शिक्षण विधि का क्या अर्थ है? उसके महत्व को बताइयें?
शिक्षण विधि से तात्पर्य शिक्षक द्वारा निर्देशित ऐसी क्रियाओं से है जिनकें परिणामस्वरूप छात्र कुछ सीखते हैं इस प्रकार शिक्षण विधि अनेक क्रियाओं का एक पुंज है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप छात्र कुछ ज्ञानार्जन करता है। शिक्षण विधि में प्रक्रिया होने के कारण इसमें कई सोपान होते है कई सोपान ऐसे होते है जो कई शिक्षण विधियों में पायें जाते है इन सोपानों को ठीक से व्यवस्थित करना शिक्षक का कार्य है।
शिक्षण विधि का महत्व किसी विषय के शिक्षण में वही महत्व है जो किसी निर्दिष्ट स्थान तक पंहुचनें के लिये मार्ग होता है एक सैनिक को जिस प्रकार विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान होना आवश्यक है उसी प्रकार उसे उन अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग की विधियों से अवगत होना भी आवश्यक है। तभी वह युद्ध क्षेत्र में कुछ कर सकता है इस प्रकार शिक्षक को विषयवस्तु व पद्धति दोनो का ही ज्ञान होना आवश्यक है शिक्षण विधि के महत्व अलग-अलग विद्वानों ने इस प्रकार किया है-
1. जान डी.वी.- “निष्कर्ष के विकास के लिये पद्धति पाठ्यवस्तु को सुव्यस्थित करने की विधि है।”
2. वेस्ले तथा रोवेस्की- “शिक्षक को जहां विषय-वस्तु का ज्ञान होना आवश्यक है, वहीं उसे शिक्षण विधि का भी ज्ञान होना चाहिए। शिक्षण विधि वस्तु के माध्यम से कार्य करती है और वस्तु तभी कार्य कर सकती है जब उसमें किसी शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाए”
3. बाईनिंग एवं बाईनिंग- शिक्षण शास्त्र को शिक्षण की प्रक्रिया का स्थिर पहले न माना जाए, वरन् उसे शिक्षा के गत्यात्मक कार्य के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए।
4. सैकण्डरी एजूकेशन कमीशन- “चाहे जितना उत्तम पाठ्यक्रम बनाया जाए, चाहे जितने वैज्ञानिक पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाए, जब तक अच्छी शिक्षण विधि का प्रयोग अच्छे शिक्षक द्वारा नही किया जाता है, सब व्यर्थ हैं।”
इस प्रकार शिक्षक के लिये जहां विषय वस्तु का ज्ञान आवश्यक है, वहीं उसे आधुनिक शिक्षण पद्धतियों का ज्ञान होना भी आवश्यक है इन आधुनिक पद्धतियों में उसे उचित तथा अच्छी पद्धति का चयन करना चाहिए।
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