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प्रधानमंत्री कार्यालय के संगठन एवं कार्य | Organization and functions of Prime Minister’s Office in Hindi

प्रधानमंत्री कार्यालय के संगठन एवं कार्य | Organization and functions of Prime Minister's Office in Hindi
प्रधानमंत्री कार्यालय के संगठन एवं कार्य | Organization and functions of Prime Minister’s Office in Hindi

प्रधानमंत्री कार्यालय के संगठन एवं कार्य

प्रधानमंत्री कार्यालय या सचिवालय का परिचय (Introductions of PMO)- प्रधानमन्त्री को शासन-कार्यों में कार्यालयी सहायता प्रदान करने के लिए प्रधानमन्त्री कार्यालय की स्थापना की गयी जो आगे चलकर प्रधानमन्त्री सचिवालय में परिवर्तित हो गया। आज भारतीय प्रशासन में प्रधानमंत्री सचिवालय का न केवल महत्व बढ़ा है अपितु उसकी अहम भूमिका भी है। 15 अगस्त, 1947 को भारत के स्वतन्त्र होने पर प्रधानमन्त्री के कार्यालय की स्थापना हुई। इस सचिवालय का निर्माण उन समस्त कार्यों का सम्पादन करने के उद्देश्य से किया गया जिन्हें 15 अगस्त, 1947 से पूर्व गवर्नर जनरल के सचिव (व्यक्तिगत) द्वारा किया जाता था। स्मरणीय है कि प्रधानमन्त्री ने भी इसी तिथि से वे सभी कार्य अपने हाथों में लिये जो 15 अगस्त, 1947 से पूर्व गवर्नर जनरल, सरकार की कार्य पालिका के प्रमुख के रूप में, किया करता था। आज यह असाधारण रूप से शक्तिशाली संगठन है जिससे अनेक विशेषज्ञ सम्बद्ध हैं। नेहरू कार्यकाल में प्रधानमन्त्री सचिवालय वर्तमान की तुलना में बहुत छोटा था तथा इसे निर्णयकारी भूमिका प्राप्त नहीं थी। लेकिन शास्त्रीजी के कार्यकाल में इस सचिवालय का प्रभाव और महत्व महुत अधिक बढ़ गया। श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1997 तक के प्रधानमन्त्रितव में इसने शासन के शीर्षस्थ निर्णय-निर्धारण केन्द्र का स्थान प्राप्त कर लिया। इसके खतरे आन्तिरिक आपातकाल में भली प्रकार स्पष्ट हो गये थे। इस कार्यालय द्वारा इस काल में भारत सरकार के रूप में किये गये कार्य और सभी शासकीय विभागों की स्थिति इसके समक्ष नगण्य हो गयी थी। परन्तु मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता शासन ने इसके अत्यधिक बढ़े हुए महत्व को कम करने के लिए शीघ्रतापूर्वक कार्रवाई की, और 1977 में इसका नाम बदलकर “प्रधानमन्त्री कार्यालय” कर दिया गया। इंदिरा गांधी 1980 में पुनः सत्तारूढ़ हुई पर प्रधानमन्त्री का कार्यालय पहले जैसा प्रबल नहीं हो पाया। फिर भी प्रधानमन्त्री सचिवालय या कार्यालय का महत्व कम नही हुआ है।

