मोहिल्मन के अनुसार शिक्षा प्रशासन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
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मोहिल्सन के अनुसार शैक्षिक प्रशासक के कार्य (Duties of Educational Administrator)
मोहिल्सन ने शैक्षिक प्रशासन के कार्यों का विस्तारपूर्वक श्रेणी विभाजन किया है। मोहिल्सन के अनुसार शैक्षिक प्रशासन का मुख्य कार्य “कार्य सम्पादन क्रिया” (Excutive activity) है। ‘कार्य सम्पादन’ के सम्बन्ध में मोहिल्सन के अनुसार-
“कार्य सम्पादन क्रिया का संक्षेप में अर्थ है-नीतियों तथा विधियों को प्रभाव-युक्त बनाने के लिए समस्त प्रक्रियाओं को आवश्यक रूप में जुटाना। शैक्षिक योजना को क्रियान्वित करने में सहायक कोई भी माध्यम वास्तव में कार्य सम्पादन क्रिया का अंग ही होता है। “
वास्तव में, शैक्षिक प्रशासक को अपने सभी कार्य करने पड़ते हैं। इन कार्यों के लिए निश्चित रूप से “कार्य सम्पादन” की योजना बनानी होती है। सम्पादन क्रिया के अन्तर्गत भी कुछ मुख्य कर्त्तव्यों की ‘मोहिल्सन’ ने चर्चा की है।
कार्य सम्पादन की क्रियायें (Functional Activities of the Executive)
1. परिनियमावली तथा नियोजन (Legislation or Planning)- इस क्रिया का उद्देश्य योजना अथवा नीतियों का निर्धारण करना है। इन नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए ऐसे प्रशिक्षित व्यक्तियों का भी चयन करना होता है, जिनके कन्धों पर इस उत्तरदायित्व को डाला जा सकता है। कार्य सम्पादन हेतु अर्थ (धन) को जुटाना भी व्यवस्था का कार्य है।
2. सम्पादन करना (Executive) – इसका सम्बन्ध तकनीकी युक्त योजनाओं से होता है। निर्धारित नीतियों को कार्यान्वित करना एवं सृजनात्मक नेतृत्व को प्रदान करना वास्तव में कार्यान्वयन क्रिया का अंग होता है।
3. मूल्यांकन करना (Appraisal) – मूल्यांकन क्रिया का बड़ा महत्व है। परीक्षा के माध्यम से, तथ्यों एवं परिस्थितियों का अध्ययन करके यह देखा जाता है कि सामान्य तथा विशिष्ट कार्यों के सम्पादन में कहाँ तक सफलता मिली है और यह भी ज्ञात किया जाता है कि कार्य का परिणाम निर्देशित तथा निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप है या नहीं।
4. अर्थापन करना (Interpreting) – कार्य के सम्पादन के माध्यम (विद्यालय, अध्यापक आदि) को समाज की आवश्यकताओं एवं साधनों से निरन्तर परिचित कराने का उत्तरदायित्व व्याख्या-क्रिया पर ही अवलम्बित होता है। जनता के मूल्यों, उद्देश्यों एवं परिस्थितियों से भी परिचित कराना इसका मुख्य कार्य होता है।
मोहिल्सन के अनुसार शैक्षिक प्रशासन के कार्यों को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है— (1) क्रियाशील कार्य, (2) निर्देशात्मक कार्य। इन कार्यों के अन्तर्गत कार्यों की सूची निम्न प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है-
व्यावहारिक कार्य (Operational Functions)
- नीतियों तथा विधियों का निर्धारण (Determination of policies and procedures)
- शिक्षा की अर्थयोजना (Educational Finance)
- पर्यवेक्षण तथा निरीक्षण (Supervision and Inspection)
- सर्वेक्षण तथा सांख्यिकी (Survey and Statistics)
- पाठ्य पुनर्गठन एवं प्रशासन (Curricular reconstruction and its administration)
- शैक्षिक तथा व्यावसायिक सेवा (Educational and Vocational Guidance Services)
- न्याय देना (Legislation)
