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महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएँ | Poetic Characteristics of Mahadevi Varma in Hindi

महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएँ | Poetic Characteristics of Mahadevi Varma in Hindi
महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताएँ | Poetic Characteristics of Mahadevi Varma in Hindi
महादेवी वर्मा की काव्यगत विशेषताओं की विवेचना कीजिए। 

महादेवी वर्मा के काव्यगत विशेषताओं में इसके भावपक्ष तथा कलापक्ष का सुन्दर संगम मिलता है। इसमें रहस्यवाद, प्रकृति के प्रति अनुराग तथा भाषा आदि सभी पहलुओं का समन्वय किया गया है।

प्रकृति के प्रति अनुराग- कवयित्री का प्रकृति के प्रति भी अमिट अनुराग रहा है। प्रकृति उनको इसलिए भव्य तथा मोहक प्रतीत होती है क्योंकि उसी के माध्यम से उन्हें प्रिय की बाँकी झाँकी मिल जाती है। आपने प्रकृति के तारों को मोती के समान, ओस की बूंदों को मोती के सदृश, जुगनुओं को इन्दुमणि के समान तथा दिन को सोने की उपमा दी है। काले बादलों में उन्हें बिजली की छटा इस प्रकार दृष्टिगोचर होती है जिस प्रकार नीलम के मन्दिर में हीरक प्रतिमा अपना सौन्दर्य बिखेर रही हो। आपने सांध्य रानी, प्रभात तथा बादलों के पूर्ण चित्र अंकित किये हैं।

आलंकारिक रूप में भी जहाँ प्रकृति के दृश्यों का वर्णन किया है वहाँ भी कोई न कोई रहस्य भाव निहित है। महादेवी जी ने प्रकृति में क्षणभंगुरता तथा नश्वरता का भाव देखा है।

पीड़ा की अमर गायिका- कुछ विद्वानों ने महादेवी जी पर यह दोष लगाया है कि वे सदैव पीड़ा के ही राग अलापती रहती हैं। महादेवी जी ने पीड़ा के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए उनमें सुख की झाँकी भी देखी है। महादेवी प्रेम से भरी पीड़ा के अन्दर ही आनन्द की खोज कर लेती हैं।

आनन्द की भावना- जिस प्रकार महादेवी जी के काव्य में वेदना की भावना पाई जाती है। उसी भाँति आपके काव्य में आनन्द का पुट भी पाया जाता है। सुख तथा दुःख दोनों का ही अपना अलग-अलग महत्त्व है।

काव्यगत विशेषताएँ (महादेवी का कलापक्ष) – महादेवी के काव्य में माधुर्य भाषा के दर्शन होते हैं। आपका प्रियतम साधारण पुरुष न होकर निराकार बह्म है। अपने प्रियतम के साक्षात्कार के लिए आपकी आत्मा व्यथित रहती है। वे अपने प्रियतम को भिन्न-भिन्न नामों से सम्बोधित करती हैं। कभी उन्हें ‘निष्ठुर’, ‘निर्मोही’ बलाती हैं तो कहीं-कहीं पर करुणामय देव, तुम और तू भी कहकर सम्बोधित किया है।

महादेवी जी की प्रेम साधना- महादेवी जी का प्रेम निराकार ब्रह्म के प्रति है अतः उनके प्रेम में आकर्षण, अभिसार, विरह एवं मिलन, आदि की सभी स्थितियों का समावेश है। उनकी प्रेम भावना स्वाभाविक है। ज्यों-ज्यों उनका अपने प्रिय से निकट का सम्बन्ध होता जाता है, त्यों-त्यों उनके प्रेम का रंग भी पहले की अपेक्षा गहराई को प्राप्त होता जाता है। ‘नीरजा’ की निम्न पंक्तियों में प्रेम की यही ध्वनि ध्वनित हो रही है-

“कौन तुम मेरे हृदय झरता अपरिचित।”

संगीतात्मकता – महादेवी जी की कविता में संगीतात्मकता भी कूट-कूट कर भरी हुई है। उनकी सम्पूर्ण कविताएँ गेय हैं। उनमें टेक भी हैं।

