स्थायीभाव का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिये। स्थायीभावों का शिक्षा में क्या महत्व है ?
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स्थायीभाव का अर्थ तथा परिभाषा (Meaning and Definition of Sentiment)
मैक्डूगल के अनुसार- ‘व्यक्ति अनेक मूलप्रवृत्तियाँ लेकर संसार में आता है। इन मूलप्रवृत्तियों का सम्बन्ध विभिन्न प्रकार के संवेगों से होता है। ये संवेग ही स्थायीभाव का निर्माण करते हैं; उदाहरणार्थ, माँ में अपने बच्चों के प्रति दया, गर्व, आनन्द, सहानुभूति तथा वात्सल्य आदि के संवेग होते हैं। इन्हीं संवेगों के फलस्वरूप उसमें प्रेम के स्थायीभाव का निर्माण होता है। स्थायीभाव व्यक्ति के अतिरिक्त किसी वस्तु, आदर्श, विचार, स्थान आदि के प्रति भी होता है; जैसे— बालक में अपने खिलौने के प्रति प्रेम का स्थायीभाव, चरित्रवान व्यक्ति में श्रेष्ठ आदर्शों या विचारों के प्रति सम्मान का स्थायीभाव, भारतीय में स्वदेश-प्रेम का स्थायीभाव। इस प्रकार, हम कह सकते हैं कि स्थायीभाव किसी व्यक्ति, वस्तु, विचार, आदर्श स्थान आदि के प्रति संवेगों का अर्जित और स्थायी रूप है।
“स्थायीभाव” के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिये कुछ परिभाषायें निम्नलिखित हैं-
1. रैक्स व नाइट- “स्थायीभाव किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अर्जित संवेगात्मक प्रवृत्ति या ऐसी प्रवृत्तियों का संगठन है।”
“A sentiment is an acquired emotive disposition or organized set of such dispositions directed towards an object.” – Rex & Knight
2. नन– “स्थायीभाव, भावना की एकाकी दशा नहीं है, वरन् भावनाओं का संगठन है, जो किसी वस्तु-विशेष के सम्बन्ध में संगठित होती है और जिनमें स्थायित्व की पर्याप्त मात्रा होती है। “
“A sentiment is not single state of feeling, but a system of feelings organized with reference to a particular object and having a considerable degree of stability.” – Nunn
3. रॉस- “स्थायीभाव मानसिक ढाँचे में अर्जित प्रवृत्तियों का संगठन है।”
“A sentiment is an acquired organization of dispositions in the mental structure.” – Ross
4. वेलेन्टाइन – “स्थायीभाव किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति संवेगात्मक प्रवृत्तियों और भावनाओं का बहुत-कुछ स्थायी और संगठित स्वरूप है। “
“A sentiment is a more or less permanent and organized system of emotional tendencies and impulses centred about some object or person.” – Velentine
स्थायीभावों के स्वरूप (Forms of Sentiments)
1. मूर्त स्थायीभाव (Concrete Sentiment) – इस स्थायीभाव का सम्बन्ध किसी मूर्त या स्थूल वस्तु से होता है; जैसे— व्यक्ति, पशु, पुस्तक, निवास स्थान आदि।
2. अमूर्त स्थायीभाव (Abstract Sentiment)- इस स्थायीभाव का सम्बन्ध अमूर्त या सूक्ष्म वस्तुओं से होता है; जैसे-भक्ति, विचार, सत्य, आदर्श, अहिंसा, सम्मान, स्वच्छता, देश-प्रेम आदि ।
3. साधारण स्थायीभाव- (Simple Sentiment) – इस स्थायीभाव में किसी के प्रति केवल एक भावना या संवेग होता है; जैसे- बालिका में अपनी गुड़ियों के प्रति प्रेम का स्थायीभाव या बालक में कठोर शिक्षक के प्रति भय का स्थायीभाव।
4. जटिल स्थायीभाव- (Complex Sentiment)- इस स्थायीभाव में एक से अधिक भावनायें या संवेग होते हैं: जैसे चालक में कठोर शिक्षक के प्रति घृणा का स्थायीभाव होता है। यदि शिक्षक उसे छोटी-छोटी बातों पर दण्ड देता है तो उसे शिक्षक पर क्रोध आता है। धीरे-धीरे उसे शिक्षक से अरुचि हो जाती है। सम्भवतः वह उससे प्रतिशोध लेने की भावना भी रखने लगता है। परिणामस्वरूप, उसमें शिक्षक के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है। यह घृणा एक जटिल स्थायी भाव है, जिसका निर्माण- भय, क्रोध, अरुचि और प्रतिशोध की संवेगों और भावनाओं से हुआ है।
5. नैतिक स्थायीभाव- (Moral Sentiment)- यह स्थायीभाव नैतिक चरित्र का वास्तविक अंग है और साधारणतः परम्परागत होता है, जैसे-न्याय या सत्य के प्रति प्रेम, क्रूरता या बेईमानी के प्रति घृणा।
स्थायीभावों की विशेषतायें (Characteristics of Sentiments)
