ध्यान का अर्थ तथा परिभाषाएँ दीजिए। इनका वर्गीकरण कीजिए तथा शिक्षा में इसकी उपयोगिता बताइए।
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ध्यान का अर्थ एंव परिभाषा (Meaning & Definition of Attention)
हम जीवन में अनेक प्रकार की वस्तुएँ देखते हैं। कुछ के विषय में सुनते हैं। हम कुछ की ओर आकर्षित होते हैं तथा कुछ की ओर हमारा ध्यान अनायास ही चला जाता है। ये सभी व्यवहार ध्यान कहलाते हैं।
‘चेतना’ व्यक्ति का स्वाभाविक गुण है। चेतना के ही कारण उसे विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान होता है। यदि वह कमरे में बैठा हुआ पुस्तक पढ़ रहा है, तो उसे वहाँ की सब वस्तुओं की कुछ-न-कुछ चेतना अवश्य होती है; उदाहरणार्थ मेज, कुर्सी, अलमारी आदि। पर उसकी चेतना का केन्द्र वह पुस्तक है, जिसे वह पढ़ रहा है। चेतना के किसी वस्तु पर इस ‘प्रकार के केन्द्रित होने को ‘ध्यान’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, किसी वस्तु पर चेतना को केन्द्रित करने की मानसिक प्रक्रिया को ‘ध्यान’ या अवधान कहते हैं।
‘ध्यान‘ के अर्थ को हम निम्नांकित परिभाषाओं से पूर्ण रूप से स्पष्ट कर सकते हैं-
1. रॉस- “ध्यान, विचार की किसी वस्तु को मस्तिष्क के सामने स्पष्ट रूप से उपस्थित करने की प्रक्रिया है।”
“Attention is a process of getting an object of thought clearly before the mind.” -Ross
2. मार्गन एवं गिलीलैंड- “अपने वातावरण के किसी विशिष्ट तत्व की ओर उत्साहपूर्वक जागरूक होना ध्यान कहलाता है। यह किसी अनुक्रिया के लिए पूर्व समायोजन है।”
“Attention is being keenly alive to some specific factor in our environment. It is a preparatory adjustment for response.” -Morgan and Gilliland.
3. डम्विल- “किसी दूसरी वस्तु के बजाय एक ही वस्तु पर चेतना का केन्द्रीयकरण ध्यान है।”
“Attention is the concentration of consciousness upon one object rather than upon another.” – Dumville
4. वेलेन्टाइन- “ध्यान, मस्तिष्क की शक्ति न होकर सम्पूर्ण रूप से मस्तिष्क की क्रिया या अभिवृत्ति है।”
“Attention is not a faculty of the mind. It rather describes an attitude or activity of the mind.” – Valentine
ध्यान के पहलू (Aspects of Attention)
आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, ध्यान में सचेत जीवन के तीन पहलू होते हैं- जानना, अनुभव करना तथा इच्छा करना (Knowing, Feeling & Willing) । किसी कार्य के प्रति ध्यान देते समय हमें उसका ज्ञान रहता है। हम रुचि के रूप में किसी भावना या संवेग से प्रेरित होकर, उसे करने में ध्यान लगाते हैं। जितनी देर हमारा ध्यान उस कार्य में लगा रहता है, उतनी देर हमारा मस्तिष्क क्रियाशील रहता है। इस प्रकार, जैसा कि भाटिया ने लिखा है- “ध्यान-ज्ञानात्मक, क्रियात्मक और भावात्मक होता है।”
“Attention is cognitive, conative, and affective.” – Bhatia
ध्यान की दशाएँ (Conditions of Attention)
हम अनेक वस्तुओं को देखते हुए भी केवल एक की ही ओर ध्यान क्यों देते हैं ? इसका कारण यह है कि ध्यान को केन्द्रित करने में अनेक दशाएँ सहायता देती हैं। हम इनको दो भागों में बाँट सकते हैं—(1) बाह्य या वस्तुगत दशाएँ, (2) आन्तरिक या व्यक्तिगत दशाएँ ।
(1) ध्यान को केन्द्रित करने की बाह्य दशाएँ (External Conditions Attracting Attention)
