शिक्षा मनोविज्ञान / EDUCATIONAL PSYCHOLOGY

संवेगों के कितने प्रकार हैं ? संवेगों का शिक्षा में क्या महत्व है ?

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संवेगों के कितने प्रकार हैं ? संवेगों का शिक्षा में क्या महत्व है ?

संवेगों के कितने प्रकार हैं ? संवेगों का शिक्षा में क्या महत्व है ?

संवेगों के प्रकार (Kinds of Emotions)

संवेगों का सम्बन्ध मूलप्रवृत्तियों से होता है। चौदह मूलप्रवृत्तियों के चौदह ही संवेग हैं, जो इस प्रकार हैं-

  1. क्रोध (Anger),
  2. वात्सल्य (Tender Emotion),
  3. कामुकता (Lust),
  4. आत्महीनता (Negative Self-feeling),
  5. एकाकीपन (Loneliness),
  6. अधिकार भावना (Feeling of Ownership),
  7. आमोद (Amusement),
  8. भय (Fear),
  9. घृणा (Disgust),
  10. करुणा व दुःख (Distress),
  11. आश्चर्य (Wonder),
  12. आत्माभिमान (Positive Self-feeling),
  13. भूख ( Hunger),
  14. कृतिभाव (Creativeness)

संवेगों का शिक्षा में महत्व (Importance of Emotions in Education)

शिक्षा में संवेगों के महत्व की व्याख्या करते हुए रॉस (Ross) ने लिखा है- “शिक्षा के आधुनिक मनोविज्ञान में संवेगों का प्रमुख स्थान है और शिक्षण विधि में जो प्रगति आजकल हो रही है, उसका कारण सम्भवतः किसी अन्य तथ्य की अपेक्षा यह अधिक है। संवेग हमारे सब कार्यों को गति प्रदान करते हैं और शिक्षक को उन पर ध्यान देना अति आवश्यक है।”

शिक्षक, बालकों के संवेगों के प्रति ध्यान देकर उनका क्या हित कर सकता है, इसका वर्णन निम्न पंक्तियों में किया जा रहा है-

1. शिक्षक बालकों को संवेगों पर नियन्त्रण करने की विधियाँ बताकर, उनको शिष्ट और सभ्य बना सकता है।

2. शिक्षक, बालकों में उचित संवेगों का विकास करके, उनमें उत्तम विचारों, आदर्शों, गुणों और रुचियों का निर्माण कर सकता है।

3. झा (Jha) के अनुसार शिक्षक, बालकों के संवेगों को परिष्कृत करके उनको समाज के अनुकूल व्यवहार करने की क्षमता प्रदान कर सकता है।

4. झा (Jha) के अनुसार शिक्षक, बालकों की मानसिक शक्तियों के मार्ग को प्रशस्त करके, उन्हें अपने अध्ययन में अधिक क्रियाशील बनने की प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं।

5. रॉस (Ross) के अनुसार शिक्षक, बालकों में उपयुक्त संवेगों को जाग्रत करके, अपने शिक्षण को सफल बना सकता है; उदाहरणार्थ—वह अपने गणित के शिक्षण को तभी सफल बना सकता है, जब वह बालकों में आश्चर्य का संवेग उत्पन्न कर दे।

6. शिक्षक, बालकों के संवेगों को जाग्रत करके, पाठ में उनकी रुचि उत्पन्न कर सकता है।

7. शिक्षक, बालकों के संवेगों का ज्ञान प्राप्त करके, उपयुक्त पाठ्यक्रम का निर्माण करने में सफलता प्राप्त कर सकता है।

8. शिक्षक, बालकों के भय, क्रोध आदि अवांछनीय संवेगों का मार्गान्तीकरण करके, उनको अच्छे कार्य करने के लिये प्रेरित कर सकता है।

9. ब्लेयर तथा अन्य (Blair and Others) के अनुसार शिक्षक, बालकों में उपयुक्त संवेगों को जाग्रत करके, उनके महान कार्यों की करने की प्रेरणा दे सकता है।

10. रॉस (Ross) के अनुसार शिक्षक, बालकों में वांछनीय संवेगों का विकास करके, उनमें कला, संगीत, साहित्य और अन्य सुन्दर वस्तुओं के प्रति प्रेम उत्पन्न कर सकता है।

संवेग के अभाव में मानव मस्तिष्क अपनी किसी भी शक्ति को प्राप्त करने में असमर्थ रहता है। अतः शिक्षक का यह प्रमुख कर्त्तव्य है कि बालकों में उचित संवेगों का निर्माण और विकास करे। बी० एन० झा के अनुसार- “बालकों में संवगों को जाग्रत करने का शिक्षक का कार्य बहुत महत्वपूर्ण है। “

“The teacher’s task in arousing the emotions in children is very important.” – B. N. Jha

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Anjali Yadav

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