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आधुनिकीकरण से क्या आशय हैं, आधुनिकीकरण की विशेषताएं बताइये ।
अथवा
आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए आधुनिकीकरण के कारक बताइये।
अथवा
आधुनिकीकरण किस-किस माध्यम अथवा तरीकों से होता हैं, स्पष्ट कीजिए।
आधुनिकीकरण का अर्थ
द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945 ई.) के पश्चात् बहुत से देश पश्चिमी देशों की गुलामी से स्वतन्त्र हुए। चूँकि वे कृषि, उद्योग, विज्ञान, औद्योगिकी, शिक्षा, सैनिक, विज्ञान इत्यादि क्षेत्रों में पिछड़े हुए हैं, अतः उनमें स्वाभाविक रूप से यह प्रवृत्ति पाई जाती हैं कि वे आधुनिक राष्ट्र बने ताकि वे विकसित देशों का मुकाबला कर सकें।
1. इन बातों को ध्यान में रखकर कोलर्गन ने लिखा हैं:
एक आधुनिक समाज उसे कहा जाता हैं जिसमें नगरीकरण व्यापक साक्षरता प्रति व्यक्ति अधिक आय, भौगोलिक तथा सामाजिक गतिशीलता, अर्थव्यवस्था में उद्योगीकरण तथा वाणिज्यीकरण की मात्रा में वृद्धि संचार साधनों का विस्तार तथा आधुनिक सामाजिक व आर्थिक प्रक्रिया में नागरिकों द्वारा अधिक से अधिक भाग लेने के तत्व विद्यमान हों।
2. बेन्जामिनशेवर्ज के अनुसार, “राजनीतिक आधुनिकीकरण का यह अर्थ हैं कि मानव के अन्तर्बल को भौतिक और सामाजिक वातावरण के यथोचित नियन्त्रण को मनुष्य के विविध उद्देश्यों के लिए कृमिक लगातार और शक्तिशाली ढंग से लगाया जाये।”
3. हटिण्टन के अनुसार-आधुनिकीकरण एक बहुमुखी प्रक्रिया हैं जिसमें मनुष्य की विचारधारा और कार्यों के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन चाहिए।
निष्कर्ष- इस तरह से आधुनिकीकरण सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, बौद्धिक, धार्मिक और मनोवैज्ञानिक इत्यादि क्षेत्रों में एक परिवर्तन हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आधुनिकीकरण एक सामाजिक परिवर्तन हैं जिसमें आर्थिक कारक सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब कोई परम्परागत समाज जो बिखरे हुए ग्रामों में रहता हैं और ढीली कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहता हैं, अन्धविश्वासों और भाग्यवादिता में विश्वास रखता हैं तथा नेताओं का अन्धाधुन्ध अनुसरण करता हैं वह जब रहन-सहन और सोचने के पुराने ढंग को छोड़ देता हैं तथा नए जीवन के मार्ग को अपनाता हैं, तो हम इसे उस समाज का आधुनिकीकरण कहेंगे।
आधुनिकीकरण की बुनियादी की विशेषताएँ
आधुनिकीकरण की महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. प्रविधि अथवा प्रौद्योगिकी तथा यन्त्रीकरण मशीनीकरण इसको देश में लागू में करना ताकि पिछड़ा न रहें।
2. औद्योगीकरण- उद्योगीकरण किसी भी देश की प्रगति के मार्ग पर ले जाने के लिए यह परमावश्यक हैं कि कहाँ नए-नए उद्योगों का जाल बिछाया जाये और पुराने उद्योगों में नई मशीने लगायी जायें ताकि वे विश्व बाजार में प्रतियोगिता में ठहर सकें।
3. नगरीकरण: जब नगरों में उद्योग स्थापित हो जाते हैं, तो ग्रामीण उनमें कार्य करने के लिए अपने ग्रामों से पहले तो प्रतिदिन आते जाते हैं परन्तु यह बहुत असुविधाजनक रहता हैं और आने जाने में बहुत धन खर्च हो जाता हैं क्योंकि औद्योगिक केन्द्र गाँव से कोसों दूर होते हैं। दूसरे कई बार अन्य समीपवर्ती तथा दूरदर्शी राज्यों से भी अधिक बड़ी संख्या में आ जाते हैं। उनके लिए प्रतिदिन आना-जाना भी सम्भव नहीं हैं। फलतः श्रमिक बड़ी संख्या में नगरों में बस जाते हैं। इस तरह के नगरों की जनसंख्या प्रतिदिन बढ़ती रहती हैं और ग्रामों की जनसंख्या घटती रहती हैं।
