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एक इतिहासकार के रूप में कालिंगवुड का योगदान बताइये।
अथवा
“समस्त इतिहास विचार का इतिहास हैं” कालिंगवुड के इस कथन का परीक्षण कीजिए।
अथवा
इतिहास लेखन परम्परा में कालिंगवुड के चिन्तन का योगदान लिखिए तथा उसकी विचार विषयक इतिहास अवधारणा की विवेचना कीजिए।
ऐतिहासिक चिन्तन में कालिंगवुड का योगदान
रॉबिन जार्ज कालिंगवुड (1889-1943) का अधिकांश समय ऑक्सफोर्ड में व्यतीत हुआ था। 1935 में वह आदि भौतिक दर्शन का वेनफ्लीट प्रोफेसर हो गया। वह तत्कालिक दार्शनिक परिवेश से प्रसन्न नहीं था। उसकी सहानुभूति ग्रीन तथा ब्रेडले के आदर्शवादी चिन्तन के प्रति थी। उसकी प्रसिद्ध पुस्तक The Ideas of History उसकी मृत्यु के बाद 1946 में प्रकाशित हुई थी। उसका नाम प्राय: क्रोच के नाम के साथ जोड़ा जाता हैं तथा यह निश्चय हैं कि क्रोचे के इतिहास संबंधी अनेक विचार कालिंगवुड की पुस्तकों में प्राप्त होते हैं। कालिंगवुड ने इन विचारों को कम रहस्यपूर्ण तथा अधिक समझ योग्य तरीके से अभिव्यक्त किया हैं। दोनों विचारकों में इतनी समानताएँ मिलती हैं कि कुछ आलोचक कालिंगवुड को क्रोचे का शिष्य बताते हैं। दोनों के दार्शनिक विकास में पर्याप्त सदृश्यता हैं दोनों को उनकी कलात्मक तथा ऐतिहासिक रूचियों के कारण उस समय पढ़ाए जाने वाले दर्शन से असन्तोष उत्पन्न हुआ हैं। दोनों ने हीगल का स्वयं अध्ययन करके मौलिक चिन्तन और लेखन किया। दोनों ही आदर्शवादी हैं और दर्शन तथा इतिहास की अभिन्नता का दिग्दर्शन करते हैं। क्रोचे तथा कालिंगवुड में एक समानता यह भी हैं कि दोनों की रूचियाँ केवल सैद्धान्तिक कार्य तक ही सीमित नहीं रही हैं वरन् वे व्यावहारिक इतिहासकार तथा पुरातत्ववेता रहे हैं।
(1) इतिहास एक स्वायत्तता पूर्ण अनुशासन हैं:- कालिंगवुड ने अपनी पुस्तक Ideas of History में यह स्पष्ट किया हैं कि इतिहास एक स्वायत्तापूर्ण अनुशासन हैं। इसकी अपनी प्रक्रियाएँ तथा श्रेणियाँ हैं। अपनी विषय सामग्री के बारे में इतिहासकार का ज्ञान विलक्षण प्रकृत्ति का होता हैं। इस प्रकार कालिंगवुड 19वीं शताब्दी के प्रत्यक्षवाद की विरासत स्वरूप सभी विश्वासों को अस्वीकार कर देता हैं। वह नहीं मानता कि इतिहासकार की भूमिका प्राकृतिक वैज्ञानिक की भूमिका के समान हैं। ऐतिहासिक घटनाओं को सार्वभौमिक नियमों के अनुसार देखा जा सकता हैं तथा प्रकृति के आभास की भांति ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कार्यों को बाहर से समझा जा सकता हैं। यही कारण हैं कि उसकी दृष्टि से काम्टे तथा मार्क्स की भाँति स्पेंग्लर तथा टॉयनजी के विचार भी अस्वीकार्य थे। इन सभी विचारकों ने यह माना था कि केवल सच्चा ज्ञान वैज्ञानिक ज्ञान हैं इसलिए इनकी परियोजनाएँ प्रकृतिवाद से प्रभावित थी।
(2) इतिहासकार के कार्य- कालिंगवुड ने इतिहासकार के कार्यों की विवेचना प्रस्तुत की हैं। उसने इतिहास के प्रत्यक्षवादी विचारों को अस्वीकार करके उसके स्थान पर विचार की ऐतिहासिक जाँच की मौलिक अवधारणा माना हैं। उसके अनुसार किसी भी ऐतिहासिक घटना की वास्तविक प्रकृति को ग्रहण करने के लिए यह आवश्यक हैं कि हम उस समय घटना के अन्तर्तल में प्रवेश कर जाँच करें तथा संबंधित ऐतिहासिक अभिकर्ताओं के विचारों का पता लगाएँ। इतिहासकार को इन विचारों पर चिंतन करना होगा। इसके लिए उसे अपने लिए उन परिस्थितियों की पुनः रचना करनी होगी, जिसमें कि अभिकर्त्ताओं को रखा गया था।