स्थायीभाव, मानव द्वारा अर्जित व्यवहार परिवर्तन है। इस व्यवहार परिवर्तन का मुख्य कारण है-संवेगों तथा मूलप्रवृत्तियों में शोधन तथा प्रशिक्षण। इसलिये स्थायीभावों की विशेषताओं को इस प्रकार समझा जा सकता है-
- स्थायीभाव, मानसिक प्रक्रिया न होकर, मानसिक रचना होते हैं।
- स्थायीभाव, जन्मजात न होकर अर्जित होते हैं।
- स्थायी भाव मूर्त और अमूर्त-दोनों प्रकार की वस्तुओं के प्रति होते हैं, अर्थात् व्यक्ति, वस्तु, गुण, अवगुण, आदर्श, विचार, स्थान आदि किसी के प्रति हो सकते हैं।
- स्थायीभाव, व्यक्ति के व्यवहार को प्रेरित और नियन्त्रित करते हैं।
- स्थायीभावों में विचारों, इच्छाओं, भावनाओं और अनुभवों का समावेश रहता है।
- स्टर्ट तथा ओकडन (Sturt and Oakden) के अनुसार स्थायीभाव में मानव-अनुभवों के साथ-साथ परिवर्तन होते रहते हैं।
- स्थायीभाव, व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व के आधार होते हैं।
- स्थायीभावों का निर्माण साधारणतः एक से अधिक संवेग से होता है।
- जलोटा (Jalota) के अनुसार स्थायीभाव, मानसिक रचना का अंग होने के कारण हममें सदैव विद्यमान रहते हैं।
स्थायीभावों का शिक्षा में महत्व (Importance of Sentiments in Education)
शिक्षा में स्थायीभावों के महत्व का वर्णन करते हुए, स्टर्ट तथा ओकडन (Sturt and Oakden) का मत है— “स्थायी भाव हमारे जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। वे मानसिक और संवेगात्मक संगठन की इकाइयाँ हैं एवं तुलनात्मक रूप में स्थायी होते हैं। अतः शैक्षिक दृष्टिकोण से स्थायीभाव बहुत महत्वपूर्ण है।”
शैक्षिक दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण होने के कारण बालकों में अच्छे स्थायीभावों का निर्माण करना शिक्षक का सर्वप्रथम कर्तव्य हो जाता है। वह ऐसा किस प्रकार कर सकता है और इससे बालकों को क्या लाभ हो सकता है, इसका विवरण नीचे दिया गया है-
1. शिक्षक, बालकों में नैतिक स्थायीभावों का विकास करके, उनमें नैतिक गुणों का विकास कर सकता है और इस प्रकार उनके नैतिक उत्थान में योग दे सकता है।
2. शिक्षक, बालकों में प्रेम का स्थायीभाव उत्पन्न करके, उनकी खेल, कविता, संगीत, साहित्य आदि में विशेष रुचि जाग्रत कर सकता है। इस प्रकार, वह उनके व्यक्तित्व के विकास में सहायता दे सकता है।
3. रॉस (Ross) के अनुसार- स्थायीभाव, आदशों का निर्माण करके चरित्र के निर्माण में सहायता देते हैं। अतः शिक्षक को बालकों में उत्तम स्थायीभावों का निर्माण करना चाहिये।
4. शिक्षक को बालकों में अच्छे स्थायीभावों का निर्माण करने के लिये निम्नलिखित कार्य करने चाहिये। (i) महान् व्यक्तियों के विचारों और आदर्शों से परिचित कराना, (ii) कार्य और सिद्धान्त के उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करना, (iii) उच्च आदर्शों और लक्ष्यों के लिये प्रेरणा देना, (iv) प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, श्रेष्ठ साहित्यकारों आदि की जीवनियाँ सुनाना
5. शिक्षक, बालकों को अपने देश के महान् वीरों की कहानियाँ सुनाकर उनमें देश-प्रेम के स्थायीभाव का निर्माण कर सकता ।
6. शिक्षक, बालकों में घृणा के स्थायीभाव को प्रबल बनाकर, उनमें हिंसा, असत्य, बेईमानी आदि दुर्गुणों से संघर्ष करने की क्षमता उत्पन्न कर सकता है।
7. रॉस (Ross) के अनुसार शिक्षक बालकों में आत्म-सम्मान का स्थायीभाव (Self-regarding Sentiment) विकसित करके उनके मानसिक जीवन को एकता प्रदान कर सकता है।
8. मैक्डूगल (McDougall) के अनुसार- आत्म-सम्मान का स्थायीभाव, चरित्र है और नैतिक स्थायीभावों में सर्वश्रेष्ठ है। अतः शिक्षक को बालकों में इस स्थायीभाव को पूर्ण रूप से विकसित करना चाहिये।
स्टर्ट व ओकडन के अनुसार- “इस बात की ओर ध्यान देना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य होना चाहिये कि बालक द्वारा जिन स्थायीभावों का निर्माण किया जाये, वे समाज की आवश्यकताओं के अनुकूल हों।”
“It must be an important part of education to see that the sentiments formed by a child are in accordance with the needs of society.” -Sturt and Oakden
स्थायीभावों को विकसित करना शिक्षा का प्रमुख कार्य है। इनसे नई पीढ़ी में भविष्य के प्रति आदर्शों का निर्माण होता है। मानसिक बोध तथा संवेगों के संगठन से स्थायीभावों का विकास सम्भव है।
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