- योजना तथा उनका सम्पादन (Educational planning and its implementation)
- व्यक्तियों से सम्बन्धित प्रशासन (Personnel Administration)
- शोध-प्रशासन (Research Administration)
- पाठ्य पुस्तक प्रशासन (Text Book Publication)
- जनता, विद्यालय, कॉलिज एवं पुस्तकालय की सेवाएँ (Public School and College Library Services )
- नियुक्ति तथा प्रशिक्षण (Appointment and Training)
- अनुशासन एवं नियन्त्रण (Discipline and Control)
- छात्रवृत्तियों तथा अन्य अनुदानों का वितरण (Distribution of Scholarship and other aids)
निर्देशात्मक कार्य (Instructional Functions)
- अध्यापकों की व्यावसायिक शिक्षा तथा शैक्षिक प्रशासकों का प्रशासन (Administration of Professional Education of Teachers and Educational Administrators)
- श्रव्य दृश्य प्रशिक्षण तथा सेवायें (Audio Visual Training and Services)
- सेवारत अध्यापकों तथा विस्तार शिक्षा की व्यवस्था (Organization of in Service and Extension Education)
- शिक्षा के विभिन्न स्तरों का प्रशासन (Administration of Different Levels of Education)
- निर्देशात्मक कार्यक्रमों का संगठन (Organization of Instructional Functions)
- शिक्षा के विभिन्न प्रकारों का प्रशासन (Administration of Different Type of Education)
- शिक्षक कल्याण तथा छात्र सेवा (Teacher Welfare and Pupil Services)
- शिक्षा में मूल्यांकन तथा प्रमाण पत्र कार्यक्रम (Educational Evaluation and Certification)
- शिक्षा की विभिन्न शाखाओं का प्रशासन (Administration of Different Branches of Education)
शैक्षिक प्रशासन ही शिक्षा की नींव को सुदृढ़ करने में सहायक होता है। शैक्षिक प्रशासन के अनेक कार्यों का उल्लेख पहले किया जा चुका है। इन कार्यों को किसी सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। वर्तमान युग में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता जा रहा है। अतएव शिक्षा से सम्बन्धित सभी अंगों का भी विस्तृत होना स्वाभाविक है। उल्लिखित कार्यों में से कुछ मुख्य कार्यों का चयन किया जा सकता है, जिनका निर्वाह करने से शैक्षिक प्रशासन उत्तम कोटि का हो सकता है।
शिक्षा शासन के मुख्य कार्य (Major Functions of Educational Administration)
1. नीतियों तथा विधियों का निर्धारण (Formulating of Policies and Procedures) – नीतियों का निर्धारण करने के लिए शिक्षा मन्त्रालयों के साथ शिक्षा विभाग के सचिवों एवं निर्देशकों का रहना भी आवश्यक समझा जाता है। राज्यों की शिक्षा विषयक नीतियों का निर्धारण सामान्यतया शिक्षा सचिव ही करते हैं। शिक्षा की व्यवस्था सम्पूर्ण राज्य में निरन्तर गतिशील होती रहे, इसका उत्तरदायित्व शिक्षा सचिवों एवं निदेशकों पर ही होता है। सुविधा की दृष्टि से राज्य को मण्डलों में बाँट लिया जाता है, जिसका सम्पूर्ण प्रशासनिक कार्यभार शिक्षा उपनिदेशकों को सौंप दिया जाता है। वर्तमान भारत की विधान परिषदों में अध्यापकों तथा स्नातक क्षेत्र के भी निर्वाचित सदस्य होते हैं। वे मन्त्रियों को सलाह देते हैं। इन नीतियों का संचालन शैक्षिक प्रशासन ही करता है।
