भूगोल शिक्षण में मूल्यांकन की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
भूगोल शिक्षण में मूल्यांकन की विशेषताएँ
1. विद्यार्थी केन्द्रित – उद्देश्य विद्यार्थियों के व्यवहारगत् विशिष्ट परिवर्तनों के रूप में निर्धारित किए जाते हैं। जिनकी उपलब्धि की जाँच मूल्यांकन से की जाती हैं। अतः मूल्यांकन अन्ततः विद्यार्थी केन्द्रित हैं।
2. विश्लेषणात्मक संश्लेषणात्मक – मूल्यांकन में पहले निर्धारित उद्धेश्यों का विश्लेषण कर विशिष्टयों में विभाजित किया जाता हैं। विशिष्टियों के अनुकूल परिस्थितियों का उपकरणों से चुनाव कर उनकी जाँच की जाती हैं। जाँच के बाद एकत्रित साक्ष्यों का सारांशीकरण (संश्लेषण) किया जाता हैं। अतः मूल्यांकन विश्लेषणात्मक तथा संश्लेषणात्मक प्रक्रिया हैं।
3. शिक्षण प्रक्रिया का अभिन्न अंग – शिक्षण-उद्देश्य एवं शिक्षण अधिगम स्थितियों से अंतः सम्बन्धित हो, शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाता हैं।
4. व्यापकता – केवल ज्ञानात्मक ही नहीं वरन् अवबोध, ज्ञानोपयोग, अभिरूचि, अभिवृत्ति एवं कौशल सम्बन्धी समस्त उद्देश्यों की वांछित व्यवहारगत परिवर्तनों के रूप में होने वाली उपलब्धियों की परख करने के कारण मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक हैं।
5. मापन एवं मूल्य निर्धारण- प्रक्रिया मापन द्वारा विद्यार्थियों की ज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक उपलब्धि की मात्रा अथवा स्तर, संख्या अथवा अंको में निर्धारित किया जाता हैं। तथा भावात्मक (जैसे अभिरूचि एवं अभिवृत्ति) पक्ष का गुणात्मक मूल्य निर्धारण किया जाता हैं।
6. अनवरत प्रक्रिया – मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक होने व शिक्षण प्रक्रिया का अंग होने के कारण यह शिक्षण के साथ अनवरत चलने वाली प्रक्रिया हैं।
7. उद्देश्य केन्द्रित मूल्यांकन- निर्धारित उद्देश्यों की उपलब्धि की सीमा ज्ञात करने के लिए किया जाता हैं। अतः ये उद्देश्य केन्द्रित हैं।
8. निदानात्मक – मूल्यांकन द्वारा विद्यार्थियों के दुर्बल पक्षों का ज्ञान अर्थात् निदान होता हैं। जिसके आधार पर उन्हें दूर करने के लिए उपचारात्मक शिक्षण आयोजित किया जाता हैं।
9. वस्तुनिष्ठता – यदि अंकन कार्य में व्यक्तिगत पसन्द रूझानों या वैषयिकताओं का प्रभाव पड़ता है तो परिणाम सहीं नहीं हो सकते, अतः परीक्षण ऐसा हो कि एक से अधिक परीक्षक उत्तर पुस्तिका की जाँच करे तो भी परिणाम लगभग समान ही रहे।
10. विश्वसनीयता – यदि किसी परीक्षण के आधार पर किसी छात्र या समान की परीक्षा एक से अधिक बार ली जाती हैं और परिणाम समानान्तर या लगभग एक समूह से रहते हैं तो परीक्षण विश्वसनीय कहलाता हैं। अच्छे परीक्षण विश्वसनीय होते हैं।
11. वैधता – वैधता से अभिप्राय हैं- परीक्षा जिस उद्देश्य को लेकर जिस विषयवस्तु की जांच करने हेतु बनाई गई हैं, उसकी जांच करना भी हैं या नहीं। एक अच्छा परीक्षण वह हैं, जो विषय की उपलब्धि या उन्हीं योग्यताओं वैद्य जाँच करने में सक्षम हो, जिनके लिए उनका निर्माण किया जाता हैं।
12. व्यावहारिकता – परीक्षण ऐसे हो जिन्हें शिक्षक और छात्र उपयोग में ला सकें जिनका निर्माण सफलता से किया जा सकें जो अधिक जटिल परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं करते हो, जिन्हें आसानी से प्रशासित किया जा सकें, अंकन की दृष्टि से जो सरल हो लचीले हो ।
13. मित्तव्ययता – परीक्षण अधिक खर्चीले न हो। इनके निर्माण प्रशासन, अंकन, परिणाम-विश्लेषण का कार्य मित्तव्ययता पूर्ण हो । इनमें प्रयोग आने वाली सामग्री ऐसी हो जो सहज ही उपलब्ध हो सकें और सस्ती भी हो।
14. पर्याप्तता – परीक्षण समस्त पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व करने वाला हो। इसमें पदों की पर्याप्त संख्या हैं। यह सभी शैक्षिक और शिक्षण और शिक्षण प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करने वाला हो।
15. विभेदकना – परीक्षण के परिणाम छात्रों का उनकी योग्यता के आधार पर अन्तर करने एवं वर्गीकरण करने में सक्षम हो। उक्त विशेषताओं के साथ-साथ यह भी आवश्यक हैं कि मूल्यांकन हेतु कार्य के प्रति नीतिगत निर्णय लेते हुए नवाचारों को बढ़ावा दिया जाए।
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