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पाठ्य पुस्तक विधि (Text-Book Method)
पाठ्य-पुस्तक विधि एक परम्परागत विधि है।
भारतीय माध्यमिक विद्यालयों तथा जूनियर हाई स्कूलों में जहाँ पाठ्य पुस्तक में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम की बातें लिखी हुई मिल जाती हैं, शिक्षक इस विधि का प्रयोग करते हैं। यह विधि बहुत पहले से चली आ रही है। प्राचीन काल में शिक्षक पाठ्य-पुस्तक में से विद्यार्थियों को कुछ गृहकार्य देते थे तथा दूसरे दिन याद किये हुये अभ्यास को दुहराते थे। विद्यार्थियों की प्रगति को जानने हेतु शिक्षक सभी विद्यार्थियों से प्रश्न पूछते थे। जो विद्यार्थी पाठ को याद करके नहीं सुनाते थे, उन्हें दण्ड दिया जाता था। उस समय शिक्षण का उद्देश्य पाठ्य पुस्तकों से विषय को पढ़कर स्मरण करना एवं इस प्रकार के ज्ञान की वृद्धि करना था। विद्यार्थी पाठ्य पुस्तकों से वैज्ञानिक तथ्यों को याद करते थे, चाहे तथ्यों का सिद्धान्त से सम्बन्ध स्थापित नहीं कर पाते थे, परन्तु बाद में हॉल क्वैस्ट तथा अन्य विद्वानों ने लोगों को इस ओर सचेत किया कि विद्यार्थियों को इस प्रकार पढ़ाना चाहिये, जिससे कि वे पाठ्य पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान को व्यावहारिक जीवन की समस्याओं का समाधान करने हेतु प्रयोग कर सकें।
पाठ्य-पुस्तक विधि के गुण
1. यदि पाठ्य-पुस्तक तथा सहायक पुस्तकों के प्रयोग एवं प्रदर्शन के द्वारा प्राप्त ज्ञान को पूरा करने के लिये उपयोग में लाया जाये तो उनका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
2. विद्यार्थी कक्षा में पढ़ाये गये अभ्यासों को घर में पाठ्य-पुस्तक की सहायता से दुहरा सकते हैं।
3. विद्यार्थियों को पाठ्य-पुस्तक में से गृहकार्य दिया जाता है, जिससे कि वे घर में कार्य में लगे रहते हैं।
4. वे गृहकार्य को उचित समय पर घर से करके ले जाना अपना कर्त्तव्य समझने लगते हैं, इसलिये उनमें उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न होती है।
5. पुस्तकों में जो गृहकार्य की समस्या हल करने के रूप में दिया जाता है, उसे अच्छी तरह से समझ जाता है।
6. इस प्रकार की समस्या के लिये वे अनेक सहायक पुस्तकों का अध्ययन करते हैं, जिससे उनमें समस्या का हल करने की रुचि उत्पन्न होती है।
7. विज्ञान विषय में अनेक ऐसे उपविषय होते हैं, जो पाठ्य पुस्तकों में संगठित रूप में लिखे होते हैं, जिन्हें पढ़कर विद्यार्थी अच्छी तरह समझने लगते हैं।
8. यदि पाठ्य-पुस्तक अच्छी प्रकार से लिखी गयी हो तथा उसमें स्थान-स्थान पर विषय को उदाहरणों के द्वारा समझाया गया हो तो विद्यार्थियों में उनसे ज्ञान को प्राप्त करने में रुचि उत्पन्न हो जाती है।
पाठ्य-पुस्तक विधि के दोष
1. अनेक विद्यार्थी पाठ्य-पुस्तकों को रटकर याद करते हैं, जिससे उनकी तर्क शक्ति का विकास नहीं हो पाता।
2. विद्यार्थी यह समझते हैं कि पाठ्य-वस्तु को पाठ्य-पुस्तक से पढ़ना है।
3. वे परीक्षा से कुछ दिन पहले ही उसे पढ़कर परीक्षा में उत्तीर्ण होने का प्रयास करते हैं।
4. वे पूरे वर्ष अध्ययनरत न रहकर केवल कुछ पहले ही पढ़ना आरम्भ करते हैं, इससे शिक्षा का उद्देश्य समाप्त हो जाता है।
5. विद्यार्थी बिना समझ-बूझ के पाठ को याद करके उत्तीर्ण हो जाते हैं।
6. उनका मानसिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता है तथा यदि पुस्तक ठीक प्रकार से नहीं लिखी गयी है जो उससे विद्यार्थियों में पाठ्य-पुस्तकों के लिये अरुचि उत्पन्न हो जाती है, जिससे वे ज्ञान को अच्छी प्रकार से प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
पाठ्य पुस्तक विधि के लिये सुझाव
1. यदि पाठ्य-पुस्तक विधि का प्रयोग किया जाये तो शिक्षक को विद्यार्थियों के पाठ याद करने के बाद उनमें वाद-विवाद करवाना चाहिये, इससे यह ज्ञात हो जायेगा कि कौन विद्यार्थी पाठ को समझता है तथा कौन नहीं।
2. वाद-विवाद के द्वारा विद्यार्थी अपनी कमजोरियों तथा सन्देहों को दूर कर लेंगे।
3. शिक्षकों को चाहिये कि वह आवश्यकतानुसार पाठ्य-पुस्तक विधि का प्रयोग करें तथा पाठ्य-पुस्तक रटकर याद करना उद्देश्य न बनायें, बल्कि उसे एक सहायक सामग्री के रूप में प्रयोग करें।
4. विद्यार्थियों को केवल एक पाठ्य पुस्तक न पढ़ायें, बल्कि अन्य अनेक सहायक पुस्तकों को पढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया जाये।
5. पाठ्य पुस्तकों को प्रयोग तथा प्रदर्शन के द्वारा प्राप्त ज्ञान को पूर्ति के लिये प्रयोग करें। विद्यार्थियों को केवल उचित प्रकार की पुस्तकों को पढ़ने के लिये प्रोत्साहित न किया जाये।
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