लोकसभा की शक्ति और कार्यों का वर्णन कीजिए।
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लोकसभा की शक्तियाँ और कार्य
शंसद लोकसभा, राज्यसभा तथा राष्ट्रपति से मिलकर बनती है, लेकिन लोकसभा संसद की सबसे अधिक महत्वपूर्ण इकाई है। लोकसभा की शक्तियाँ तथा उसके कार्यों का अध्ययन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-
1. लोकसभा की विधायी शक्ति – भारतीय संसद संघीय सूची, समवर्ती सूची, अवशेष विषयों और कुछ परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून का निर्माण करती है। संविधान के द्वारा साधारण अवित्तीय विधेयकों और संविधान संशोधन विधेयकों के सम्बन्ध में कहा गया है कि इस प्रकार के विधेयक लोकसभा या राज्यसभा दोनों में से किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं और दोनों सदनों से पारित होने पर ही राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजे जायेंगे। लेकिन इसके साथ ही दोनों सदनों में मतभेद उत्पन्न हो जाने पर राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाये जाने की व्यवस्था है और लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा की दुगनी से भी अधिक होने के कारण इस बैठक में विधेयक के भाग्य का निर्णय लोकसभा की इच्छानुसार ही होने की संभावनाएं अधिक हैं। इस प्रकार कानून निर्माण के सम्बन्ध में अन्तिम शक्ति लोकसभा को ही प्राप्त है और राज्यसभा साधारण अवित्तीय विधेयक को 6 महीनों तक रोके रखने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती है। व्यवहार के अन्तर्गत अब तक सभी महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जाते रहे हैं।
2. लोकसभा की वित्तीय शक्ति- भारतीय संविधान द्वारा वित्तीय क्षेत्र के सम्बन्ध में शक्ति लोकसभा को ही प्रदान की गयी है और इस सम्बन्ध में राज्यसभा की स्थिति बहुत गौण है। अनुच्छेद 109 के अनुसार वित्त विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जा सकते हैं, राज्यसभा में नहीं। लोकसभा से पारित होने के बाद वित्त विधेयक राज्यसभा में भेजा जाता है और राज्यसभा के लिए यह आवश्यक है कि उसे वित्त विधेयक की प्राप्ति की तिथि से 14 दिन के अन्दर अन्दर विधेयक लोकसभा को लौटा देना होगा। राज्यसभा विधेयक में संशोधन के लिए सुझाव दे सकती है, लेकिन उन्हें स्वीकार करना या न करना या न करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। संविधान यह भी व्यवस्था करता है कि यदि वित्त विधेयक पारित होने के बाद 14 दिन के अन्दर राज्यसभा सिफारिशों के बिना वित्त विधेयक लोकसभा को न लौटाये, तो निश्चित तिथि के बाद वह दोनों सदनों से पारित मान लिया जाएगा। वार्षिक बजट और अनुदान सम्बन्धी मांगें भी लोकसभा के समक्ष ही रखी जाती हैं और इस प्रकार के समस्त व्यय की स्वीकृति देने का अधिकार लोकसभा को ही प्राप्त है।
3. लोकसभा की कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति- भारतीय संविधान के द्वारा संसदात्मक व्यवस्था की स्थापना की गयी है। अतः संविधान के अनुसार संघीय कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिमण्डल संसद (व्यवहार में लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी होता है । मन्त्रिमण्डल केवल उसी समय तक अपने पद पर रहता है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। संसद अनेक प्रकार से कार्यपालिका पर नियन्त्रण रख सकती है। संसद के सदस्य मन्त्रियों से सरकारी नीति के सम्बन्ध में व सरकार के कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं तथा उनकी आलोचना कर सकते हैं। संसद सरकारी विधेयक अथवा बजट को अस्वीकार करके, मन्त्रियों के वेतन में कटौती का प्रस्ताव स्वीकार करके अथवा किसी सरकारी विधेयक में कोई संशोधन करके, जिससे सरकार सहमत न हो, अपना विरोध प्रदर्शित कर सकती है। वह कामगेको प्रस्ताव (Adjournement motions) पास करके भी सरकारी नीति की गलतियों को प्रकाश में ला सकती है। अन्तिम रूप में लोकसभा के द्वारा अविश्वास का प्रस्ताव पास करके कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिपरिषद् को उसके पद से हटाया जा सकता है।
कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति के अन्तर्गत ही लोकसभा संघीय लोक सेवा आयोग, भारत के नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, भाषा आयोग व अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग की रिपोर्ट पर विचार करती है।
4. लोकसभा संविधान संशोधन सम्बन्धी शक्ति- लोकसभा को राज्यसभा के साथ मिलकर संविधान में संशोधन परिवर्तन का अधिकार भी प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान के अधिकांश भाग में संशोधन का कार्य अकेली संसद के द्वारा ही किया जाता है। इस सम्बन्ध में प्रक्रिया यह है कि संशोधन का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है और प्रस्ताव के पारित होने के लिए आवश्यक है कि उसे संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग, अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाय। संशोधन प्रस्ताव के सम्बन्ध में संसद के दोनों सदनों में असहमति होने पर प्रस्ताव अस्वीकार समझा जायगा। संविधान के प्रस्ताव पर विचार के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने का कोई प्रावधान नहीं है।
5. निर्वाचक मण्डल के रूप में कार्य- लोकसभा निर्वाचक मण्डल के रूप में भी कार्य करती है। अनुच्छेद 54 के अनुसार लोकसभा के सदस्य राज्यसभा के सदस्यों तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के साथ मिलकर राष्ट्रपति को निर्वाचित करते हैं। अनुच्छेद 66 के अनुसार लोकसभा और राज्यसभा मिलकर उप-राष्ट्रपति का चुनाव करती हैं। लोकसभा के द्वारा सदन के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को निर्वाचित किया जाता है तथा उन्हें पदच्युत भी कर सकती है।
6. जनता की शिकायतों का निवारण – लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होकर आते हैं, अतः उनके द्वारा जनता की शिकायतें, जनता के विचार तथा भावनाएं सरकार तक पहुंचायी जाती हैं।
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