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उपरिव्ययों के संविलयन का क्या अर्थ हैं? उपरिव्यय संविलयन की दर निर्धारित करने के लिए ध्यान देने योग्य बातें बताइये।
उपरिव्ययों का संविलयन (Absorption of Overheads) “सविलयन’ से तात्पर्य किसी लागत केन्द्र के उपरिव्ययों को विभिन्न लागत इकाइयों पर इस प्रकार से चार्ज करने से है जिससे प्रत्येक लागत इकाई उपरिव्ययों के अंश का उचित भाग वहन करें। यह उपरिव्यय दरों के आधार पर किया जाता है। उपरिव्यय दर से तात्पर्य उस दर से है जिससे उपरिव्यय विभिन्न लागत इकाइयों को चार्ज किये जाने हैं, दर एक प्रतिशत या प्रति इकाई के रूप में हो सकती है। विभिन्न उत्पादन विभागों में उपरिव्यय लगातें का आवंटन एवं अनुभाजन करने के बाद यह आवश्यक हो जाता है कि उत्पादन लागत केन्द्रों की उपरिव्यय लागतो सम्बन्धित लागत इकाइयों में आबंटित कर दी जायें। जब ऐसा किया जाता है तो लागत इकाइयाँ निर्माणी लागतों का कुछ भाग प्राप्त करती है। उपरिव्ययों को विभिन्न लागत इकाइयों पर चार्ज करने की प्रक्रिया को उपरिव्ययों का संविलयन कहते हैं। C.I.M.A. के अनुसार उपरिव्ययों को “लागत इकाइयों में बाँटना उपरिव्ययों का संवलियन है।” उपरिव्ययों के संविलयन को उपरिव्ययों की वसूल भी कहते हैं। उपकायों, प्रक्रियाओं या उत्पादों पर, उपरिव्ययों के संविलयन के लिये उपरिव्ययों के संविलयन की किसी भी एक विधि के द्वारा उपरिव्यय दरों का निर्धारण आवश्यक है। समस्त उपरिव्ययों को चयन किये गये आधार से भाग करके यह दर ज्ञात की जा सकती है। चयन किया गया आधार उत्पादित इकाइयाँ, प्रत्यक्ष रम लागत, प्रत्यक्ष श्रम घण्टें, प्रत्यक्ष सामग्री लागत, मशीन घण्टे इत्यादि हो सकता है। जो दर प्राप्त होती है उस दर से उपरिव्यय लागत के भाग को वस्तु की लागत में चार्ज किया जाता है। इस दर को उपरिव्यय संविलयन दर कहते हैं।
उपरिव्ययों को पूर्ण कारखाने के लिए आकलित एक दर के आधार पर अथवा प्रत्येक विभाग या लागत केन्द्र के लिए पृथक् दरों के आधार पर संविलयन किया जा सकता है। जब एक ही वस्तु का निर्माण हो अथवा विभिन्न विभागों में कार्य लगभग एकरूप आधार पर हो तो समस्त प्लाण्ट के लिए एक ही दर लागू की जानी चाहिए।
ध्यान देने योग्य बातें-
विभिन्न प्रकार के उपरिव्ययों के लिए विभिन्न उपरिव्यय दरें। प्रयुक्त की जाती है। फिर भी उपरिव्यय संविलियन की दर (Overhead Absorption Rate) निर्धारित करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए-
1. उपयुक्तता (Appropriateness) दर ऐसी होनी चाहिए जिससे वसूल हुए उपरिव्ययों तथा वास्तविक उपरिव्ययों की राशि में अधिक अन्तर न आ पाये अन्यथा इस आधार पर निर्धारित उपकार्यों या वस्तुओं की लागत सही नहीं होगी।
2. सुगमता (Simplicity) उपरिव्यय दरों की गणना में अनावश्यक श्रम नहीं लगतना चाहिए। उदाहरणार्थ, यद्यपि कारखाने के प्रबन्धक का वेतन उसके द्वारा विभिन्न उपकार्यों पर व्यतीत किये गये समय के अनुसार अनुभाजित करना अधिक न्यायोचित है फिर भी इसे विभिन्न उपकार्यों को चार्ज की गई मजदूरी के आधार पर वितरित करना सुगमता के दृष्टिकोण से उत्तम है।
3. समय घटक (Time Factor) समय घटक का उपरिव्यय दर निर्धारित करने हेतु उन दशाओं में उचित ध्यान दिया जाना चाहिए जिन दशाओं में विभिन्न उपकार्यों को पूरा करने में भिन्न-भिन्न समय लगता है। उदाहरणार्थ, एक मशीन लागत केन्द्र के उपरिव्ययों को विभिन्न उपकार्यों पर उन घण्टों के आधार पर चार्ज किया जाना चाहिए जिसके लिए मशीन लागत केन्द्र ने प्रत्येक उपकार्य के लिए कार्य किया है। अतः ऐसी दशा में उपरिव्ययों को प्रति घण्टा उपरिव्यय दर विधि के अनुसार चार्ज करना उपयुक्त होगा।
( 4 ) कुशलता घटक (Efficiency Factor) – विभिन्न उपकार्यों पर कुशलता के विभिन्न स्तरों की आवश्यकता होती है। अतः सभी उपकार्यों को समान उपरिव्यय दर से चार्ज करना उपयुक्त नहीं होगा। उपरिव्यय दर निर्धारित करते समय कुशलता घटक का ध्यान रखा जाना आवश्यक है।
(5) विवेकपूर्ण उत्पादकता घटक (Rational Productive Factor) उपरिव्यय दर उत्पादन के लिए अपनाई जाने वाली विधि से भी सम्बन्धित होनी चाहिये। उदाहरणार्थ, एक विभाग में जहाँ मुख्यतः मशीनों द्वारा कार्य किया जाता है, उपरिव्ययों की वसूली हेतु मशीन घण्टा दर विधि को लागू किया जाना चाहिए। जबकि एक विभाग में जहाँ कार्य मुख्य रूप से हस्त श्रम द्वारा सम्पन्न होता है, उपरिव्यय श्रम घण्टा दर आधार पर संविलयित किये जाने चाहिए।
( 6 ) उपरिव्यय दरों में निरन्तर परिवर्तन नहीं (No Frequent changes in Absorption Rates ) उपरिव्यय वर्ष प्रति वर्ष एक ही आधार पर चार्ज किये जाने चाहिए। यदि आधार को बार-बार बदला जाता है तो लागत परिणाम तुलनीय नहीं होंगे।
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