प्रधानमन्त्री कार्यालय या सचिवालय का संगठन- प्रधानमन्त्री सचिवालय की उत्पत्ति ब्रिटिश शासनकाल के दौरान हुयी किन्तु भारत में इसका वास्तविक श्री गणेश 1947 के पश्चात् ही हुआ। पं. नेहरू के कार्यकाल में सचिवालय की शक्ति कम थी और उसकी भूमिका भी सीमित थी। महत्व की दृष्टि से प्रधानमन्त्री सचिवालय कैबिनेट सचिवालय के बाद आता था पं. नेहरू ने श्री आयंगर को प्रधानमन्त्री सचिवालय का प्रथम प्रमुख निजी सचिव नियुक्त किया। कैबिनेट की बैठकों में सम्मिलित होने की परम्परा का श्रीगणेश श्री आयंगर ने किया। आगे चलकर प्रधानमंत्री सचिवालय का ब्रिटिश नमूने पर पुनर्गठन किया गया। नेहरू के देहान्त के बाद प्रधानमन्त्री सचिवालय में बुनियादी परिवर्तन हुआ। 1964-65 के वर्ष को सचिवालय के लिए महत्वपूर्ण माना जाता हैं लालबहादुर शास्त्री ने अपने संक्षिप्त कार्यकाल में सचिवालय की सत्ता एवं संगठन में काफी वृद्धि की। उन्होंने नागरिक प्रशासन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री एल.के. झा को प्रधानमन्त्री का सचिव बनाया। श्री झा के प्रभावशाली एवं गतिशील व्यक्तित्व ने सचिवालय की प्रतिष्ठा और कद को ऊँचा किया तथ उसके दायित्वों में वृद्धि की। श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रधानमन्त्रित्व के प्रारम्भिक काल में श्री झा प्रधानमन्त्री के सचिव के रूप में कार्य करते रहे। प्रधानमन्त्री के अधिकारियों और विदेशी प्रतिनिधियों की समस्त बैठकों में श्री झा उपस्थित रहते थे। प्रधानमन्त्री की महत्वपूर्ण विदेश यात्राओं में श्री झा उनके साथ रहते थे। एक कुशल प्रशासक के रूप उनकी भूमिका विशिष्ट थी। श्रीमति गांधी के कार्यकाल (1966-77) मे प्रधानमन्त्री सचिवालय की शक्ति में भी अपार वृद्धि हुई और आपातकाल के दिनों में तो यह वास्तविक निर्णय लेने वाले एक निकाय के रूप में उभरा जिसे लोग भारत सरकार का पर्यायवाची कहने लगे। इस समय कैबिनेट सचिवालय की भूमिका महत्वहीन हो गयी थी। प्रारम्भ में श्रीमती गांधी के सचिवालय के एक प्रमुख सचिव हक्सर और एक उपसचिव एस. बनर्जी समस्त राजनीतिक मामलों को देखते थे। यह केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने तथा उच्च दिशा में निर्देशन प्रदान करने के लिए कैबिनेट सचिवालय से घनिष्ठ सम्बन्ध बनाये रखते थे। लेकिन समय के साथ प्रधानमन्त्री सचिवालय की शक्तियों में उल्लेखनीय वृद्धि की गयी। 1968 में खुफिया ब्यूरो” से ‘शोध एवं विश्लेषण ‘राजा’ (RAW) को अलग करके इस शाखा को अत्यन्त व्यापक बनाया गया और व्यक्तियों तथा प्रकरणों के सम्बन्ध में प्रधानमंन्त्री को पूर्ण जानकारी देने के लिए सक्रिय किया गया। शोध एवं विश्लेषण शाखा के प्रमुख प्रधानमन्त्री के प्रति उत्तरदायी थे। वस्तुतः श्री हक्सर की अध्यक्षता में प्रधानमन्त्री सचिवालय ने स्वतन्त्र कार्यपालिका शक्ति का रूप धारणा कर लिया।

1977 में भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। चुनाव में कांग्रेस की अप्रत्याशित पराजय हुई और जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में सत्तारूढ़ हुई। श्री मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने। उनके कार्यकाल में सरकार की कार्यप्रणाली में काफी बदलाव आया। श्री देसाई ने अवकाश प्राप्त भारतीय नागरिक सेवा के अधिकारी श्री वी. शंकर को प्रधानमन्त्री का सचिव नियुक्त किया और प्रमुख सचिव का दर्जा प्रदान किया। श्री शंकर का काफी प्रभाव था। जून 1977 में जनता शासन के दौरान प्रधानमन्त्री सचिवालय की शक्तियों को कम करके इसे “प्रधानमन्त्री कार्यालय” का नाम दिया गया। “रा” (RAW) संगठन को इससे अलग कर दिया गया। कैबिनेट सचिवालय का कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग जो लोक-सेवाओं पर नियन्त्रण रखता है, पहले के समान गृह मन्त्रालय को और राजस्व जाँच विभाग वित्त-मन्त्रालय को लौटा दिया गया। इस प्रकार अभूतपूर्व शक्ति वाले “प्रधानमन्त्री सचिवालय” को “प्रधानमन्त्री कार्यालय” में बदलकर उसकी शक्तियों में काफी कमी कर दी गयी। अब उसका कार्य प्रधानमन्त्री को उसके कार्यों को सम्पन्न करने में सहायता प्रदान करना है।

1979-80 के चुनाव में इन्दिरा गांधी पुनः विजयी हुई और अक्टूबर 30, 1984 तक सत्तारूढ़ रहीं। जनता सरकार द्वारा किये गये अनेक कार्यों में कांग्रेस सरकार द्वारा परिवर्तन किये गये किन्तु प्रधानमंत्री कार्यालय वह स्थान प्राप्त न कर सका जो उसे पहले प्राप्त था । इन्दिरा गांधी की मृत्यु के पश्चात् पाँच तक राजीव गांधी प्रधानमन्त्री पद पर रहे। राजीव गांधी के कार्यकाल में प्रधानन्त्री कार्यालय का मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों दृष्टि से विस्तार हुआ और वह अपनी खोई हुई शक्ति एवं प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने में सफल हुआ। कार्यालय में न केवल परिवर्तन किये बल्कि उसे अधिक प्रभावशाली और सक्रिय बनाया। राजीव गांधी तक सक्रिय प्रधानमन्त्री थे जो भारत को शीघ्र 21वीं सदी में ले जाना चाहते थे।

