ
नवजात शिशु की कुछ अपनी विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं जो व्यक्ति की अन्य अवस्थाओं में दृष्टिगोचर नहीं होती हैं और न ही किसी पशु में पाई जाती हैं। ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) पराधीनता की अवस्था (Periods of Dependency)-
नवजात शिशु की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वह पराधीनता होता है। उसे अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों के अधीन रहना पड़ता है। किन्तु हम देखते हैं कि गाय का बछड़ा उत्पन्न होते ही छलाग भरने लगता है। मुर्गी का बच्चा पैदा होने के बाद चोंच मारना प्रारम्भ कर देता है। इसी प्रकार अन्य प्राणियों के बच्चों में उत्पन्न होने के बाद कुछ न कुछ आत्म-निर्भरता के गुण दिखाई देते है। वास्तव में नवजात शिशु का यह असहायपन व्यर्थ नहीं जाता है बल्कि उसके लिए यह समय विकास की सीढ़ी है जो कि आगे वाले जीवन के लिए उसे तैयार करने में सहायता प्रदान करती हैं।
(2) समायोजनशीलता की अवस्था (Periods of Adjustment)-
नवजात शिशु की दूसरी विशेषता है, इसमें समायोजनशीलता के गुण का पाया जाना। नवजात शिशु में नवीन वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करने की जितनी क्षमता होती हैं उतनी वयस्क में भी नहीं होती है। इस समायोजनशीलता का कारण यह है कि शिशु नैसर्गिक या उपार्जित आदतों के दास नहीं होते हैं बल्कि उस पर जैसे संस्कार डाले जायें वैसे वे बन जाते हैं।
(3) व्यक्तिगत विभिन्नता (Individual Difference)-
नवजात शिशु की तीसरी विशेषता यह है कि उसमें व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है। यह अपनी मुखाकृति, व्यवहार तथा मानसिक योग्यता में दूसरे शिशुओं से भिन्न होता है, किन्तु अन्य प्राणियों के बच्चों के व्यवहार में कोई अन्तर नहीं पाया जाता है। हम देखते हैं कि बन्दर और मुर्गी के सभी बच्चों का व्यवहार एक-सा होता है। इस प्रकार नवजात शिशु में जन्म से ही व्यक्तिगत विभिन्नता पाई जाती है।
(4) अपरिपक्वता (Immaturity)-
नवजात शिशु की चौथी विशेषता अपरिपक्वता है। क्योंकि मानव शिशु प्रकृति की एक ऐसी रचना है, जो जन्म के पश्चात् शीघ्रता से परिपक्वता प्राप्त नहीं करता है। नवजात शिशु जन्म के एक वर्ष बाद खड़ा होना सीख पाता है। अतः जन्म के बाद मानव शिशु अपरिपक्व होता है। धीरे-धीरे आयु वृद्धि के साथ-साथ वह परिपक्व होता जाता है। अत: नवजात शिशु अपरिक्व होता है।
(5) उत्तरोत्तर वृद्धि तथा विकास (Gradual Growth and Development)-
जन्म के समय सामान्य नवजात शिशु की लम्बाई लगभग 18 से 20 इंच तथा भार लगभग 6-7 पौण्ड होता है। लेकिन धीरे-धीरे अच्छे पोषण तथा उचित देखभाल के कारण लम्बाई और भार में वृद्धि करता जाता है।
नवजात शिशु के हाथ-पैर शरीर की तुलना में अपेक्षाकृत छोटे होते है, पलकें सूजी-सी दिखाई देती है। वह हमेशा सोता रहता है। केवल भूख लगने पर या पीड़ा होने पर या गीला हो जाने पर अपनी आँखे खोलता है। जब वह रोता है तो उसके मुँह से आवाज तो होती है किन्तु आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं। अत: जन्म के पश्चात् बच्चे की देखरेख की विशेष आवश्यकता होती है।
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