मैक्डूगल के मूलप्रवृत्ति के सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसके सम्बन्ध में कुछ आलोचकों के मत बताइए।
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मूलप्रवृत्तियों का सिद्धान्त (Theory of Instincts )
“मूलप्रवृत्तियों के सिद्धान्त” का प्रतिपादक प्रसिद्ध अंमेज मनोवैज्ञानिक विलियम मैक्डूगल (William McDougall) है। उसने सन् 1908 ई० में प्रकाशित होने वाली अपनी पुस्तक “An Introduction to Social Psychology” में मूलप्रवृत्तियों का विस्तृत वर्णन किया है। उसका कहना है कि ऐसे अनेक कार्य या व्यवहार हैं, जिनको मनुष्यों और जीव-जन्तुओं को सीखना नहीं पड़ता है, जैसे-बालक द्वारा माँ का स्तनपान, पशु द्वारा तैरना, पक्षी द्वारा घोंसला बनाना आदि। वे इन कार्यों को अपनी मूलप्रवृत्ति, आन्तरिक प्रेरणा या नैसर्गिक शक्ति के कारण करते हैं। मैक्डूगल (McDougall) के अनुसार- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से “मूलप्रवृत्तियाँ सब मानव-क्रियाओं की प्रमुख चालक हैं। यदि इन मूलप्रवृत्तियों और इनसे सम्बन्धित शक्तिशाली संवेगों को हटा दिया जाए, तो जीवधारी किसी भी प्रकार का कार्य करने में असमर्थ हो जाएगा। वह उसी प्रकार निश्चल और गतिहीन हो जाएगा, जिस प्रकार एक बढ़िया घड़ी, जिसकी मुख्य कमानी हटा दी गई हो या एक स्टीम इंजन, जिसकी आग बुझा दी गई हो।”
मैक्डूगल के सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of McDougall’s Theory)
मैक्डूगल ने “मूलप्रवृत्तियों और संवेगों” के सिद्धान्त को अति सुन्दर ढंग से प्रतिपादन किया है। उसने इनके सम्बन्ध में जो भी लिखा है, वह हमें व्यावहारिक जीवन में प्रतिदिन दिखाई देता है। मैक्डूगल के अनुसार-मूलप्रवृत्ति एक आन्तरिक मनःशारीरिक प्रकृति है, जो इसके स्वामी के लिए एक निश्चित वर्ग की वस्तुओं को इन्द्रिय-गोचर होने पर एक विशेष प्रकार की उद्वेगात्मक उत्तेजना का अनुभव देती है तथा इसके सम्बन्ध में एक विशेष व्यवहार ही या कम से कम इस प्रकार के व्यवहार की आन्तरिक प्रेरणा का होना निश्चित करती हैं।
मैक्डूगल का मत इस बात पर बल देता है कि मानव व्यवहार के निर्धारण में मूलप्रवृत्तियों का योगदान है। मैक्डूगल के इस मत की आलोचना निम्न प्रकार की गई है-
1. अकोलकर (Akolkar) – मैक्डूगल ने मूलप्रवृत्तियों को सार्वभौमिक माना है। अकोलकर ने इनको सार्वभौमिक स्वीकार न करते हुए लिखा है- “कुछ आदि समाजों में युद्ध की प्रवृत्ति नहीं मिलती है, कुछ में संचय की प्रवृत्ति नहीं मिलती है, जबकि कुछ समाज ऐसे हैं, जिनमें आत्म-प्रदर्शन की प्रवृत्ति कठिनता से मिलती है।”
2. ए० एफ० शैन्ड (A. E. Shand) (Foundations of Character Book II, Chapter I) – मैक्डूगल ने प्रत्येक मूलप्रवृत्ति में एक संवेग का सम्बन्ध माना है। शैण्ड का तर्क है कि एक मूलप्रवृत्ति के साथ एक नहीं, वरन् अनेक संवेग सम्बद्ध रहते हैं, उदाहरणार्थ- भयभीत होने पर भागने के बजाय, हम छिप सकते हैं, मरने का बहाना कर सकते हैं, वहीं खड़े रह सकते हैं या सहायता के लिए चिल्ला सकते हैं।