2. शिक्षा में वित्तीय व्यवस्था (Educational Financing) – शिक्षा की वित्तीय व्यवस्था में अनेक कार्यों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे बजट बनाना, सरकारी तथा गैर-सरकारी वित्तीय सहायता का हिसाब करना, कर्मचारियों के आय कर का ठीक विवरण रखना, शिक्षा की विस्तार योजनाओं पर व्यय की गई धनराशि का बजट बनाना, शिक्षा-स्तर की उन्नति हेतु कार्यक्रमों पर व्यय करना, सरकारी अनुदानों का हिसाब रखना, विद्यालयों की साज-सज्जा तथा आवश्यक वस्तुओं पर व्यय करना और उसका हिसाब रखना, शैक्षिक शोध-कार्यो पर व्यय करना आदि। इस प्रकार के वित्तीय कार्यों पर शैक्षिक प्रशासन नियन्त्रण रखता है। वित्तीय मामलों में धनराशि को स्वीकृत करने का अधिकार प्रशासकों को ही होता है। निदेशक, उपनिदेशक, जिला विद्यालय निरीक्षक विद्यालयों के लिए अनुदानों एवं अन्य कार्यों के लिए प्रदत्त धनराशि को स्वीकृत करते हैं। विद्यालयों के अन्दर प्रधानाचार्य वित्तीय व्यवस्था के लिए उत्तरदायी समझे जाते हैं। आजकल प्रत्येक जनपद में वित्तीय अधिकारी भी नियुक्त किए जाते हैं। विश्वविद्यालयों में वित्तीय अधिकारी नियुक्त होते हैं। राज्यों में शिक्षा निदेशकों के अतिरिक्त वित्तीय-निदेशक भी होते हैं। इन सभी अधिकारियों का कर्त्तव्य शिक्षा क्षेत्र के सभी वित्तीय कार्यों में सहायता करना है। शिक्षण संस्थाओं का कार्य वित्तीय सहायता के अभाव में रुके नहीं तथा स्वीकृत धनराशि का अपव्यय न किया जाए, वास्तव में इस बात पर पूर्ण ध्यान देना शैक्षिक प्रशासन का ही मुख्य कार्य होता है।
3. शिक्षा में न्याय प्रणाली (Educational Legislation)- केन्द्रीय एवं प्रान्तीय शिक्षा मन्त्रालय की नीतियों को शैक्षिक प्रशासन के माध्यम से ही कार्यान्वित किया जा सकता है। संसद तथा विधान सभाओं के लिए योग्य तथा कुशल व्यक्तियों को निर्वाचित करना शिक्षा की उत्तम व्यवस्था में ही सहायता करना समझा जाता है।
4. शिक्षा में नियोजन (Educational Planning) – स्वतन्त्र भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का प्रारम्भ राष्ट्रीय विकास के लिए ही किया गया। शिक्षा तो प्रजातन्त्र की रीढ़ कही जाती है। इसमें सन्देह नहीं कि किसी देश के राष्ट्रीय एवं शैक्षिक विकास में शैक्षिक योजना आधार का काम करती है। शैक्षिक संगठनों में लगे हुए सभी व्यक्तियों का योजना निर्माण में सहयोग होना चाहिए। शिक्षा की उत्तम व्यवस्था के लिए शैक्षिक प्रशासन को व्यापक तथा प्रगतिशील योजनाओं का निर्माण करना आवश्यक है। राष्ट्रीय, प्रान्तीय या जिला स्तरीय शैक्षिक योजनाओं को कार्यान्वित करना प्रशासन का प्रमुख कर्त्तव्य होना चाहिए।
5. संस्थाओं का प्रशासन (Administration of Institutions) – सम्पूर्ण राज्य में शिक्षा संस्थाओं की अत्यधिक संख्या होती है। इन संस्थाओं के प्रकारों में विविधता होती है। सरकारी, गैर-सरकारी, केन्द्रीय विद्यालय, मिशनरी स्कूल आदि अनेक प्रकार की संस्थाएँ होती हैं। इन संस्थाओं में शिक्षा की एकरूपता अभी तक नहीं है। कहीं दस जमा दो, कहीं हायर सेकेन्ड्री तो कहीं हाई स्कूल तथा इण्टर कक्षाओं की प्रणाली अपनाई जाती है। इन विविधताओं के होते हुए भी शिक्षण संस्थाओं की ठीक व्यवस्था करना शैक्षिक प्रशासन का ही कार्य होता है।
6. परीक्षाओं की व्यवस्था (Organisation of Examination) – शैक्षिक प्रशासन का मुख्य कर्त्तव्य परीक्षाओं की व्यवस्था करना तथा प्रमाण-पत्रों एवं उपाधि पत्रों की व्यवस्था करना है। उत्तर प्रदेश राज्य में माध्यमिक शिक्षा परिषद् लगभग दस लाख छात्रों की परीक्षा की व्यवस्था करती है। इसमें हाई स्कूल एवं इण्टर परीक्षा के संस्थागत तथा व्यक्तिगत दोनों प्रकार के परीक्षार्थी सम्मिलित होते हैं। यह परीक्षा परिषद् विश्व में सबसे बड़ी है। इसके अतिरिक्त राज्य में कुछ विभागीय परीक्षाएँ भी होती हैं, जिन्हें शैक्षिक प्रशासन संचालित करता है तथा उनकी व्यवस्था भी करता है। परीक्षाओं की व्यवस्था प्राथमिक, माध्यमिक एवं विश्वविद्यालीय स्तरों पर की जाती है, जिसके लिए शैक्षिक प्रशासन ही उत्तरदायी होता है।
