सामाजिक विज्ञान का एक विषय के रूप में विकास को दर्शाते हुए इसका इतिहास, अर्थशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान के साथ सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये ।
सह-सम्बन्ध या समवाय का अर्थ है- सम्बन्ध स्थापित करना। शिक्षा में सह-सम्बन्ध का अर्थ है – पृथक-पृथक विषयों में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करके पढ़ाया जाना। डॉ. देवकी तिवारी ने सह-सम्बन्ध का अर्थ निम्न प्रकार स्पष्ट किया है ‘सह-सम्बन्ध तथा समन्वय के बारे में विचार स्थापित करना।” शिक्षा – ” क्षेत्र में सह-सम्बन्ध स्थापित करने से तात्पर्य “विभिन्न विषयों को पृथक-पृथक न पढ़कर एक-दूसरे से सम्बन्ध स्थापित कर पढ़ाना सह-सम्बन्ध कहलाता है।”
प्रो.वी.जी. घाटे के अनुसार :- “विभिन्न विषयों को पृथक संकुचित क्षेत्रों में रखकर नहीं बल्कि उन्हें अन्य विषयों से सह-सम्बन्धित करके पढ़ाया जाना चाहिए।”
हरबर्ट महोदय के अनुसार :- पाठ्यक्रम के विषयों को इस प्रकार व्यवस्थित करना चाहिए जिससे एक विषय के शिक्षण से दूसरे विषय के ज्ञान में सहायता मिल सकें।
गुचाऊ महोदय के अनुसार :- “घटनाओं तथा विचारों का मानव पटल पर स्थानीय व उपयोगी प्रभाव तभी पड़ता है, जब मन उन्हें आगुन्तक घटनाओं व विचारों के साथ व्यवस्थित व सम्बद्ध करता हैं।”
प्रो. बघेला के अनुसार :- “वस्तुत: प्राकृतिक रूप से सह-सम्बन्धित विषयों के अध्ययन-अध्यापन के समय उनके परस्पर सहज सम्बन्ध की प्रक्रिया को ही सह सम्बन्ध कहा जाना चाहिए।”
(i) इतिहास व सामाजिक विज्ञान का सह-सम्बन्ध – इतिहास राजनीतिक कार्यों का विश्लेषण है। इतिहास न केवल अतीत की घटनाओं का विश्लेषण करता है, वरन् समाज की धारणाओं का भी चित्रण करता हैं। यह अद्वितीय घटनाओं का विश्लेषण व उनकी व्याख्या केवल इसी उद्देश्य से करता है, जिससे कि सामाजिक जीवन की धारा को समझने में सहायता मिल सकें। वर्तमान युग के इतिहासकार समाज का समग्र रूप से अध्ययन करते हैं। इससे आधुनिक समाज के व्यवहार को समझने में सहायता मिलती है।
पालबर्थ के अनुसार- “संस्कृति व संस्थाओं का इतिहास सामाजिक अध्ययन को समझने व सामग्री जुटाने में सहायक होता है।” आरनोल्ड टायनबी की पुस्तक “ए स्टडी ऑफ हिस्ट्री” सामाजिक विज्ञान में बड़ी सहायक सिद्ध हुई है। आजकल समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी इतिहास का अध्ययन किया जा रहा है। इतिहासकार सामाजिक विज्ञान के द्वारा दिये गये सामाजिक संगठन के सिद्धान्त को अपनी सामग्री बताते हैं व उन सिद्धान्तों के आधार पर ऐतिहासिक काल की विवेचना करते हैं। इतिहास दर्शन तो सामाजिक विज्ञान में बड़ा ही उपयोगी सिद्ध हुआ है। इस प्रकार से स्पष्ट हो जाता है कि इतिहास व सामाजिक विज्ञान में घनिष्ठता हैं।
इतिहास व सामाजिक विज्ञान में घनिष्ठता होते हुए भी इनमें अन्तर है। सामान्यतः इतिहास में उन घटनाओं का अध्ययन किया जाता है जो अनोखी व असाधारण है। इसके विपरीत सामाजिक विज्ञान उन घटनाओं का विशेष अध्ययन करता है जिसकी पुनरावृत्ति अधिक होती है। इतिहास देशकाल विशेष की घटनाओं का चित्रण करता है। जबकि सामाजिक विज्ञान देशकाल विशेष की घटनाओं से अपने को मर्यादित न रखते हुए सार्वभौम नियमों की खोज करता हैं।
इतिहास व सामाजिक विज्ञान में स्वरूप की दृष्टि से भी अन्तर है। इतिहास मूर्त है जबकि सामाजिक विज्ञान अमूर्त विज्ञान है। पार्क के अनुसार” इसी अर्थ में इतिहास मानव अनुभव व मानव प्रकृति का मूर्त व अमूर्त विज्ञान है। इतिहास में घटनाओं, संस्कृतियों आदि का इतिवृत्तात्मक वर्णन होता है। उदाहरण के लिए जहाँ इतिहास युद्धों का केवल वर्णन करता है या अधिक से अधिक उनके स्थूल कारण बताता है, वहाँ सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जो युद्ध को प्रोत्साहित करती हैं।”