वी. पी. सिंह के संक्षिप्त कार्यकाल में प्रधानमन्त्री कार्यालय कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा सका और न ही सक्रिय रहा। फिर भी उन्होने प्रधानमन्त्री कार्यालय को प्रभावशाली व्यावसायिक संस्था बनाने का प्रयास किया। चन्द्रशेखर के कार्यकाल में यह कार्यालय कार्य एवं महत्व की दृष्टि से अपने निम्नतम बिन्दु पर था।

राजीव गांधी की आकस्मिक हत्या के बाद पी. वी. नरसिंहराव प्रधानमन्त्री बने। वे एक अलग प्रकार के व्यक्ति है जो संयत, उदारवादी, नरम, आमसहमति और विचार-विमर्श पर विश्वास करते है। प्रधानमन्त्री सचिवालय को महत्व अलग-अलग प्रधानमन्त्री के शासनकाल में अलग-अलग रहा है। पी. वी. नरसिंहराव ने यद्यपि राजनीतिक सचिव की नियुक्ति की है किन्तु उन्होंने कोई संविधानेतर कार्य नहीं किया। इनके शासनकाल में प्रधानमन्त्री सचिवालय समस्त शक्तियों का स्रोत नहीं है, जैसकि इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी के कार्यकाल में था।

देवगौड़ा का संयुक्त मोर्चे की सरकार के कार्यकाल में प्रधानमन्त्री कार्यालय भले ही सशक्त न रहा हो किन्त पी. एम. एच. (Prime Minister House) निश्चित रूप से सक्रिय था। उन्होंने प्रधानमन्त्री कार्यालय में अपने गृह राज्य के विश्वस्त अधिकारियों की नियुक्तियाँ की थीं। उनके कार्यकाल में प्रधानमन्त्री कार्यालय की गतिविधियों के सम्बन्ध में अधिक सुनने को नहीं • मिलता है। गुजराल हाल के वर्षों में बने प्रधानमन्त्रियों में सबसे कमजोर सिद्ध हुए है। उनके कार्यकाल में एन. एन. दोहरा की निगरानी और पंजाब काडर के विश्वस्त आई. ए. एम. अधिकारियों के अलावा आई. एफ. एस. अधिकारियों को जमा करके अपने प्रधानमन्त्री कार्यालय की अफसरशाही छवि को पुख्ता किया।

अटल बिहारी बाजपेयी के कार्यकाल में पुनः इसे महत्व मिला। अब बाजपेयी के कार्यकाल में पुनः पुरानी व्यवस्था बदलने लगी है। प्रधानमन्त्री का सचिवालय पुराने और नये का मिश्रण हैं सबसे उच्च पद पर सेवानिवृत्त आई. एफ. एस. अधिकारी प्रमुख सचिव ब्रजेश मिश्र हैं। यू. पी. ए-1 तथा यू. पी. ए-11 के कार्यकाल में प्रधानमन्त्री सचिवालय की भूमिका स्थिर रही है, इसे वह स्थान एवं गरिमा नही प्रदान की जा सकी जो 1960 तथा 1970 के दशक में मिली हुयी थी।

प्रधानमन्त्री कार्यालय सचिवालय के कार्य (Functions of the Prime Minister’s Secretariat) 

संक्षेप में इसके कार्यों का वर्णन निम्न है-

1. उन समस्त संदर्भों को देखना जिनका सम्बन्ध प्रधानमन्त्री के साथ कार्य तथा व्यापार नियमों के अन्तर्गत आता है एवं जो प्रधानमन्त्री के पास हैं।

2. मुख्य कार्यपालिका के रूप में प्रधानमन्त्री के समस्त उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने में सहायता प्रदान करना।

3. प्रधानमन्त्री को योजना आयोग के अध्यक्ष के रूप में उत्तरदायित्व निभाने में सहायता करना।

4. प्रधानमन्त्री के जन-सम्पर्क के कार्यों में सहयोग प्रदान करना। साथ में प्रेस एवं जनता के साथ सम्पर्क करना इसी सचिवालय का कार्य है।

5. प्रधानमन्त्री को भेजे गये प्रकरणों के परीक्षण में सहायता प्रदान करना।

6. उन सारे कार्यों में सहायता देना जिन्हे प्रधानमन्त्री सरकार के मुखिया के रूप में सम्पादित करते हैं।

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Anjali Yadav

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