विद्यालय तथा घर (परिवार) के सम्बन्ध पर एक निबन्ध लिखिये।
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परिवार व विद्यालय के मध्य अच्छे सम्बन्ध का महत्व
बच्चे के व्यक्तित्व का पूर्ण व सुगठित विकास हो सके, इसके लिये घर व स्कूल के मध्य अच्छे सम्बन्ध होना आवश्यक है। यदि बालक के घर का वातावरण स्कूल से विपरीत होता है, तो इसका बालक के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप बालक सही, व गलत की पहचान नहीं कर पायेगा व संदेहपूर्ण स्थिति में बना रहेगा, इसलिये घर व स्कूल के मध्य आपसी सम्बन्ध होना अति आवश्यक है।
1. व्यक्तित्व विकास पर सकारात्मक प्रभाव – विद्यालय व घर के मध्य अच्छे सम्बन्ध का बालक के व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः स्कूल व घर के वातावरण में समानता होनी चाहिये। बालक जो बातें घर में सीख रहा है, उनका अभ्यास वह अपने व्यवहार में विद्यालय में ला सकता है, इसी प्रकार विद्यालय में सीखे जाने वाले ज्ञान की पुनरावृत्ति व अभ्यास वह घर में कर सकता है।
2. विकास हेतु निर्देशन की व्यवस्था – परिवार व विद्यालय के अच्छे सम्बन्ध होने का दूसरा लाभ यह है कि अभिभावकों को बालक के व्यवहार की जानकारी प्राप्त होती है, जिससे उन्हें बालक के विकास के लिये निर्देशन प्राप्त होता है। ऐसा तभी हो सकता है, जब घर और विद्यालय के मध्य स्वस्थ सम्बन्ध होंगे। माता-पिता अध्यापक की सलाह पर बालकों को निर्देशित भी कर सकते हैं। यदि बालकों को समय-समय पर उचित निर्देशन प्राप्त होगा तो वे अपनी रुचियों, योग्यताओं को सही दिशा में विकसित कर पायेंगे।
3. अच्छी आदतों का विकास – यदि घर व स्कूल में अच्छा समायोजन होगा तो उसमें अच्छी आदतों का विकास होगा। बालक में क्रोध, चिड़चिड़ापन, गुस्सा जैसे व्यवहार नहीं पनप पायेंगे। अतः विद्यालय व घर के मध्य स्वस्थ सम्बन्धों का होना अति आवश्यक है।
4. समायोजन में सहायक – बालक घर में कम सदस्यों के साथ रहता है, जिसके कारण समायोजन घर में अच्छा रहता है। जब बालक विद्यालय जाने लगता है तो अध्यापकों, मित्रों व साथियों के साथ समायोजन करना होता है। बालक समुदाय व समाज में कैसे समायोजन रखता है, इसकी जानकारी भी माता-पिता को विद्यालय से ही प्राप्त होती है। अतः परिवार व विद्यालय में अच्छे सम्बन्ध होना नितान्त आवश्यक है।
5. बालकों के गुणों व अवगुणों की जानकारी प्राप्त होना – स्कूल व घर के मध्य अच्छे सम्बन्ध होने से माता-पिता को अपने बालक के गुण व अवगुण की जानकारी प्राप्त होती रहती है, जिससे वे उन्हें सुधार सकते हैं। ऐसी स्थिति में अध्यापकों का सहयोग भी प्राप्त किया जा सकता है।
घर (परिवार) या समुदाय व विद्यालय के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिये आवश्यक तत्व (Important Elements for Good Home-School Relationship)
घर व विद्यालय के मध्य अच्छे सम्बन्धों का निर्माण करने के लिये निम्नलिखित तत्व होना आवश्यक हैं-
1. अभिभावक सहभागिता – आज के युग में माता-पिता अपने बालकों को शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। माता-पिता अपने बालकों की शिक्षा के बारे में चिन्तित रहते हैं। माता-पिता बालक की शिक्षा में जितनी अधिक सक्रिय भूमिका निभायेंगे, विद्यालय व परिवार के मध्य अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो सकेंगे।
2. अध्यापक व शिक्षक का साथ कार्य करना – अभिभावक व अध्यापकों को एक साथ कार्य करना चाहिये। प्रायः अभिभावकों को विद्यालय में की जाने वाली क्रियाओं के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है। ऐसी स्थिति में सदैव अभिभावकों के मध्य विद्यालयों की गतिविधियों को लेकर असन्तोष बना रहता है। ऐसी स्थिति में विद्यालय में होने वाली क्रियाओं में अभिभावकों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिये। विद्यालय व घर किसी एक योजना पर एक साथ कार्य करें तो विद्यालय व परिवार के मध्य संतोषजनक सम्बन्ध विकसित होंगे।
3. अभिभावक शिक्षक सम्प्रेषण – विद्यालय में बालकों की उपलब्धि अच्छी बनी रहे, इसके लिये आवश्यक है कि विद्यालय व परिवार में सम्प्रेषण बना रहे। विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों में अभिभावकों की अधिक से अधिक सहभागिता हो। अभिभावक व अध्यापक के बीच लगातार सम्पर्क होना आवश्यक है। दोनों के मध्य प्रभावी सम्प्रेषण होते रहना चाहिये। यह सम्प्रेषण डायरी, दूरभाष, व्यक्तिगत मेल-मिलाप द्वारा विकसित किया जा सकता है।