भाषा- वैसे महादेवी जी ब्रज भाषा पर भी पूर्ण अधिकार रखती हैं। इसका प्रमाण इस बात से मिल जाता है कि उन्होंने अपनी प्रारम्भ की कविताएँ ब्रज भाषा में ही लिखीं, परन्तु उनकी प्रकाशित कविताएँ खड़ी बोली में ही हैं। आपने खड़ी बोली को काव्य के अनुकूल भाषा का रूप प्रदान किया। यद्यपि निराला, पन्त तथा प्रसाद ने भी खड़ी बोली को समुन्नत करने का भरसक प्रयत्न किया है, परन्तु महादेवी ने उसमें नवीन प्राण-प्रतिष्ठा की है। निम्न पंक्तियों में कोमलता प्रांजलता तथा सजीवता दृष्टव्य है-

“मधुरिमा के, मधु के अवतार
सुधा से सुषमा से, छविमान
आँसुओं में सहमे अभिराम
तारकों से हे मूक अजान
सीख कर मुस्काने की बान
कहाँ आये हो कोमल प्राण? “

अलंकार योजना- महादेवी जी की कविता में विशेषतः रूपक तथा उपमा का ही प्रयोग हुआ है। उनकी उपमाएँ अनुपम तथा मोहक हैं। देखिए-

“अवनि अम्बर की रूपहली सीप में
तरल माता सा जलधि जब काँपता॥”

महादेवी जी ने अपनी कविताओं में समासोक्ति का भी प्रयोग किया है। उनकी समासोक्ति में कहीं भी दुरूहता की गन्द नहीं आने पाई है।

“सहज है कितना सबेरा।
राख से अंगार तारे झर चले हैं,
धूप बन्दी रंग के निर्भर खुले हैं।”

विशेषण विपर्यय का भी एक उदाहरण देखिए-

“पुलकित स्वानों की रोमावलि
कर में हो स्मृतियों की अंजलि
मलयानिल का चल दुकूल अति। “

महादेवी जी ने भाषा को कहीं-कहीं विकृत भी किया है, परन्तु वह बहुत साधारण है।

शैली- महादेवी जी ने सम्बोधन शैली, चित्र शैली तथा प्रगति शैली का प्रयोग किया है। आपकी शैली में प्रगीति शैली का व्यापक रूप देखने को मिलता है। उनका सम्पूर्ण काव्य गेय रूप में प्राप्त है। यद्यपि महादेवी जी संगीतशास्त्र की ज्ञाता हैं, परन्तु फिर भी उन्होंने संगीत का उस सीमा तक प्रयोग नहीं किया है जिस सीमा तक निराला जी ने अपनी कविताओं में किया है। उनके गीतों को बार-बार दुहराने पर भी मन को सन्तोष नहीं मिलता।

महादेवी की रहस्य भावना- महादेवी जी के गीतों में रहस्य तत्वों की सुन्दर अभिव्यक्ति दृष्टिगोचर होती है। ‘नीरजा’ की भूमिका में रामकृष्ण जी के शब्दों में, “श्रीमती महादेवी वर्मा हिन्दी कविता के इस वर्तमान युग की वेदना प्रधान हैं। उनकी काव्य-वेदना आध्यात्मिक है। उसमें आत्मा का परमात्मा के प्रति प्रणय निवेदन है। कवि की आत्मा मानो इस विश्व में बिछुड़ी हुई प्रेयसी की भाँति अपने प्रियतम का स्मरण करती है।”

अपने हृदय में मधुर पीड़ा का अनुभव करते हुए वे प्रश्न पूछती हैं-

“कौन तुम मेरे हृदय में?
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में घुमड़ घिर झरता अपरिचित ?

महादेवी वर्मा के काव्य में छायावाद का पुट- यद्यपि महादेवी के काव्य में रहस्य का पुट ही दिखाई नहीं देता अपितु उसमें आधुनिक गीतों में रहस्य साधना के तत्वों के साथ-साथ वर्तमान युग की छाया गीतों की सभी विशेषताओं का समावेश है। छायावादी कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण रूप एवं वेदना की प्रधानता है। देखिए-

” मैं नीर भरी दुःख की बदली
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना, इतिहास यही
उमड़ी थी कल मिट आज चली
मैं नीर भरी दुःख की बदली।”

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि महादेवी जी का सम्पूर्ण काव्य कलापक्ष एवं भावपक्ष की दृष्टि से रोचक, सजीव एवं सफल है। काव्य में भावनाओं के साथ-साथ कला तत्वों का भी ठीक प्रकार से प्रयोग हुआ है। कला की दृष्टि से आपका काव्य अत्यधिक सांकेतिक है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि महादेवी जी की साहित्य साधना बहुमुखी एवं प्रतिभा सम्पन्न है, हिन्दी के आधुनिक कलाकारों में आपका स्थान सर्वोच्च है।

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Anjali Yadav

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