1. अवधि (Duration) – हमें जिस वस्तु को देखने का जितना अधिक समय मिलता है, उस पर हमारा ध्यान उतना ही केन्द्रित होता है। इसीलिए, शिक्षक पाठ की मुख्य मुख्य बातों को श्यामपट पर लिखते हैं।
2. गति (Movement)- स्थिर वस्तु के बजाय चलती हुई वस्तु की ओर हमारा ध्यान जल्दी आकर्षित होता है। बैठे या खड़े हुए मनुष्य के बजाय भागते हुए मनुष्य की ओर हमारा ध्यान शीघ्र जाता है।
3. तीव्रता (Intensity)- जो वस्तु जितनी अधिक उत्तेजना उत्पन्न करती है, उतना ही अधिक हमारा ध्यान उसकी ओर खिंचता है। धीमी आवाज की तुलना में तेज आवाज हमारा ध्यान अधिक आकर्षित करती है।
4, आकार (Size) – हमारा ध्यान छोटी वस्तुओं की अपेक्षा बड़े आकार की वस्तुओं की ओर जेल्दी जाता है। चौराहों पर बड़े-बड़े विज्ञापनों के लगाए जाने का कारण उनकी ओर हमारे ध्यान को शीघ्र आकर्षित करना है।
5. परिवर्तन (Change)- विद्यालय में शोर होना साधारण बात है। पर यदि उसके किसी भाग में लगातार जोर का शोर होने के कारण वातावरण में परिवर्तन हो जाता है, तो हमारा ध्यान शोर की ओर अवश्य जाता है और हम उसका कारण भी जानना चाहते हैं।
6. पुनरावृत्ति (Repetition) – जो बात बार-बार दोहराई जाती है, उसकी ओर हमारा ध्यान जाना स्वाभाविक होता है। छात्रों के ध्यान को केन्द्रित रखने के लिए शिक्षक मुख्य मुख्य बातों को दोहराता जाता है।
7. स्थिति (State) – हम प्रतिदिन के मार्ग पर चलते हुए बहुत-से मकानों के पास गुजरते हैं, पर हमारा ध्यान उनकी ओर आकर्षित नहीं होता है। यदि किसी दिन हम उनमें से किसी मकान को गिरी हुई दशा या स्थिति में पाते हैं, तो हमारा ध्यान स्वयं ही उसकी ओर चला जाता है।
8. विषमता (Contrast)- यदि हम सुन्दर व्यक्तियों के परिवार में किसी कुरूप व्यक्ति को देखते हैं, तो उसकी विषमता के कारण हमारा ध्यान उसकी ओर अवश्य जाता है।
9. रहस्य (Secrecy) – ध्यान का केन्द्रीयकरण किसी बात के रहस्य पर आधारित रहता है। यदि दो मनुष्य सामान्य रूप से बातचीत करते हैं, तो हमारा ध्यान उनकी ओर नहीं जाता है। पर यदि वे कोई गुप्त या रहस्यपूर्ण बात करने लगते हैं, तो हम कान लगाकर उनकी बात सुनने का प्रयास करते हैं।”
10. नवीनता (Novelty)- हमारा ध्यान नवीन, विचित्र या अपरिचित वस्तु की ओर अवश्य आकर्षित होता है। वर्दी पहने हुए सिपाही को नदी में नहाते देखकर हमारे नेत्र उस पर जम जाते हैं।
11. स्वरूप (Form)- हमारा ध्यान अच्छे स्वरूप की वस्तुओं की ओर अपने-आप जाता है। जो वस्तु सुडौल, सुन्दर और अच्छी बनावट की होती है, उसे देखने की हमारी इच्छा स्वयं होती है।
12. प्रकृति (Nature) – ध्यान का केन्द्रीयकरण, वस्तु की प्रकृति पर निर्भर रहता है। छोटे बच्चों का ध्यान रंग-बिरंगी वस्तुओं के प्रति बहुत सरलता से आकर्षित होता है।
( 2 ) ध्यान को केन्द्रित करने की आन्तरिक दशाएँ (Internal Conditions Attracting Attention)
1. ज्ञान (Understanding) – जिस व्यक्ति को जिस विषय का ज्ञान होता है, उस पर ध्यान सरलता से केन्द्रित होता है। कलाकार को कला की वस्तुओं पर ध्यान केन्द्रित करने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
2. आदत (Habit) – ध्यान के केन्द्रीयकरण का एक आधार व्यक्ति की आदत है। जिस व्यक्ति को चार बजे टेनिस खेलने जाने की आदत है, उसका ध्यान तीन बजे से ही उस पर केन्द्रित हो जाता है और वह खेलने जाने की तैयारी करने लगता है।
3. प्रशिक्षण (Training) – रेबर्न (Reyburn) के अनुसार- ध्यान के केन्द्रीयकरण का एक आधार व्यक्ति का प्रशिक्षण है। व्यक्ति का ध्यान उसी बात पर केन्द्रित होता है, जिसका प्रशिक्षण उसे प्राप्त होता है। पहाड़ पर साथ-साथ यात्रा करते समय चित्रकार का ध्यान सुन्दर स्थानों की ओर एवं पर्वतारोही का ध्यान पहाड़ की ओर जाता है।
