अन्तर्राष्ट्रीयता का सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिये। अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास में भूगोल की भूमिका का विवेचन कीजिये।
भूगोल ऐसा विषय है जो सम्पूर्ण पृथ्वी तल का अध्ययन करता है स्पष्ट है कि भूगोल की समस्त भूमण्डल का ज्ञान छात्रों को कराने में सक्षम है। इसमें सभी भौतिक तत्वों तथा मानव के मध्य अन्तर्सम्बन्धों के अध्ययन पर बल दिया जाता है। अर्थात् इन अन्तर्सम्बन्धों का विश्लेषण स्थानिक एवं क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय सूझ से आशय सम्पूर्ण विश्व में रहने वाले लोगों की जीवन शैली को समझना, उसके साथ विचार विनिमय करना, उनकी तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परस्पर वस्तुओं का आदान-प्रदान करना, विश्व में किसी प्राकृतिक आपदा से पीड़ित जनसमुदाय की सहायता के लिए तत्पर रहना आदि अन्तर्राष्ट्रीय सूझ के उदाहरण है। वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय बोध ही मानव की सांस्कृतिक तथा कलात्मक धरोहरों को सुरक्षित रखने का एक मात्र माध्यम है। भारत में ताजमहल तथा पेरिस में ऐफिल टावर को देखने के लिए प्रतिवर्ष इतने पर्यटक क्यों आते हैं। पर्यटकों को आकर्षित करने वाली यह कृतियाँ मानव सभ्यता की प्रगति तथा मानव के कौशल की प्रतीक हैं जो आने वाले पर्यटकों में मानव सभ्यता के विकास पर गर्व का अनुभव कराती हैं और उनका कला-कौशल में अपने पूर्वजों से भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। लेकिन धर्मान्धता से ग्रसित लोगों में इराक, सीरिया तथा अफगानिस्तान में इन प्राचीन कलाकृतियों को धराशायी करके अपने कुण्ठित तथा संकीर्ण मनोभावों का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
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अन्तर्राष्ट्रीय बोध की आवश्यकता
वर्तमान विश्व में अनेक घटनाएँ ऐसी हो रही हैं जो मानव तथा मानवता दोनों के लिए संकट पैदा कर रही है। इनमें से कुछ घटनाओं का उल्लेख करना आवश्यक है क्योंकि ये घटनाएँ ही विश्व बन्धुत्व की भावना के विकास के लिए शिक्षाविदों, राजनीतिज्ञों, धर्मगुरूओं और आम आदमी को सोचने के लिए विवश करेंगी।
साम्राज्य विस्तार की घटनाएँ बहुत पहले अधिक हुआ करती थीं जिसके पीछे एक संकुचित दृष्टिकोण अपने बल को प्रदर्शित करना तथा अपने देश के लिए अन्य देशों से संसाधनों को जुटाना होता था। लेकिन आज भी चीन ऐसा देश है जो भारत की भूमि को दबाएँ बैठा है और प्रशान्त महासागर में अपने पैर फैला रहा है।
आतंकवाद दूसरा बड़ा कारण है जो अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के विकास के लिए एक उदाहरण है। आज विश्व के सभी देशों में आतंकवाद से लोग भयभीत हैं। संयुक्त राज्य जैसा शक्तिशाली देश भी आतंकवाद से भयभीत है। भारत में आतंकवाद की घटनाओं से प्रशासन चिन्तित है। पाकिस्तान से लेकर भूमध्यसागर तक के सभी देशों में आतंकवाद की जड़े इतनी गहरी हो गई हैं कि अनेक देश मिलकर भी सीरिया में इसकों समाप्त नहीं कर पा रहे हैं। अफ्रीका के (कुछ देशों में आतंकवाद के कारण सैकड़ों लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है।)
पर्यावरण प्रदूषण तीसरा कारण है जो अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव की आवश्यकता को प्रकट करता है। आज सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण प्रदूषण के बारे में चिन्तित है। ओजोन पर्त में हो रहे छिद्रों से होकर आने वाली पराबैंगनी किरणों तथा वायुमण्डल में बढ़ती कार्बन डाई ऑक्साइड की वृद्धि से बढ़ते तापमान के कारण हिमनदों का पिघलना, ऑक्सीजन की कमी, सागरीय तथा भूगर्भिक जल का प्रदूषित होना, धीरे-धीरे जलवायु दशाओं में परिवर्तन आदि कारणो से चिन्तित होकर अनेक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन हो चुके हैं। इस समस्या के समाधान में भी अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना सहयोग प्रदान करती है।
अत्याधुनिक शस्त्र बनाने की प्रतिस्पर्धा चौथा कारण है जो अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के विकास की आवश्यकता पर बल देता है। यदि सभी देश अपनी सीमाओं तक सीमित रहें, व्यापार द्वारा परस्पर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करें, विचार विमर्श द्वारा समस्याओं का समाधान निकालें तो हथियारों के निर्माण अथवा रक्षा बजट पर इतना धन व्यय करने की आवश्यकता ही नहीं है। अपितु इस धन को देश के आर्थिक विकास पर व्यय करके देशवासियों के जीवनस्तर को विकसित किया जा सकता है।
भूगोल द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास
रिचथोफेन ने भूगोल के अध्ययन के उद्देश्य के बारे में लिखा हैं ‘भूगोल का विशिष्ट उद्देश्य पृथ्वीतल को विविधतायुक्त तत्वों के मध्य व्याप्त अन्तर्सम्बन्ध का निरूपण करना है।’ ब्रिटिश शब्द कोष के अनुसार ‘भूगोल अध्ययन का उद्देश्य विभिन्न स्थलों की समानता एवं विभिन्नता का उनके कारण व परिणाम के सन्दर्भ में अध्ययन करना है।’ ये उद्देश्य स्पष्ट करते हैं कि पृथ्वीतल पर विद्यमान प्राकृतिक तत्वों की विविधता तथा प्रादेशिक भिन्नता के कारण तथा उनके संयोजन से अनेक प्रकार के प्राकृतिक वातावरण की रचना होती है। इन वातावरण में रहने वाले लोग तथा उनके वातावरण के मध्य अन्तर्सम्बन्ध के परिणामस्वरूप सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विविधताएँ पृथ्वीतल पर पायी जाती हैं। यह ज्ञान ही ऊँच-नींच, वर्गभेद, काले-गोरे का भेदभाव आदि को समाप्त कर अन्तर्राष्ट्रीय बोध छात्रों में पैदा करेगा।
मानव और वातावरण के मध्य सम्बन्ध का ज्ञान कराकर पृथ्वीतल पर रहने वाले लोगों के विभिन्न व्यवसायों का ज्ञान करवाया जा सकता है। कहीं लोग शिकार, कहीं पशुपालन, तो कहीं मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। इसका उत्तर छात्र को भूगोल से मिल सकता है। विश्व में काफी समय तक त्वचा के रंग के आधार वर्ग भेद चलता रहा। त्वचा का रंग प्राकृतिक वातावरण की देन है। इस अवधारणा या सत्य का ज्ञान भूगोल ही करा सकता है।
पृथ्वी तल प्राकृतिक संसाधनों के वितरण की असमानता का ज्ञान भूगोल द्वारा होता है और भूगोल अध्ययन ही बच्चों में परस्पर निर्भरता का पाठ सिखा सकता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम परिवर्तन करके छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का विकास सम्भव है।
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