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इतिहास दर्शन में ऐतिहासिक नियतिवाद के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए?
अथवा
ऐतिहासिक नियतिवाद के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
ऐतिहासिक नियतिवाद और इतिहास का दर्शन
एक विशेष लक्ष्य की ओर नियोजन के अनुसार प्रक्रिया के रूप में इतिहास का वर्णन इतिहास का दर्शन हैं। दूसरी ओर इसे कारणात्मक रूप से निर्धारित योजना मानना नियतिवाद हैं। इनका विवेचन क्रोचे ने अपने ग्रन्थ में ‘Ideal Genesis and Dissolution of the philosophy of History नामक अध्याय में किया हैं। उसका विश्वास हैं कि दोनों प्रकार के सिद्धान्तों में मूलभूत गलती यह की हैं कि इतिहास के तथ्यों को प्राकृतिक रूप में देखा हैं। वे ऐतिहासिक घटनाओं की व्याख्या मानवीय दृष्टिकोण, उद्देश्य, लक्षण, हित आदि की अभिव्यक्ति के रूप में करने में असमर्थ रहे हैं। इसकी केवल इतिहासकार की अन्तर्रहित तथा समझ द्वारा ही ग्रहण किया जा सकता हैं। इनको मात्र प्रकृति की घटनाएँ समझा गया हैं जिनको विशुद्ध बाहरी रूप में नियमानुसार वर्गीकृत, नियन्त्रित व सम्मिलित किया जा सकता हैं।
तथा कथित इतिहास के दर्शन की अवधारणा का इतिहास की नियतिवादी अवधारणा द्वारा निरन्तर विरोध किया जाता हैं। यह बात न केवल निरीक्षण से ज्ञात होती हैं वरन् तार्किक रूप से भी यह प्रमाणित हैं क्योंकि इतिहास का दर्शन यथार्थ की भावातीत अवधारणा का प्रतिनिधित्व करता हैं जबकि नियतिवाद सर्वव्यापी का तथ्यों को देखने के बाद यह कम निश्चित नहीं होता कि ऐतिहासिक नियतिवाद निरन्तर इतिहास के दर्शन को उत्पन्न करता हैं और न ही यह तथ्य कम प्रमाणिक रूप से तार्किक हैं क्योंकि नियतिवाद प्रकृतिवाद हैं तथा इसलिए सर्वव्यापी हैं। यह निश्चित रूप से लेकिन अपर्याप्त तथा झूठे रूप से सर्वव्यापी हैं। यह कहा जा सकता हैं कि यह सर्वव्यापी होना चाहता हैं लेकिन हो नहीं पाता हैं तथा विपरीत दिशा में इसके चाहे जितने भी प्रयास हो यह भावातीतता में परिवर्तित हो जाता हैं। जिसके मस्तिष्क में भावातीत एवं सर्वव्यापी होने की अवधारणाएँ स्पष्ट हैं।
भावातीत अवधारणा से उसको इसके कारण कोई कठिनाई नहीं होती। इतिहास का दर्शन भावातीत होता हैं तथा इतिहास की नियतिवादी एवं प्रकृतिवादी अवधारणा असत्य सर्वव्यापी के रूप में होती हैं। इतिहास की समस्या के सन्दर्भ में समझौता ओर विरोध की यह प्रतिक्रिया किस प्रकार विकसित होती हैं और सुलझती हैं। इसका वर्णन क्रोचे ने किया हैं।
नियतिवादी अवधारणा के अनुसार इतिहासकार के कार्य का तरीका यह हैं कि पहले तथ्य एकत्रित किए जाते हैं और उसके बाद उनको कारणात्मक रूप में सम्बद्ध किया जाता हैं। तथ्य अपने आप में निर्बुद्ध सघन और वास्तविक होते हैं लेकिन विज्ञान के प्रकाश में नहीं चमकते, ये बौद्धिकृत भी नहीं होते। इनको बुद्धिपूर्ण तब बनाया जाता हैं जबकि कारण के रूप में दूसरे तथ्यों से उनको जोड़ा जाता हैं। यह सुविदित हैं कि जब एक तथ्य को दूसरे तथ्य से जोड़ा जाता हैं तो क्या होता हैं। इससे कारण और कार्य की एक श्रृंखला बन जाती हैं। यह शृंखला