4. आकस्मिक भ्रमण – अध्यापक को घर पर कभी-कभी भ्रमण करना चाहिये। उन्हें यह देखना चाहिये कि जब बालक विद्यालय में नहीं होता है तो वह घर में किस तरह अपना समय व्यतीत करता है। प्रायः अध्यापक बच्चों को स्कूल के लिये बुलाने या कुछ सूचना देने के लिये घर आते हैं। अध्यापकों के लिये आवश्यक है कि वह माता द्वारा दी जाने वाली जानकारियों को अपने पास नोट करें। यही जानकारियाँ विद्यालय में बालक कैसे व्यवहार करेगा की जानकारी देंगी, जैसे-माँ में ने कहा कि कल हम देर रात से सोये, क्योंकि घर में मेहमान आ गये थे। यह वाक्य इस बात का संकेत देता है कि बालक विद्यालय में किस प्रकार का व्यवहार करेगा।
5. आयोजित सम्मेलन – आकस्मिक भ्रमण व व्यक्तिगत बातचीत के द्वारा अभिभावक व अध्यापकों के मध्य सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। विद्यालय प्रशासन को चाहिये कि वह समय-समय पर गोष्ठी की योजना तैयार करे। गोष्ठी का एक लाभ यह भी है कि इसमें बालकों की विभिन्न समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जाता है। अभिभावक अन्य व्यक्तियों के विचार भी ग्रहण कर सकते हैं।
6. निरीक्षण प्रपत्र – अभिभावकों को विद्यालय में भ्रमण के दौरान निरीक्षण प्रपत्र का प्रयोग करना चाहिये। यह प्रपत्र कांफ्रेन्स के समय में भी प्रयोग किये जा सकते हैं। निरीक्षण प्रपत्र के प्रयोग से अभिभावक यह जान सकते हैं कि अपने बच्चे की समान आयु के बच्चे क्या पसंद करते हैं ? उनका बच्चा व अन्य बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करता है ? अध्यापिका बच्चों को कैसे निर्देशित करती हैं ?
घर (परिवार) या समुदाय व विद्यालय के मध्य अच्छे सम्बन्ध स्थापित करने की विधियाँ (Methods for Maintain Good Home-School Relationship)
पर व विद्यालय में स्वस्थ सम्बन्ध स्थापित करने की कई विधियाँ हैं, जिनके द्वारा दोनों के मध्य सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते हैं-
व्यक्तिंगत विधियाँ (Individual Methods)
इस उपागम में अभिभावक व अध्यापक दोनों व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क में रहते हैं व एक-दूसरे की समस्याओं को जानकर उसे दूर करने का प्रयास करते हैं। यह विधि दो तरह से हो सकती है-
1. अध्यापकों द्वारा घर पर जाना – इस विधि में अध्यापक स्वयं बच्चों के घर जाकर अभिभावकों से बातचीत करता. है व उनकी समस्याओं को जानने का प्रयास करता है। इस प्रकार के भ्रमण से अध्यापक को बालक के जानकारी भी हो जाती है। अध्यापक जब भी छात्र के घर का भ्रमण करे तब उसे निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये-
- ऐसे समय पर जाना चाहिये, जब अभिभावक घर पर उपलब्ध हो सकें।
- अभिभावक जो बिन्दु बता रहे हैं, उन्हें लिखते जाना चाहिये।
- यदि कोई ऐसी समस्या जो भ्रमण द्वारा न हल की जाये, वह अभिभावकों के साथ बैठक करके निश्चित करनी चाहिये।
- अध्यापक को अभिभावकों के विचारों को स्वीकार करना चाहिये।
- समस्याओं को सुलझाने के लिये अभिभावकों को दिशा-निर्देश देना चाहिये व उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिये।
- अभिभावकों व बच्चों की समस्याओं को विश्वासपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहिये ।
2. अभिभावकों का विद्यालय जाना— यह भ्रमण अभिभावकों द्वारा किया जाता है। इस विधि में अभिभावक अपनी व्यक्तिगत समस्याओं, जो बच्चों से सम्बन्धित हैं, के समाधान हेतु अध्यापकों से सम्पर्क करते हैं। यह भ्रमण विद्यालय में होता है। अध्यापकों के घर जाकर छात्र समस्याओं को हल नहीं करना चाहिये। अभिभावकों द्वारा विद्यालय का दौरा करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखना चाहिये-
- अभिभावकों को यह जानने का प्रयास करना चाहिये कि अध्यापक बालकों को कैसे समझाता है।
- अभिभावकों को विद्यालय में जाकर यह जानने का प्रयास करना चाहिये कि उनके बालकों की उम्र के अन्य बच्चे क्या महसूस करते हैं।
- क्या बालक अपनी विशिष्ट योग्यताओं को प्रदर्शित करता है ?
