अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में इतिहास का क्या दायित्व है?
अथवा
इतिहास शिक्षण अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना बढ़ाने में किस प्रकार सहायक है? स्पष्ट कीजिए।
इतिहास शिक्षण अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना बढ़ाने में सहायक
(History Teaching to promote Intervetioned Brotherhood)
“इतिहास शिक्षण अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव बढ़ाने में सहायक हैं” की महता पर विभिन्न शिक्षा आयोगों ने जो विचार प्रकट किए हैं वे निम्नलिखित है:
(1) माध्यमिक शिक्षा आयोग ने इतिहास शिक्षण की महता पर अपने प्रतिवेदन में लिखा है आज विश्व में “मेरा देश सर्वोत्कृष्ट है भले ही वह गलत मार्ग पर ही क्यों न हो की मनोवृत्ति सर्वाधिक हानिकारक है। समस्त विश्व आज इतना अन्तःसंबंधित है कि कोई भी राष्ट्र एकाकी नहीं रह सकता तथा विश्व नागरिकता की भावना का विकास राष्ट्रीय नागरिकता की भाँति ही महत्वपूर्ण हो गया है। अतः वस्तुत केवल राष्ट्रीय भावना या देश प्रेम ही पर्याप्त नहीं है इसे इस भावना से पुष्ट किया जाना अपेक्षित है कि हम सब एक विश्व के सदस्य हैं और हमें उस रूप में अपने दायित्व का मानसिक व भावात्मक स्वरूप से निर्वाह के लिए तत्पर रहना चाहिए।”
(2) कोठारी शिक्षा आयोग ने अपने प्रतिवेदन में लिखा है “माध्यमिक स्तर पर यथा संभव विश्व इतिहास के संदर्भ में भारत का इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए । उचित स्थानों पर विश्व संस्कृतियों और सामाजिक विकास की प्रधान विशेषताओं से संबंधित कुछ पाठों में निम्नलिखित विषय शामिल किए जाने चाहिए
(1) विश्व संस्कृति प्राचीन यूनान रोम अरब और चीनी सभ्यता
(2) यूरोप में पुनः जागरण की विशेषताएँ
(3) इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रान्ति
(4) फ्रांस की राज्य क्रान्ति
(5) अमेरिका का स्वतन्त्रता आन्दोलन
(6) 19 वीं सदी में राष्ट्रीयता का विकास
(7) समाजवाद एवं मजदूर संघों का विकास
(8) रूस की क्रान्ति
(9) भारत में साम्राज्यवाद का उन्मूलन ।
इसी आयोग ने अपने प्रतिवेदन में आगे लिखा है कि “एक ही विश्व के लिए आवश्यक है कि उस अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए विकास में कोई विरोधी नहीं है जिसकी तरफ हम गतिशील हैं। भारतीय संस्कृति की यह गौरवपूर्ण परम्परा ही है कि वह अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव दिखाए, मानव सभ्यता में विभिन्न देशों तथा जातियों द्वारा दिए गए योगदान का बिना किसी पूर्वाग्रह के पूर्ण मन से मूल्यांकन करे।”
उक्त उद्धरणों से माध्यमिक स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करने के लिए विश्व इतिहास शिक्षण के निम्नलिखित लक्ष्य स्पष्ट होते है
(1) विश्व इतिहास शिक्षण उग्र राष्ट्रीयता की भावना के स्थान पर विश्व राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करने में सहायक है ।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना बढ़ाने में विश्व इतिहास शिक्षण का अति महत्वपूर्ण स्थान है।
(3) विश्व इतिहास शिक्षण से छात्रों में “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना जागृत की जा सकती है।
(4) “मानव सभ्यता के विकास में किसी एक जाति या राष्ट्र का ही योगदान नहीं है” यह तथ्य विश्व इतिहास शिक्षण में स्पष्ट किया जा सकता है तथा छात्र मानव मात्र का मानव सभ्यता में हाथ है को समझ सकता है।
(5) वर्तमान विश्व अन्तर्राष्ट्रीय आयात निर्यात के माध्यम से अपने नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है तथा मनुष्य विश्व समाज का ही एक अभिन्न अंग है, की भावना का विकास विश्व इतिहास शिक्षण से किया जा सकता है।
(6) “वर्तमान सभ्यता एवं संस्कृति तथा मानवता को विनाश से बचाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की महत्ती आवश्यकता है, यह तथ्य विश्व इतिहास शिक्षण से विद्यार्थियों को समझाया जा सकता है। “
इतिहास शिक्षण अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास करने में सहायक है के मत की पुष्टि करते हुए श्री सी.पी. हिल (C.P.Hill) का कथन है कि “इतिहास के अध्यापन से छात्र को सत्य की खोज करने के लिए तत्पर किया जा सकता है और विभिन्न राष्ट्रों के पारस्परिक संबंधों एवं प्रभावों तथा उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक परिस्थितियों को समझने की क्षमता उत्पन्न करके अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का विकास किया जा सकता है।” इतिहास शिक्षण “अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का आधार है” के मत पर बल देते हुए कुछ विद्वानों का कथन है कि “अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सद्भाव विश्व इतिहास के अध्ययन का पारितोषिक सिद्ध होगा।” उपर्युक्त कारणों से ही इतिहास शिक्षण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य “अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास”।