(3) अतीत को वर्तमान दृष्टि से देखना- कालिंगवुड के अनुसार इतिहास दर्शन न तो केवल अतीत हैं और न केवल इतिहासकार के चिन्तन से सम्बद्ध हैं वरन् यह अपने पारस्परिक संबंधों में दोनों से ही सम्बद्ध हैं। इतिहासकार जिस अतीत का अध्ययन करता हैं वह मृत अतीत नहीं होता वरन् एक ऐसा अतीत हैं जो कुछ अर्थों में वर्तमान में विद्यमान रहता है। यदि इतिहासकार अतीतकाल की घटना के पीछे स्थित विचार को नहीं समझ सकता तो यह घटना उसके लिए मृत और निरर्थक हो जाती हैं इस प्रकार समस्त इतिहास विचार का इतिहास बन जाता हैं। इतिहासकार को जो तथ्य प्राप्त होते हैं, वे विशुद्ध तथ्य के रूप में नहीं होते वरन् तथ्यों का प्रतिष्ठापन स्वयं इतिहासकार द्वारा किया जाता हैं। इतिहास में व्याख्या की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती हैं और इसलिए ऐतिहासिक तथ्य व्युत्पादित तथ्य होते हैं। कालिंगवुड की स्पष्ट मान्यता हैं कि अतीत को वर्तमान की दृष्टि से ही देखा जा सकता हैं।
(4) इतिहास का प्रयोजन आत्म-ज्ञान है :- इतिहास का प्रयोजन आत्म-ज्ञान की प्राप्ति करना होता हैं। सामान्यत: यह महत्वपूर्ण माना जाता हैं कि मनुष्य स्वयं को जाने और इस जानने का अर्थ केवल यह नहीं है कि हम अन्य व्यक्तियों से पृथक अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं को जान ले वरन् यह हैं कि हम मनुष्य के रूप में अपने स्वभाव को जान लें। स्वयं को जानने का अर्थ यह हैं कि हम इस बात का पता लगाएँ कि हम क्या कर सकते हैं और बिना प्रयास किए कोई भी यह नहीं बता सकता कि वह क्या कर सकता हैं। एक मनुष्य क्या कर सकता हैं, इस बात को जानने का एक मात्र सूत्र यह जानना हैं कि उसने क्या किया हैं। इस बात को जाना जाए इस प्रकार इतिहास आत्म-ज्ञान का मुख्य स्त्रोत बन जाता हैं।
(5) समस्त इतिहास विचार का इतिहास हैं- ऐतिहासिक प्रक्रिया केवल घटनाओं की प्रक्रिया नहीं होती वरन् वह कार्यों की प्रक्रिया होती हैं। इन कार्यों का एक आन्तरिक पक्ष विचार प्रक्रिया के रूप में होता हैं। इसलिए इतिहासकार इन विचार प्रक्रियाओं की तलाश करता है। इस दृष्टि से समस्त इतिहास विचारों का इतिहास हैं। इतिहासकार अतीत का पुनर्निर्माण करता हैं जो कि उसके ज्ञान के सन्दर्भ में होता हैं। इतिहास का पुनर्निर्माण करते हुए वह इसकी समीक्षा करता है तथा इसके मूल्य के प्रति अपना निर्णय देता हैं और इसमें दिखाई देने वाली त्रुटियों का संशोधन होता हैं। ऐतिहासिक ज्ञान का संबंध मुख्यतः अतीतकाल में मन द्वारा किए गए कार्य-कलापों का वर्णन करना हैं और इस प्रकार यह अतीत को फिर से जीवन्त बना लेता हैं। अतीत वर्तमान में साकार हो जाता हैं। यह सब कुछ विचार जगत् में होता हैं। इतिहासकार जिन कार्य व्यापारी का अध्ययन करता हैं वे केवल दार्शनिक वस्तु नहीं होते वरन् ऐसे अनुभव होते हैं, जिनकी अनुभूति मन में होती हैं। ऐतिहासिक खोज इतिहासकार की उसकी मन की शक्तियों से परिचित कराती हैं। ऐतिहासिक चिन्तन के द्वारा हम अपने अतीत को जानते हैं। मन का सभी ज्ञान प्रकृति की दृष्टि से ऐतिहासिक ज्ञान होता हैं। ऐतिहासिक ज्ञान हमारे अन्दर जितना अधिक होगा हम किसी प्रदत्त साक्ष्य से उतना ही अधिक पाएँगे। वर्तमान के अनुभव हमारे लिए साक्ष्य बनते हैं लेकिन ये तभी साक्ष्य बनते हैं जब कि उन पर ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया जाए। हम प्रत्यक्ष वर्तमान के साधन के आधार पर सम्पूर्ण अतीत को जानना चाहते हैं लेकिन व्यवहार में इस लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रत्यक्ष वर्तमान को इसकी समष्टि में नहीं देखा जा सकता और इसी प्रकार अतीत की अनन्त प्रक्रिया को भी उसकी सम्पूर्णता में नहीं आँका जा सकता।