- अभिभावकों को यह जानने का प्रयास करना चाहिये कि बच्चा अपने कार्यों को कितनी आत्मनिर्भरता से करता है
- बच्चा किसी कार्य को करने में कितनी देर लगाता है ?
- बच्चा किस तरह की भाषा का प्रयोग करता है ?
ये सभी जानकारियाँ विद्यालय व घर के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने में सहायक होती हैं।
सामूहिक विधियाँ (Collective Methods)
इसमें अध्यापक अभिभावकों के एक समूह से बातचीत करता है।
परिचर्चा- इस विधि में अध्यापक अभिभावकों के एक समूह को विद्यालय में बुलाकर सबसे सम्बन्धित परिचर्चा करते हैं। अध्यापक व अभिभावक दोनों ही अपनी-अपनी समस्याओं को एक-दूसरे के सामने प्रस्तुत करते हैं व विचार-विमर्श करते हैं।
अभिभावक-अध्यापक बैठक- इसमें सभी बच्चों के अभिभावक किसी एक निर्धारित तिथि पर विद्यालय आते हैं व एक बैठक करते हैं। सभी अभिभावक एक-दूसरे की समस्याओं को सुनते हैं व सुझाव देते हैं। इस बैठक में अभिभावक शिक्षक से भी सम्पर्क करते हैं। अभिभावक अपनी समस्याओं को अध्यापकों को बताते हैं व अध्यापक भी उनके बालक की प्रगति के बारे में जानकारी देते हैं।
बैठक आयोजित करते समय ध्यान रखने योग्य तथ्य
- अध्यापक को यह ध्यान रखना चाहिये कि जो भी समस्या बैठक में प्रस्तुत की जाये, वह सभी से जुड़ी हो।
- बैठक के उद्देश्य पूर्व से ही निर्धारित कर लेने चाहियें।
- बैठक का समय ऐसा होना चाहिये, जिसमें अधिक से अधिक अभिभावक आ सकें।
- बैठक की तिथि व समय की जानकारी एक सप्ताह पूर्व ही दे देनी चाहिये।
- जिस बिन्दु पर अभिभावकों से बातचीत करनी है, उनको पहले से ही तैयार कर लेना चाहिये।
डायरी- डायरी भी अभिभावक-शिक्षक सम्बन्ध का एक माध्यम है। प्रायः डायरी में शिक्षक आवश्यक सूचनायें लिखकर देते हैं, जिन्हें अभिभावक घर पर पढ़ लेते हैं। छोटे बच्चों के लिये डायरी एक उपयोगी साधन है। अध्यापक छोटे बच्चों हेतु गृहकार्य, अवकाश की सूचना जिन्हें बालक घर में नहीं बता पाते हैं, वह लिख दी जाती है। घर पर अभिभावक उन सूचनाओं को पढ़ लेते हैं। इस प्रकार अभिभावक-बालक के मध्य सम्बन्ध बना रहता है।
प्रगति आख्या- इसके द्वारा भी माता-पिता को बच्चे की प्रगति की जानकारी मिल जाती है। अभिभावकों को बच्चे के द्वारा किये अध्ययन जानकारी, अध्ययन लेखा-जोखा व परिणाम प्रगति आख्या द्वारा ही प्राप्त होते हैं। समय-समय पर प्रगति आख्या अभिभावकों के पास सूचना हेतु भेजी जाती है, जिससे अभिभावकों को अपने बच्चों की प्रगति की जानकारी प्राप्त हो सके।
विद्यालय व घर के सम्बन्धों को सुधारने हेतु कुछ सुझाव (Suggestions for Improving Home-School Relationship)
विद्यालय जिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील है, उन्हें घर के सहयोग के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है। निम्नलिखित उपायों को अपनाकर घर और विद्यालय के मध्य स्वस्थ सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते हैं-
1. विद्यालय में बालक की प्रगति की आख्या समय-समय पर घर को भेजनी चाहिये ।
2. शिक्षकों को चाहिये कि अभिभावक की परिस्थितियों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार-विमर्श करें।
3. बालकों में विद्यालय व अध्यापकों के प्रति स्वस्थ अभिवृत्ति विकसित करनी चाहिये ।
4. विद्यालय द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में अभिभावकों का सहयोग लेना चाहिये।
5. प्रत्येक विद्यालय में अभिभावक व शिक्षक संघ स्थापित किया जाना चाहिये। इस प्रकार संघ के माध्यम से अभिभावक विद्यालयों की क्रिया-कलापों में रुचि लेने लगते हैं।
6. विद्यालय अधिकारियों को अभिभावकों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिये। शिक्षक का अभिभावकों के साथ व्यवहार सहानुभूतिपूर्वक होना चाहिये। इस प्रकार ही शिक्षक अभिभावकों का विश्वास जीत सकेंगे।
7. विद्यालय द्वारा समय-समय पर शिक्षकों, अभिभावकों व बालकों के लिये सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिये।
8. समय-समय पर अभिभावक-शिक्षक बैठक का आयोजन होना चाहिये। इस बैठक में बच्चों से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार किया जा सकता है; जैसे-बाल अपराध, अनुशासन, कक्षा से भागने की आदत आदि ।
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