अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन करो।
अभिप्रेरणा की अनेक मान्यतायें तथा सिद्धान्त मनोवैज्ञानिकों ने स्थापित किए हैं। ये सिद्धान्त अपने ही ढंग से अभिप्रेरणा की व्याख्या करते हैं-
1. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त (Stimulus-Response Theory) – यह मत व्यवहारवादियों द्वारा प्रतिपादित किया गया है तथा अधिगम के सिद्धान्त का ही एक रूप है। इस सिद्धान्त के अनुसार मानव का समस्त व्यवहार शरीर द्वारा उद्दीपन के परिणामस्वरूप होने वाली अनुक्रिया है। इस मत के अनुसार, चेतन अचेतन में किसी प्रकार की अभिप्रेरणा की गुंजाइश नहीं है। इसमें मानसिकता (Mentality) के अस्तित्व का प्रश्न नहीं है एवं यह व्यवहार ही स्वयं में विशिष्ट अनुक्रिया है। इस प्रकार यह पूर्ण रूप से शुद्ध अनुवर्त (Reflexology) है।
यह मत संकुचित है और इसमें अनेक अनुभवों तथा तथ्यों की अवहेलना की गई है। उद्दीपनों द्वारा अनेक अनुक्रियाएँ होती हैं, किन्तु अनुक्रियाओं की इसमें व्याख्या नहीं की गई है।
2. शारीरिक (Physiological) सिद्धान्त – इस मत के अनुसार शरीर में अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। किसी कारण से शरीर में प्रतिक्रियाएँ (Reactions) भी होती हैं। किसी भी कार्य की प्रतिक्रिया होने से अभिप्रेरणा मूल में विद्यमान रहती है।
3. मूलप्रवृत्यात्मक (Instinct) सिद्धान्त – इस मत के अनुसार मानव व्यवहार जन्मजात मूलप्रवृत्तियों द्वारा संचालित होता है। विलयम मैक्डूगल (William McDougall) ने इस मत का प्रतिपादन किया। मूलप्रवृत्यात्मक प्रवृत्ति को यदि अभिप्रेरणा का आधार मान लिया जाए तो यह सिद्धान्त भी अधूरा है।
4. मनोविश्लेषणात्मक (Psycho-analysis) सिद्धान्त – इस मत के प्रतिपादक फ्रॉयड (Frued) के अनुसार, मानव व्यवहार को अचेतन, अर्द्धचेतन में व्याप्त इच्छाएँ ही अभिप्रेरित करती हैं। इनमें मूल प्रवृत्तियाँ भी अपना योग देती हैं। इस मत को सुखवादी (Hedonistic) भी कहा जाता है। जिस कार्य में मानव को सुख मिलता है, वह उसे ही करता है। फ्रॉयड का यह मत यौनेच्छा (Sex desires) पर आधारित है। ऐसे अनेक कार्य हैं, जो इस मत की पुष्टि के लिए पर्याप्त हैं। इस मत के विरोध में एक प्रश्न यह है कि जो कार्य नैतिक आचरण से (Moral conduct) अभिप्रेरित किया जाता है, वह सुख नहीं देता। अतः ऐसे कार्यों की कमी नहीं, जिनसे मनुष्य सुख नहीं पाता और उस वे करने पड़ते हैं।
5. ऐच्छिक (Voluntary) सिद्धान्त – यह मत सामान्यतः संकल्प (Volition) पर मुख्य बल देता है। इस मत के अनुसार मानव का व्यवहार इच्छा (Will) से संचालित होता है। इच्छा को बौद्धिक मूल्यांकन (Intellectual) द्वारा अभिप्रेरणा दी जाती है। इस प्रकार संकल्पन शक्ति विकसित होती है। यहाँ पर यह मान लेना आवश्यक है कि संवेग (Emotions) तथा प्रतिवर्त (Reflexes) इच्छा से अभिप्रेरित नहीं होते।
6. लेविन (Lewin) का सिद्धान्त – इस सिद्धान्त का प्रतिपादन कुर्ट लेविन (Kurt Lewin) ने किया था। इन्होंने अधिगम के विकास में अभिप्रेरणा का महत्व सर्वाधिक माना है। यह मत अभिप्रेरणा की साक्षी की पृष्ठभूमि (Evidential grounds) पर आधारित है। यह अधिगम के संयोगों (Bonds) गतिशील प्रतिक्रिया, स्मृति, व्याख्या, भग्नाशा (Frustration), आकांक्षाओं के स्तर तथा निर्णय पर आधारित है।
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