(6) ऐतिहासिक अवबोध का रस-इतिहासकार अतीत को किस प्रकार तथा किन शर्तों पर जान पाता हैं, इस बात का पता लगाने की दृष्टि से एक उल्लेखनीय बात यह हैं कि इतिहास कोई प्रदत्त तथ्य नहीं हैं जिसे अनुभवात्मक रूप से जाना जा सकें। इतिहासकार जिन तथ्यों को जानना चाहता हैं, उनका वह प्रत्यक्षदर्शी नहीं होता। इतिहासकार जानता हैं कि उसका अतीत का सम्भावित ज्ञान केवल अनुमान पर आधारित हैं, अप्रत्यक्ष हैं और अनुमान पर आधारित नहीं हैं। दूसरी बात यह हैं कि यह अनुमान प्रमाण-पत्र या जाँच द्वारा प्रभावित नहीं होगा। इतिहासकार अतीत की जानकारी केवल उस साक्ष्य पर विश्वास करके नहीं कर लेता जिसने संबंधित घटनाओं को देखा हैं। और अभिलेखों में उसके प्रमाण छोड़ दिए हैं। इस तरीके से ज्ञान नहीं वरन् विश्वास प्राप्त होता हैं और यह विश्वास कोई प्रमाणिक या पूर्ण सत्य नहीं हैं। इसलिए इतिहासकार विषय के अधिकारियों पर विश्वास न करके उनकी आलोचना करता हैं। इस प्रश्न के उत्तर में कॉलिंगवुड ने इस प्रश्न पर विचार किया है कि जब इतिहासकार अपने तथ्यों का प्रत्यक्ष अथवा अनुभवात्मक ज्ञान नहीं रखता तो वह कैसा ज्ञान रखता हैं। इस प्रश्न के उत्तर में कॉलिंगवुड ने यह स्थापित किया हैं कि इतिहासकार अपने स्वयं के मस्तिष्क में अतीत की पुनः रचना करता हैं। जब एक व्यक्ति ऐतिहासिक रूप से सोचता हैं तो उसके सामने अतीत के कुछ प्रमाण तथा स्मृति चिन्ह होते हैं।
चिन्तन युक्त विचार के कार्य- ऐतिहासिक ज्ञान का विषय विचार हैं। वे चीचें नहीं जिनके बारे में विचार किया जाता है। वरन् विचार की प्रक्रिया हैं। इस सिद्धान्त के आधार पर हम इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान एवं इतिहास और मनोविज्ञान में अन्तर कर सकते हैं। इतिहास का विषय जो विचार होता हैं उसे कुछ और स्पष्ट करना वांछनीय होगा। केवल वही विचार इतिहास की विषय वस्तु बनाता हैं जो केवल विचार का नहीं वरन् चिन्तन युक्त विचार का कार्य हैं। अर्थात् एक ऐसा कार्य जो इसे सम्पन्न करने की चेतना के साथ सम्पन्न किया जाता हैं। यह अनजान विषय के बारे में सम्पन्न अन्धा कार्य नहीं हैं वरन वह बात करने का कार्य हैं जिनकी अनुभूति हमें पहले से होती हैं। कॉलिंगवुड के शब्दों में एक चिन्तनयुक्त गतिविधि वह हैं जिसमें हम यह जानते हैं कि हम क्या करने जा रहे हैं। जब यह कार्य सम्पन्न हो जाता हैं तो हम इसकी तुलना अपनी तत्संबंधी अवधारणा से करते हैं। यह एक ऐसा कार्य है जिसे करने से पहले ही हम यह जानते हैं कि इसे किस प्रकार करना चाहिए। कुछ कार्य विशेष रूप से ऐसे होते हैं जो केवल चिन्तन के रूप में ही किए जा सकते हैं। इस प्रकार के कार्यों की यह विशेषता होती है कि इन्हें किसी उद्देश्य के लिए किया जाता हैं। इस प्रकार चिन्तन के कार्य मोटे रूप से वे कार्य है जो उद्देश्य के लिए किये जाते हैं। केवल यही कार्य ऐसे है जो इतिहास की विषयवस्तु हो सकते हैं।
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