मापन की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
मापन तथा मूल्यांकन को प्राय: एक ही रूप में देखा जाता है। किन्तु दोनों में पर्याप्त भेद हैं। मापन से तात्पर्य संख्या से लिया जाता है, शिक्षण पद्धति में मात्र अधिगम, व्यवहार परिवर्तन, अनुभव, विधि-प्रविधियों को ही प्रयुक्त नहीं किया जाता। अपितु उन्हें हम संख्यात्मक स्वरूप में भी रख सकते हैं। आज मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन किया है। शिक्षा को जहाँ सैद्धांतिक सीमा तक माना जाता था आज पूर्ण तथा व्यावहारिक बनाने पर बल दिया जा रहा है। अतः मानव के (बालक के) व्यवहार का मापन करना भी आवश्यक समझा जाने लगा है। कई विधि-प्रविधि तो मापन पर आधारित भी है, जैसे फ्लैण्डर्स अन्तः क्रिया विश्लेषण प्रणाली। इसमें शिक्षण में व्यवहार परिवर्तन के साथ संख्यात्मक आँकड़ों का भी उल्लेख किया जाता है। जिनका मापन हम संख्यात्मक आँकड़ों के माध्यम से कर सकते हैं।
शिक्षा में मापन का स्थान – शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वतोमुखी विकास करना है और यह विकास मानसिक तथा भावात्मक दोनों ही है अर्थात् शिक्षा का ध्येय व्यक्ति में सीखने, समझने आदि की शक्ति प्रदान करना है। प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमतानुकूल उपयुक्त शिक्षा देने हेतु तथा शिक्षा प्रणाली को सुव्यवस्थित करने के लिए। माप और गणना का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। वर्तमान युग में विभिन्न आवश्यकताएँ, रुचि और बुद्धिमत्ता होने के परिणामस्वरूप अध्यापक को वैयक्तिक विभिन्नता को दृष्टिकोण में रखकर ही अपनी शिक्षा प्रणाली निर्धारित करनी चाहिए। अतः हमारी कोई भी शिक्षा व्यवस्था उस समय तक अपूर्ण रहेगी जब तक कि उसमें आधुनिक मापन विधियों तथा उपकरणों को एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाए।
अनुसन्धान सम्बन्धी ज्ञान में मापन तथा गणना का प्रयोग अनिवार्य है। मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, भौतिक तथा रसायन शास्त्रों में प्रगति तभी सम्भव है जबकि विद्यार्थी मापन सम्बन्धी सामान्य ज्ञान रखते हों। वह मध्यमान, मध्यिका, मापन विचलन, सहसम्बन्ध आदि शब्दों को समझता हो और रेखाचित्र तथा लेखाचित्र की सही-सही व्याख्या कर लेता हो अन्यथा उसका ज्ञान अपूर्ण और त्रुटियुक्त होगा।
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