4. राष्ट्रीय आय तथा प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धिः- पुरानी कृषि व्यवस्था पर गाँवों के न कमाने वाले व्यक्ति भी निर्भर होते हैं। दूसरे कृषि से इतनी आमदनी नहीं होती हैं कि सारे परिवार की बढ़ती हुई महँगाई में आसानी से गुजारा हो सकें। इसलिए ग्रामीण परिवारों के फालतू सदस्य नगरों में आजीविका के लिए आते हैं और प्राय: कारखानों में काम करने लग जाते हैं। इसके अतिरिक्त उसके द्वारा बनाया हुआ माल विदेशों में भी मिलता हैं। इस तरह के प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में आशातीत वृद्धि होती हैं।
5. साक्षरता में वृद्धिः- औद्योगिकीकरण के साथ-साथ साक्षरता में भी भारी वृद्धि होती हैं क्योंकि नगरों में बच्चों के लिए स्कूल होते हैं बड़े होकन बच्चे न केवल किताबी शिक्षा ग्रहण करते हैं अपितु नई-नई प्रौद्योगिकी तथा आधुनिक उद्योगों में काम करने के प्रशिक्षण भी प्राप्त करते हैं। राष्ट्रीय सरकारें देशों को प्रगति के मार्ग पर तेजी से अग्रसर करने के लिए ग्रामों में वयस्क शिक्षा का भी संचालन करती हैं। इस तरह से साक्षरता में तेजी से वृद्धि होती हैं ताकि देश का पिछड़ापन दूर हो और देश की तेजी से प्रगति हो।
6. राजनीतिक भागीदारी: जब लोगों के पास गुजारे के लिए पर्याप्त साधन हो जाते हैं, तो वे न्यूनतम आवश्यकता को संतुष्ट करने के बजाय राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने की सोचने लग पड़ते हैं। लोग राजनीतिक प्रणाली के निर्णय लेने वाली प्रक्रिया में भी भागीदार बनने की कोशिश करते हैं। यह राजनीतिक दलों, हित समूहों इत्यादि संगठनों के द्वारा संभव हो जाता हैं।
राजनीतिक भागीदारी का अर्थ अंत में यह हो जाता हैं कि अवसर की समानता प्रदान की जाय। समानता का यह भी अर्थ हैं कि नौकरियों में भर्ती योग्यता के आधार पर हो। इसका यह भी अर्थ हैं कि जाति-पाति, सम्प्रदाय, धर्म-रंग और हिंसा के भेदभाव के बिना नौकरियों में भर्ती के अवसर सबकों प्रदान किए जायें।
7. जन-माध्यमों की उन्नति:- राजनीतिक विकास के लिए यह भी परमावश्यक हैं कि समाचार-पत्रों, रेडियों, दूरदर्शन, डाक की सुविधाएँ, सड़क, रेल तथा हवाई सेवाएँ, बिजली, सिनेमाघरों इत्यादि जन-माध्यमों की उन्नति की जाये। इससे लोगों को संसार भर के अघतन समाचार मिलते रहते हैं।
8. सामाजिक गतिशीलताः- सामाजिक गतिशीलता का यह अर्थ हैं कि लोग राजनीतिक विकास की नई आवश्यकताओं के अनुसार अपने व्यवसाय, रहन-सहन और सोचने के तरीके, भूमिकाएं स्मरण आदतें तथा जरूरतें बदल लेते हैं। ग्रामों में एक नेता में अन्धाधुन्ध विश्वास जाता रहता हैं। उसकी बजाए उस व्यक्ति में लोगों के विचारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए राजनीतिक दल तथा मजदूर संगठन बन जाते हैं।
9. राष्ट्रवाद की उत्पत्तिः- लोग धीरे-धीरे पुराने दकियानूसी विचारों को तिलांजलि दे देते हैं। अब वे अपने कबीले, सम्प्रदाय धर्म एवं जाति, प्रजाति इत्यादि की बजाए राष्ट्र की भलाई के बारे में सोचने लगते हैं। अब प्रादेशिकता, धर्म और भाषा उनके मार्ग में बाधा नहीं बनती हैं।
नोवुताका आइका का विचार हैं कि आधुनिकीकरण के कारण विशिष्ट वर्ग का अन्त होता हैं और कम से कम सैद्धान्तिक रूप से राजनीतिक पद योग्यता के अनुसार दिये जाते हैं, दूसरे सभी नागरिकों की प्रशासनिक कार्यों में भाग लेने का समान अवसर प्राप्त होता हैं। फलतः साधारण जनता भी प्रशासन में रूचि लेने लगती हैं और सक्रिय नागरिक बन जाती हैं। आधुनिकीकरण के फलस्वरूप इससे अर्थव्यवस्था में भी परिवर्तन होता हैं तथा कृषि को वैज्ञानिक ढंग से किया जाने लगता हैं। उन्नत खाद बीज तथा यन्त्रों का अधिक मात्रा में प्रयोग होने लगता हैं तथा उत्पादन में अपार वृद्धि होने लगती हैं। औद्योगिकीकरण भी आधुनिकीकरण की जननी के रूप में देखा जाता हैं तथा व्यापार वाणिज्य को प्रोत्साहन मिलता हैं।
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