अनन्त रूप में चलती रहती हैं और अन्तिम रूप में कोई कारण नहीं मिल पाता जिसके साथ पूरी शृंखला को रखा जा सके। कुछ विचारकों ने इस अन्तिम कारण का पता लगाने का प्रयास भी किया हैं जैसे टेन ने युग और प्रजाति को ऐसा माना हैं लेकिन यह मान्यता मान्य नहीं हैं। अन्तिम कारण सार्वभौम एवं स्थायी और हमेशा रहने वाले होना चाहिए। इस दृष्टि से कोई तथ्य प्राप्त करना सम्भव नहीं हैं। इस आधार पर मिश्र की ममी भी तथ्य नहीं हैं। यद्यपि वे कुछ हजार वे वर्षो तक रहेंगी लेकिन हमेशा नहीं रहेंगी। वे कृमिक रूप में परिवर्तित होती हैं लेकिन उनमें परिवर्तन अवश्य आता हैं। भावातीत लक्ष्य की खोज इतिहास का दर्शन यह इतिहास का दर्शन नियतिवादी अवधारणा से जन्म लेता हैं।
इतिहास का दर्शन भी उतना ही विरोधी हैं जितनी कि नियतिवादी अवधारणा। दोनों ही निर्बुद्ध तथ्यों को जोड़ने की प्रणाली को स्वीकार करते हैं और तथ्य न मिलने के कारण इसे छोड़ते भी हैं। जब कोई तर्कपूर्ण विचार प्राप्त नहीं होता तो उस कमी को पूरा करने के लिए भावना आती हैं जो काव्य के रूप में होती हैं। इतिहास के समस्त दर्शन में काव्यात्मक प्रकृति का प्रमाण मिलता हैं प्राचीन इतिहास में ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन कुछ लोगों के देवता या राक्षकों के आपसी युद्धों के रूपों में किया गया हैं। अथवा यह प्रकाश और सत्य एवं अन्धकार और सत्य की शक्तियों के बीच संघर्ष के रूप में हैं। मानव सभ्यता के प्राचीनतम ग्रन्थों वेदों में विभिन्न देवताओं और राक्षसों के युद्धों का वर्णन हैं। इनमें देवताओं के आह्वान के लिए अनेक मन्त्रों का उल्लेख किया गया हैं। इस रूप में ये वर्णन लोगों, समूह या व्यक्तियों की प्रभुता के प्रति आकांक्षाओं अथवा शुभ एवं सत्य के प्रति मनुष्य की आकांक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं। आधुनिक युग में विभिन्न राष्ट्रीय और नैतिक भावनाएँ प्रेरणा देती हैं। कविता के तथ्य असल में तथ्य नहीं होते वरन् काल्पनिक होते हैं। ये वास्तविकता नहीं वरन् प्रतिछाया होते हैं और इसलिए इनको प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन इतिहास की दृष्टि से ये कल्पनाएँ व मान्यताएँ विचार विज्ञान एवं मिश्र के रूप में प्रस्तुत हुए हैं और इसलिए नियतिवादी अवधारणा इतिहास के दर्शन को जन्म देने के बाद उसकी विरोधी बन जाती हैं। यह उद्देश्यों की अपेक्षा कारणात्मक सम्पर्को कल्पना की अपेक्षा पर्यवेक्षण और मिथ की अपेक्षा तथ्य पर जोर देती हैं। इतिहास के दर्शन और नियतिवादी दृष्टिकोण के बीच विरोध और संघर्ष को दूर करने की दृष्टि से यह सुझाव दिया जाता हैं कि विचारों को दार्शनिकों के लिए छोड़ देना चाहिए और निर्बुद्ध तथ्यों को इतिहासकारों के लिए छोड़ देना चाहिए अर्थात् हम गम्भीर बातों के साथ सन्तुष्ट रहें और बच्चों के लिए उनके खिलौने छोड़ दे। विचारों में वास्तविकता और गुण, मूल तत्व और अस्तित्व सभी कुछ एक हैं। किसी भी तथ्य को वास्तविक मानना तब तक सम्भव नहीं हैं जब तक कि यह नहीं जाना जाए कि यह तथ्य क्या हैं और कैसा हैं?
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