7. आलेखन व्यवस्था (Maintenance of Record) – विद्यालयों, जिला विद्यालय निरीक्षकों एवं उपनिदेशकों के कार्यालयों में अध्यापकों तथा विद्यालयों से सम्बन्धित अनेक तथ्यों को सुरक्षित रखा जाता है। इस तथ्य सुरक्षा के कार्य को ही ‘मेन्टीनेन्स ऑफ रिकार्ड’ कहा जाता है। यह रिकार्ड विभिन्न प्रकार का होता है, जैसे—(1) अनुदान सम्बन्धी तथ्यों की सुरक्षा (भवन हेतु अनुदान, आवर्तक अनुदान, पुस्तकालय अनुदान, आदि का रिकार्ड), (2) पर्यवेक्षण तथा निरीक्षण रिकार्ड, (3) व्यक्तियों का रिकार्ड (व्यक्तिगत फाइल, सेवा रजिस्टर, प्रमाण-पत्र, पुरस्कार या सजा से सम्बन्धित तथ्यों की सुरक्षा), (4) परीक्षा रिकार्ड (बोर्ड या वि० वि० द्वारा परीक्षाओं का रिकार्ड, प्रमाण-पत्र वितरण, ट्रान्सफर सर्टिफिकेट आदि की सुरक्षा), (5) वित्तीय रिकार्ड (बजट का अनुमान) ।
रिकार्ड की सुरक्षा वास्तव में शैक्षिक प्रशासन के संचालन में सुरक्षा प्रदान करती है। ऐसे रिकार्ड जिनकी निश्चित समय की अवधि के उपरान्त आवश्यकता नहीं होती, उन्हें शिक्षा विभाग के नियमानुसार नष्ट कर दिया जाता है। शेष तथ्यों (Records) की सुरक्षा की जाती है।
8. कर्मचारी प्रबन्ध (Personel Management) – किसी भी संगठन अथवा संस्था को चलाने के लिए केवल एक नहीं, अपितु अनेक व्यक्तियों की कार्य दक्षता की आवश्यकता होती है। संगठन में लगे हुए व्यक्तियों के अनेक कार्यों का सम्पादन करना शैक्षिक प्रशासन का प्रमुख कर्त्तव्य है, जैसे—कर्मचारियों की नियुक्ति, योग्यता स्तर का ज्ञान, उत्तम कर्मचारियों को पुरस्कृत तथा प्रेरित करने की विधियाँ, सेवारत कर्मचारियों का प्रशिक्षण, सेवानियमों का निर्धारण, प्रोन्नति पेंशन, स्थायीकरण नियन्त्रण, गोपनीय आलेख, विद्यालय सम्बन्धी कार्यों में असाधारण सहयोग आदि अनेक कार्यों को शैक्षिक प्रशासन ही करता है।
9. पर्यवेक्षण तथा निरीक्षण करना (Supervision and Inspection)- संस्थाओं को सरकारी वित्तीय सहायता देने के साथ ही इस बात 999 को देखने की भी आवश्यकता प्रतीत हुई है, जिन्हें धन दिया जा रहा है, उन संस्थाओं में शैक्षिक स्तर ठीक रूप से अपनाया जा रहा है या नहीं। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण के कार्य को महत्वपूर्ण समझा जाने लगा। इस सम्बन्ध में एस० एन० मुखर्जी के अनुसार “वर्तमान युग में संस्थाओं का निरीक्षण करना ही पर्याप्त नहीं समझा जाता। शैक्षिक निर्देशन के लिए विभिन्न कार्यक्रमों की योजना बनाई जाती है। पर्यवेक्षण की व्यवस्था करना भी शैक्षिक प्रशासन का ही कार्य है।”
10. सहायक सेवाओं की व्यवस्था करना (Organization of Auxiliary Services)- सहायक सेवाएँ संस्थाओं के शैक्षिक कार्यों में सहायता करती है। “पुस्तकालय सेवा, शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन, मध्यान्ह भोजन, मुफ्त पुस्तक वितरण, पिछड़े हुए बालकों को छात्रवृत्तियाँ, स्वास्थ्य तथा चिकित्सा, विशिष्ट योग्यता हेतु प्रमाण-पत्र आदि अनेक प्रकार की सहायक सेवाओं की शैक्षिक प्रशासन ही व्यवस्था करता है। “
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