4. वंशानुक्रम ( Heredity)– रेबर्न (Reyburn) के अनुसार- ध्यान के केन्द्रीयकरण का एक आधार व्यक्ति को वंशानुक्रम से प्राप्त गुणों पर निर्भर रहता है। शिकारी परिवार के व्यक्ति का ध्यान शिकार के जानवरों की ओर एवं धार्मिक परिवार के व्यक्ति का ध्यान मन्दिरों की ओर स्वाभाविक रूप से आकर्षित होता है।
5. रुचि (Interest) – ध्यान के केन्द्रीयकरण का सबसे मुख्य आधार – हमारी रुचि है। इस सम्बन्ध में भाटिया (Bhatia) ने लिखा है-“व्यक्तिगत दशाओं को एक शब्द ‘रुचि’ में व्यक्त किया जा सकता है। हम उन्हीं वस्तुओं की ओर ध्यान देते हैं, जिनमें हमें रुचि होती है। जिनमें हमको रुचि नहीं होती है, उनकी ओर हम ध्यान नहीं देते हैं।”
6. लक्ष्य (Goal) – व्यक्ति जिस कार्य के लक्ष्य को जानता है, उस पर उसका ध्यान स्वतः केन्द्रित हो जाता है परीक्षा के दिनों में छात्रों का ध्यान अध्ययन पर केन्द्रित रहता है, क्योंकि इससे वे परीक्षा में उत्तीर्ण होने के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
7. जिज्ञासा (Curiosity) – व्यक्ति की जिस बात में जिज्ञासा होती है, उसमें वह ध्यान अवश्य देता है। जिस व्यक्ति को टैस्ट मैचों के प्रति जिज्ञासा होती है, वह उनकी कमेंट्री अवश्य सुनता है।
8. मनोवृत्ति (Mood) – रैक्स एवं नाईट (Rex & Knight) के अनुसार-ध्यान के केन्द्रीयकरण का एक आधार–व्यक्ति की मनोवृत्ति है। यदि मालिक अपने नौकर से किसी कारण से रुष्ट हो जाता है, तो ध्यान नौकर के छोटे-छोटे दोषों की ओर भी जाता है; जैसे—वह देर से क्यों आया है ? वह मैले कपड़े क्यों पहिने हुए है ?
9. मूलप्रवृत्तियाँ (Instincts) – रैक्स व नाईट (Rex & Knight) के अनुसार-ध्यान के केन्द्रीयकरण का एक मुख्य आधार–व्यक्ति की मूलप्रवृत्तियाँ हैं। यही कारण है कि विज्ञापनों के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए काम प्रवृत्ति का सहारा लिया जाता है। इसीलिए विज्ञापनों में, साधारणतः सुन्दर युवतियों के चित्र होते हैं।
10. मस्तिष्क का विचार (Idea in Mind)- रेबर्न (Reyburn) के अनुसार-हमारे मस्तिष्क में जिस समय जो विचार सर्वप्रथम होता है, उस समय हम उसी से सम्बन्धित बातों की ओर ध्यान देते हैं। यदि हमारे मस्तिष्क में अपने किसी रोग का विचार है तो समाचार पत्र पढ़ते समय हमारा ध्यान औषधियों के विज्ञापनों की ओर अवश्य जाता हैं।
11. आवश्यकता (Need)- जो वस्तु, व्यक्ति की आवश्यकता को पूर्ण करती है, उसकी ओर उसका ध्यान जाना स्वाभाविक है। भूखे व्यक्ति का भोजन की ओर ध्यान जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
12. पूर्व अनुभव (Previous Experience) – यदि व्यक्ति को किसी कार्य को करने का पूर्व-अनुभव होता है, तो उस पर उसका ध्यान सरलता से केन्द्रित हो जाता है। जिस बालक को पर्वत का मॉडल बनाने का कोई अनुभव नहीं है, उस पर वह अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाता है।
बालकों का ध्यान केन्द्रित करने के उपाय (Methods of Securing Children’s Attention)
बी० एन० झा के अनुसार- “विद्यालय कार्य की एक मुख्य समस्या सदैव ध्यान की समस्या रही है। इसीलिए, नए, शिक्षक को प्रारम्भ में यह आदेश दिया जाता है-‘कक्षा के ध्यान को केन्द्रित रखिए।”
