शिक्षा मनोविज्ञान / EDUCATIONAL PSYCHOLOGY

विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले भाषा-विकास | language development at different stages in Hindi

विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले भाषा-विकास | language development at different stages in Hindi
विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले भाषा-विकास | language development at different stages in Hindi
विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले भाषा-विकास का वर्णन करो।

कार्ल सी० गैरिसन के अनुसार- स्कूल जाने से पहले बच्चों में भाषा-ज्ञान का विकास उनके बौद्धिक विकास की सबसे अच्छी कसौटी है। भाषा का विकास भी विकास के अन्य पहलुओं के लाक्षणिक सिद्धान्तों के अनुसार होता है। यह विकास परिपाक तथा अधिगम दोनों में फलस्वरूप होता है और इनमें नई अनुक्रियायें सीखनी होती हैं और पहले की सीखी हुई अनुक्रियाओं का परिष्कार भी करना होता है।”

(i) शैशवावस्था में भाषा-विकास- जन्म के समय शिशु क्रन्दन करता है। यही उसकी पहली भाषा होती है। इस समय न तो स्वरों का ज्ञान होता है और न व्यंजनों का। 125 सप्ताह तक शिशु जिस प्रकार ध्वनियाँ निकालता है, उसमें स्वरों की संख्या अधिक होती है। 10 मास की अवस्था में शिशु पहला शब्द बोलता है, जिसे वह बार-बार दोहराता है। एक वर्ष तक शिशु की भाषा समझना कठिन होता है। केवल अनुमान से ही उसकी भाषा समझी जा सकती है। मैक-कॉरथी (Mc-Corthy) ने 1950 में एक अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि 18 मास के बालक की भाषा 26% समझ में आती है। आरम्भ में बालक एक शब्द का वाक्य बोलता है। छोटे शिशु पानी के लिये ‘मम’ कहते हैं और इसी प्रकार एक शब्द से वाक्यों का बोध कराते हैं। स्किन्नर के अनुसार, “आयु-स्तरों पर बच्चों के शब्द ज्ञान के गुणात्मक पक्षों के अध्ययन से पता चलता है कि शब्दों की परिभाषा के स्वरूप में वृद्धि होती है।” शैशवावस्था में भाषा विकास जिस ढंग से होता है, उस पर परिवार की संस्कृति तथा सभ्यता का प्रभाव पड़ता है। शिशु की भाषा पर उसकी बुद्धि तथा विद्यालय का वातावरण भी अपनी भूमिका प्रस्तुत करते हैं। एनास्ट्सी ने कहा है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियों का भाषा-विकास शैशवकाल में अधिक होता है। जिन बच्चों में गूंगापन, हकलाना, तुतलाना आदि दोष होते हैं, उनका भाषा-विकास धीमो गति से होता है।

(ii) बाल्यकाल में भाषा विकास – आयु के साथ-साथ बालकों के सीखने की गति में वृद्धि होती है। प्रत्येक क्रिया के समय विस्तार में कमी होती जाती है। बाल्यकाल में बालक शब्द से लेकर वाक्य-विन्यास की सभी क्रियायें सीख लेवा है। हाइडर बन्धुओं ने अध्ययन करके यह परिणाम निकाला कि (1) लड़कियों की भाषा का विकास लड़कों की अपेक्षा अधिक तेजी से होता है। (2) लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के वाक्यों में शब्द संख्या अधिक होती है। (3) अपनी बात को ढंग से प्रस्तुत करने में लड़कियाँ अधिक तेज होती हैं।

(iii) किशोरावस्था में भाषा-विकास- किशोरावस्था में अनेक शारीरिक परिवर्तनों से जो संवेग उत्पन्न होते हैं, भाषा का विकास भी उनसे प्रभावित होता है। किशोरों को साहित्य पढ़ने की रुचि उत्पन्न हो जाती है। उनमें कल्पना की शक्ति का विकास होने से वे कवि, कहानीकार, चित्रकार बनकर कविता, कहानी तथा चित्रों से अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। किशोरावस्था में लिखे गये प्रेम पत्रों की भाषा में भावुकता का मिश्रण होने से भाषा सौन्दर्य प्रस्फुटित होता है। एक-एक शब्द अपने स्थान पर सार्थक होता है।

किशोरों का शब्दकोश (Vocabulary) भी विस्तृत हो जाता है। भाषा तो पशुओं के लिये भी आवश्यक है। वे भी भय, भूख और कामेच्छा को आँगिक एवं वाँचिक क्रन्दन से प्रकट करते हैं, फिर किशोर तो विकसित सामाजिक प्राणी है। भाषा को न केवल लिखकर अपितु बोलकर एवं नाटकीय तत्व उत्पन्न करके वह भाषा के अधिगम (Learning) को विकसित करता है।

किशोर कई बार गुप्त (Code) भाषा को भी विकसित करते हैं। यह भाषा कुछ प्रतीकों के माध्यम से लिखी-बोली जाती है, जिसका अर्थ वे ही जानते हैं जिन्हें ‘कोड’ मालूम है, इसी प्रकार बोलने में भी प्रतीकात्मकता निर्माण कर लेते हैं। भाषा के माध्यम से किशोर की संकल्पनाओं (Conception) का विकास होता है। ये संकल्पनायें उनके भावी जीवन की तैयारी का प्रतीक होती हैं।

भाषा के विकास का किशोर के चिन्तन पर भी प्रभाव पड़ता है। वाटसन ने इसे व्यवहार का एक अंग माना है। भाषा के माध्यम से किशोर अनुपस्थित परिस्थिति का वर्णन करता है और साथ ही साथ विचार-विमर्श के माध्यम के रूप में प्रयोग करता है। किशोरावस्था तक व्यक्ति जीवन में भाषा का प्रयोग किस प्रकार किया जाये, कैसे किया जाये आदि रहस्यों को जान लेता है।

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Anjali Yadav

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