(ii) सामाजिक विज्ञान व अर्थशास्त्र – मनुष्य के सामाजिक जीवन के विविध रूप हैं अतः वे परस्पर इतने आश्रित हैं कि उन्हें पृथक करके अध्ययन करना सम्भव नहीं। अतः काम्टे ने सामाजिक विज्ञान की परिभाषा इस प्रकार दी है। केवल सामाजिक विज्ञान ही एक ऐसा विज्ञान है, जिसमें सामाजिक जीवन के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, वैधानिक समस्त रूपों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र सामाजिक जीवन के आर्थिक रूप का अध्ययन है। वास्तव में सामाजिक विज्ञान में सभी सामाजिक विज्ञानों के मूल सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है, जबकि अर्थशास्त्र में इनमें से एक का। सामाजिक अध्ययन का विकास होना बाकी है, जबकि अर्थशास्त्र उन्नत अवस्था तक पहुंच गया है, अतः अर्थशास्त्र का पृथक अध्ययन आवश्यक है। यह विशेषीकरण वैज्ञानिक पूर्णता से आवश्यक है। यद्यपि इसे पूरे तौर पर स्वतन्त्र विज्ञान मानना उचित नहीं जान पड़ता। के. के. ड्यूवेट के अनुसार ” अर्थशास्त्र व सामाजिक अध्ययन को पूर्णतः पृथक करने का कोई प्रश्न ही उठता हैं।”
अर्थशास्त्र मानव के आर्थिक प्रयत्नों और उनकी सफलताओं का अध्ययन करता है। आर्थिक क्रियाओं की सफलता, अतीत की आर्थिक घटनाओं और उनकी परिस्थितियों ज्ञान पर आधारित होती है। अतः अर्थशास्त्र का समाज की कई महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंध स्थापित किया जा सकता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में चन्द्रगुप्त के समय की आर्थिक परिस्थितियों का बोध होता है। सामाजिक अध्ययन के शिक्षण में अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों को प्रयुक्त किया जा सकता है। आर्थिक कार्यों का परिणाम सामाजिक रूप में परिलक्षित होता है।
(iii) सामाजिक विज्ञान व नागरिक शास्त्र का सम्बन्ध – सामाजिक विज्ञान तथा नागरिक शास्त्र का अति निकट का सम्बन्ध है। सामाजिक विज्ञान में समाज का व्यापक अध्ययन होता है। जबकि नागरिक शास्त्र में समाज के नागरिकता सम्बन्धी पहलू का अध्ययन होता है। सामाजिक विज्ञान का सम्बन्ध सारे राष्ट्रीय व मानवीय व्यवहारों से है। नागरिकशास्त्र मनुष्य को नागरिक मानकर ही उसके व्यवहार का अध्ययन करता है। इस प्रकार नागरिक शास्त्र सामाजिक विज्ञान की संतान है। एक दूसरी दृष्टि से भी दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। नागरिक शास्त्र सामाजिक विज्ञान को उपयोगी सहायता प्रदान करता है। सामाजिक विज्ञान का लक्ष्य सामाजिक कुरीतियों को दूर कर अच्छे समाज का निर्माण करना है। नागरिक शास्त्र अच्छे समाज के निर्माण का महत्वपूर्ण साधन है। यह आदर्श नागरिकों का निर्माण करता है, जिनसे कि स्वस्थ समाज का विकास होता है।
अन्तर:- दोनों शास्त्रों में अति निकट का संबंध होते हुए भी अन्तर है –
- सामाजिक विज्ञान का क्षेत्र नागरिक शास्त्र की तुलना में अत्यधिक व्यापक हैं।
- सामाजिक विज्ञान केवल वर्णनात्मक है। नागरिक शास्त्र वर्णनात्मक होने के साथ-साथ रचनात्मक व विचारात्मक हैं।
- नागरिक शास्त्र राज्य के उदय के बाद अपना अध्ययन प्रारम्भ करता है, जबकि सामाजिक विज्ञान पूर्व व राज्योत्तर दोनों स्थितियों का अध्ययन करता हैं।
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