3. मरसेल (Mursell) – मैक्डूगल ने 14 मूलप्रवृत्तियों की सूची दी है। मरसेल का मत है कि मूलप्रवृत्तियों की संख्या अपरिमित और अनिश्चित है। अपने मत की पुष्टि में उसने बरनार्ड (Bernard) द्वारा किए गए एक अनुसंधान का उल्लेख किया है। बरनार्ड ने 14,046 विभिन्न मूलप्रवृत्तियों का पता लगाया है, जिनको 5,759 विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। इस अनुसंधान के आधार पर मरसेल (Mursell) ने लिखा है-“मूलप्रवृत्ति शब्द का प्रयोग किसी भी बात की व्याख्या करने के लिए किया जा सकता है, पर वास्तव में, यह शब्द किसी भी बात की व्याख्या नहीं करता है। इस शब्द का अर्थ अनिश्चित है और इसे अत्यन्त अनिश्चित ढंग से प्रयोग किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप मानव-मूलप्रवृत्तियों की सम्पूर्ण धारणा अपयश का विषय हो गई है। “
4. जिसबर्ग (Ginsberg) – मैक्डूगल ने प्रत्येक मूलप्रवृत्ति में तीन प्रकार की मानसिक क्रियाओं का होना बताया है— ज्ञानात्मक, संवेगात्मक और क्रियात्मक। जिन्सबर्ग का तर्क है- मैक्डूगल ने मस्तिष्क को जिन तीन भागों में विभाजित किया है, वह सत्य से बहुत दूर है, क्योंकि तीनों का एक-दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
5. अकोलकर (Akolkar) – मैक्डूगल ने मातृ-मूलप्रवृत्ति (Parental Instinct) का उल्लेख किया है। इसको स्वीकार करते हुए अकोलकर ने लिखा है- “अनेक स्त्रियों ने बताया है कि उन्होंने सन्तान इसलिए उत्पन्न नहीं की कि वे चाहती थीं, पर इसलिए कि समाज बाँझ स्त्रियों को घृणा की दृष्टि से देखता है।”
6. हॉबहाउस (Hobhouse) – मैक्डूगल ने मूलप्रवृत्तियों को मानव व्यवहार का आधार माना है। इसके विपक्ष में हॉबहाउस ने लिखा है कि मानव व्यवहार केवल मूलप्रवृत्तियों से ही नहीं, वरन् सामाजिक परम्पराओं से भी निश्चित होता है।
मैक्डूगल के सिद्धान्त के विपक्ष में और भी अनेक प्रकार के विचार व्यक्त किए गए हैं। इनके और मैक्डूगल के सिद्धान्त के सम्बन्ध में अपना मत प्रदर्शित करते हुए रैक्स व नाइट ने लिखा है- “ये सब विचार महत्वपूर्ण हैं, पर इनका अभिप्राय यह नहीं है कि मानव-मूलप्रवृत्ति की धारणा निरर्थक है और वास्तव में ऐसे बहुत ही कम मनोवैज्ञानिक हैं जो किसी-न-किसी रूप में इसका प्रयोग न करते हों।”
“All these are important considerations, but they do not imply that the concept of human instinct is worthless, and in fact there are few psychologists who do not employ it in some form.” – Rex and Knight.
मूलप्रवृत्तियाँ मानव व्यवहार की अनिवार्य पक्ष हैं। मैक्डूगल ने मूलप्रवृत्तियों की व्याख्या, वर्गीकरण तथा शिक्षण में इनकी उपयोगिता पर बल दिया है। बालक में जिज्ञासा, सर्जनात्मकता, संग्रह, आत्मप्रकाशन, पलायन, युयुत्सा, निवृत्ति, पैतृकता, काम, दैन्य, शरणागति, भोजनान्वेषण तथा हास्य में शोधन कर मूलप्रवृत्तियों को सामाजिक स्वरूप प्रदान किया जाता है।
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