स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ? वर्णन कीजिए।
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक (Determinants of Health)
मनुष्य का भीतरी शरीर स्वयं में एक पूरी दुनिया है, जिसका सम्पर्क निरन्तर बाहरी वातावरण से बना रहता है। यह सम्पर्क स्वास्थ्यवर्द्धक भी हो सकता है तथा स्वास्थ्यनाशक भी। इसी परिप्रेक्ष्य में यह कहा जाता है कि स्वयं के शरीर की रचना, जो आनुवांशिकी पर निर्भर करती है, के अतिरिक्त बाहरी वातावरण के कई कारण हैं, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के स्तर को निर्धारित करते हैं। इन्हें मुख्यतः निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है
- आनुवांशिकी,
- बाहरी वातावरण,
- रहन-सहन का तरीका,
- सामाजिक परिप्रेक्ष्य,
- स्वास्थ्य सेवाएँ।
1. आनुवांशिकी (Heredity) – शिशु की शरीर-रचना (Genetic make up) माता के गर्भ में ही निर्धारित हो जाती है और इसे किसी भी परिस्थिति में बदला नहीं जा सकता। चिकित्सा विज्ञान ने ऐसी कई बीमारियाँ खोज निकाली हैं, जो आनुवांशिक (Hereditary) होती हैं। इस प्रकार मनुष्य के शरीर तथा स्वास्थ्य पर कुछ किन्तु महत्त्वपूर्ण प्रभाव आनुवांशिकी का पड़ता है। गर्भधारण के समय माताओं के शरीर से कई प्रकार की कमियों तथा बीमारियों का विपरीत प्रभाव भावी शिशु पर पड़ता है। दूसरी ओर स्वस्थ माता-पिता एक स्वस्थ शिशु को जन्म देते हैं, जिसमें कई प्रकार के बाहरी रोगों से लड़ने की क्षमता जन्मजात होती है।
2. बाहरी वातावरण (Environment) – जो कुछ भी मनुष्य के शरीर के बाहर है, बाहरी वातावरण कहलाता है। इसे मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) भौतिक वातावरण (Physical Environment) – चारों तरफ के भौतिक फैलाव को भौतिक वातावरण कहा जाता है। इसमें जल, वायु, मकान, मौसम, वस्त्र, कूड़ा-करकट आदि शामिल हैं।
(ii) जैविक वातावरण (Biological Environment) – हमारे चारों तरफ मँडराने वाले जीव-जन्तु, जैसे-मच्छर, मक्खी, सूक्ष्मजीवीं, जैसे-जीवाणु, कीटाणु आदि तथा अन्य पेड़-पौधे जैविक वातावरण का अंग हैं।
(iii) सामाजिक वातावरण (Social Environment) – हमारा सामाजिक परिवेश, आस-पास रहने वाले व्यक्ति, हमारी संस्कृति, राजनैतिक व्यवस्था, परम्परायें आदि को सामाजिक वातावरण की श्रेणी में रखा गया है। वातावरण के इन तीनों आयामों को अलग-अलग विभाजित करना कई बार व्यावहारिक रूप से सम्भव नहीं हो पाता, इसीलिए इन्हें सम्मिलित रूप में बाहरी वातावरण कहा गया है।
3. रहन-सहन का तरीका (Life Style) – हमारा आचरण, रहन-सहन का तरीका, आदतें-ये सभी स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। खराब आदतें, जैसे धूम्रपान, शराब सेवन आदि से कई शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं; अत्यधिक तनाव और थकान से विभिन्न हृदय रोग होने की सम्भावना रहती है आदि। इसी कारण आजकल स्वस्थ रहन-सहन (Healthy life style) पर अधिक जोर दिया जा रहा है तथा अधिक से अधिक व्यक्ति इसे अपनाने को प्रयासरत हैं।
4. सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य (Socio-economic Condition) – स्वास्थ्य के क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य का विशेष योगदान है। इसे विभिन्न चरणों में निम्न प्रकार देखा जा सकता है –
(i) शिक्षा (Education)- शिक्षा हर क्षेत्र में जागरूकता पैदा करती है तथा स्वास्थ्य का क्षेत्र इससे अछूता नहीं है। एक शिक्षित व्यक्ति प्रायः स्वयं को अज्ञानता के कारण गम्भीर स्थिति में ले जाते हैं।
(ii) राजनैतिक व्यवस्था (Political System) – किसी देश की प्रगति के लिए आवश्यक है कि जन-स्वास्थ्य उसकी राजनैतिक व्यवस्था का मुख्य बिन्दु हो। सही समय पर सही निर्णय तथा उस पर क्रियान्वयन जनता एवं समुदाय को स्वस्थ्य राह पर ले जायेगा।
(iii) आर्थिक परिप्रेक्ष्य ( Economic Condition) – यह सत्य है कि जो परिवार आर्थिक रूप से जितना सुदृढ़ होगा, वह अपने सदस्यों का उतना ही अधिक सुचारु जीवन निर्वाह कर सकता है। पौष्टिक आहार का सेवन तथा बीमारियों की समय से चिकित्सा आर्थिक समृद्धि होने से अधिक हो सकती है।
(iv) व्यवसाय (Occupation) – मनुष्य का व्यवसाय कई बार उसके स्वास्थ्य का निर्णायक कारक हो जाता है। कई व्यवसाय ऐसे हैं, जहाँ कार्यरत व्यक्ति कुछ विशेष बीमारियों से पीड़ित देखे गये हैं। उदाहरणतः दरी-गलीचे बुनने वालों, संगमरमर पत्थर का कार्य करने वालों में तपैदिक रोग (T.B.) होने की सम्भावना काफी अधिक रहती है।
5. स्वास्थ्य सेवाएँ (Health Services) – स्वास्थ्य सेवाओं का अर्थ है, ऐसी सेवाएँ प्रदान करना, जिनसे स्वस्थ मनुष्य तथा स्वस्थ समाज का निर्माण हो सके। इन्हें मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) निरोधक सेवाएँ (Preventive Services) – इस श्रेणी में वे सभी सेवाएँ आती हैं, जो सम्भावित बीमारियों से बचाव के लिए उपलब्ध करायी जाती हैं, जैसे बच्चों को रोगों से बचाने के लिए निरोधक टीके, टायफाइड आदि से बचाव के टीके तथा अन्य|
(ii) उपचार का प्रावधान (Curative Services) – सभी प्रकार की छोटी-मोटी तथा गम्भीर बीमारियों की यथोचित पहचान तथा निदान की सुविधाएँ इसमें समाहित हैं।
(iii) प्रेरक सेवाएँ (Promotive Services) – इसके अन्तर्गत जन समुदाय को उत्तम स्वास्थ्य रखने तथा बीमारियों से बचाव के लिए प्रेरित किया जाता है। उन्हें स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी देकर वातावरण स्वच्छता आदि का महत्त्व समझाया जाता है।
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