“The problem of attention has been one of the foremost problems of school work, ‘Get the attention of the class’ is therefore the preliminary instruction for the new teacher.” -B. N. Jha
कक्षा या बालकों के ध्यान को केन्द्रित करने या रखने के लिए निम्नलिखित उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है-
1. पाठ की तैयारी (Preparation of Lesson) – पाठ को पढ़ाते समय कभी-कभी ऐसा अवसर आ जाता है, जब शिक्षक किसी बात को भली प्रकार से नहीं समझा पाता है। ऐसी दशा में वह बालकों के ध्यान को आकर्षित नहीं कर पाता है। अतः शिक्षक को प्रत्येक पाठ को पढ़ाने से पूर्व उसे अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए।
2. सहायक सामग्री का प्रयोग (Use of Material Aids) – सहायक सामग्री बालकों के ध्यान को केन्द्रित करने में सहायता देती है। अतः शिक्षक को पाठ से सम्बन्धित सहायक सामग्री का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
3. बालकों की रुचियों के प्रति ध्यान (Attention towards Interests) – जो अध्यापक, शिक्षण के समय बालकों की रुचियों का ध्यान रखता है, वह उनके ध्यान को केन्द्रित रखने में भी सफल होता है। अतः डम्विल (Dumville) का सुझाव है-“पाठ का प्रारम्भ बालकों की स्वाभाविक रुचियों से कीजिए। फिर धीरे-धीरे अन्य विधियों में उनकी रुचि उत्पन्न कीजिए।”
4. बालकों के पूर्व ज्ञान का नए ज्ञान से सम्बन्ध (Relationship between New and Previous Knowledge) – बालकों के ध्यान को केन्द्रित रखने के लिए शिक्षक को नए विषय को पुराने विषय से सम्बन्धित करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए जेम्स ने लिखा है- “बालक पुराने विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित कर चुके हैं। अतः जब नए विषय को उससे सम्बन्धित कर दिया जाता है, तब उस पर उन्हें अपना ध्यान केन्द्रित करने में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है।”
5. शान्त वातावरण (Calm Environment) – कोलाहल, बालकों के ध्यान को विचलित करता है। अतः उनके ध्यान को केन्द्रित रखने के लिए शिक्षक को कक्षा का वातावरण शान्त रखना चाहिए।
6. विषय में परिवर्तन (Change of Subject) – ध्यान चंचल होता है और बहुत समय तक एक विषय पर केन्द्रित नहीं रहता है। अतः शिक्षक को दो घण्टों में एक विषय लगातार न पढ़ाकर भिन्न-भिन्न विषय पढ़ाने चाहिएँ ।
7. बालक की प्रवृत्तियों का ज्ञान-डम्विल (Dumville) के अनुसार चालकों के ध्यान को केन्द्रित करने के लिए शिक्षक को उनकी सब प्रवृत्तियों (Tendencies) का ज्ञान होना चाहिए। यदि वह इन प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर अपने शिक्षण का आयोजन करता है, तो वह बालकों के ध्यान को केन्द्रित रखता है।
8. शिक्षण की विभिन्न विधियों का प्रयोग (Use of Various Methods of Teaching)- बालकों को खेल, कार्य, प्रयोग और निरीक्षण में विशेष आनन्द आता है। अतः शिक्षक को बालकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए, आवश्यकतानुसार अमलिखित विधियों का प्रयोग करना चाहिए-खेल विधि, क्रिया-विधि, प्रयोगात्मक-विधि और निरीक्षण विधि।
9. बालकों के प्रति उचित व्यवहार (Proper Behaviour)- यदि बालकों के प्रति शिक्षक का व्यवहार कठोर होता है और वह उनको छोटी-छोटी बातों पर डाँटता है, तो वह उनके ध्यान को आकर्षित नहीं कर पाता है। अतः उसे बालकों के प्रति प्रेम, शिष्टता और सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए।
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