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अप्रत्यक्ष व्यय से क्या आशय हैं? अप्रत्यक्ष व्यय का वर्गीकरण

अप्रत्यक्ष व्यय से क्या आशय हैं? अप्रत्यक्ष व्यय का वर्गीकरण
अप्रत्यक्ष व्यय से क्या आशय हैं? अप्रत्यक्ष व्यय का वर्गीकरण
अप्रत्यक्ष व्यय से क्या आशय हैं? अप्रत्यक्ष व्ययों का वर्गीकरण कीजिए।

अप्रत्यक्ष व्यय या उपरिव्यय (Indirect Expenses or Overhead) – वे व्यय जो किसी विशेष कार्य अथवा उपकार्य से सम्बन्धित नहीं होकर सम्पूर्ण उत्पादन से सम्बन्धित होते हैं, अप्रत्यक्ष व्यय कहलाते हैं। इन व्ययों को सम्पूर्ण उत्पादन एवं उपकार्यों पर विभाजित करके लागत में सम्मिलित किया जाता है। चूंकि वस्तु की उत्पादन लागत में इन व्ययों को विभाजित करके उनके एक भाग को ही जोड़ा जाता है, अतः उन्हें उपरिव्यय भी कहा जाता है। कभी-कभी इन्हें अधिव्यय (On Cost) भी कहा जाता है किन्तु उपरिव्यय (Overhead) एवं अधिव्यय में अन्तर होता है। सामान्यतया उपरिव्यय वास्तविक होता है, जबकि अधिव्यय अनुमानित होता है, जैसे-कारखाना अधिव्यय मजदूरी का 80%। हालांकि कुछ विद्वान दोनों व्ययों को एक ही मानते है किन्तु ऐसा मानना न्यायोचित नहीं प्रतीत होता है। संक्षेप में, मूल लागत (Prime Cost) के अलावा जितने भी व्यय होते हैं, उपरिव्यय कहे जाते हैं। चाहे वे कारखाना उपरिव्यय हों, कार्यालय उपरिव्यय हों या फिर बिक्री एवं वितरण उपरिव्यय हों।

अप्रत्यक्ष व्ययों का वर्गीकरण (Classification of Indirect Expenses )

उपरिव्ययों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है। इनके वर्गीकरण के मुख्य आधार निम्नलिखित हैं-

  1. कार्यानुसार वर्गीकरण (Function-wise Classification)
  2. तत्वानुसार वर्गीकरण (Elemental Classification),
  3. परिवर्तनशीलता के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the basis of Variability)
  4. नियन्त्रणता के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the basis of Controllability)
  5. सामान्यता के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the basis of Normality )।

(1) कार्यानुसार वर्गीकरण (Function-Wise Classification) – कार्य के अनुसार अप्रत्यक्ष व्ययों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे-

(A) कारखाना उपरिव्यय (Factory Overhead), (B) कार्यालय उपरिव्यय (Office Overhead) (C) विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय (Selling & Distribution Overhead)

(A) कारखाना उपरिव्यय (Factory Overhead)- वे व्यय जो कारखाना के अन्दर वस्तु के निर्माण से सम्बन्धित होते हैं, उन्हें कारखाना उपरिव्यय कहते हैं। इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे- कार्यशाला उपरिव्यय (Works Overhead) उत्पादन उपरिव्यय (Pro duction Overhead) तथा निर्माणी उपरिव्यय (Manufacturing Overhead) । इनके अन्तर्गत निम्नलिखित व्यय सम्मिलित किये जाते हैं-

(1) कारखाने की भूमि व भवन का किराया, (2) कारखाने का बीमा, (3) कारखाने की भूमि व भवन पर नगरपालिका कर (Municipal Tax), (4) कारखाने के भव का ह्रास, (5) कारखाने की मशीनों व प्लाण्टों पर ह्रास, (6) एस्टीमेटिंग व्यय (Estimating expenses). (7) हॉलेज (Haulage), (8) कारखाने के फोरमैन व अन्य निरीक्षकों का वेतन, (9) कारखाने के प्रबन्धक व अन्य अधिकारियों का वेतन, (10) कारखाने के अन्दर प्रकाश व शक्ति पर व्यय, (11) छोटे औजारों (Loose Tools) का व्यय, (12) मशीन का तेल व सफाई के व्यय, (14) कारखाने की मशीन व प्लाण्ट का बीमा, (15) कारखाने की सहायक वस्तुएँ, जैसे- पेंच, कीलें, बोल्ट्स तथा ढिबरी आदि, (16) अप्रत्यक्ष सामग्री, जैसे-रद्दी कपड़ा, ब्रुश, पेटी आदि, (17) भण्डारण व्यय, (18) सामग्री की साधारण हानि, (19) नक्शा कार्यालय के व्यय (Drawing Office Wxpenses). (20) कार्यहीन काल का साधारण व्यय (Normal Expenses of Idle Time), (21) कारखाने की स्टेशनरी व टेलीफोन व्यय, (22) प्रयोगात्मक व अनुसंधानात्मक व्यय, आदि ये प्रत्यक्ष व्यय नहीं हैं, (23) कारखाने में कार्यालय का व्यय, (24) श्रम कल्याण हेतु किये गये व्यय, (25) अधिसमय (Overtime) का पारिश्रमि, (26) कार्यहीन काल का वेतन, (27) अवकाश के दिनों का वेतन, (28) शक्तिगृह के समस्त व्यय, जैसे- मरम्मत, घिसाई, बीमा, संचालन, निरीक्षण आदि। (29) कारखाने के कर्मचारियों का प्रशिक्षण व्यय, (30) कारखाने के अन्दर किये गये अन्य कोई व्यय ।

(B) कार्यालय उपरिव्यय (Office Overhead)- संस्था के प्रशासन सम्बन्धी सम्पूर्ण व्यय, कार्यालय सम्बन्धी व्यय तथा अन्य व्यवस्था सम्बन्धी व्यय इसके अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं। इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे-प्रशासनिक उपरिव्यय (Administrative Overhead) तथा सामान्य उपरिव्यय (General Overhead)। इन व्ययों में निम्नलिखित व्यय सम्मिलित किये जाते हैं-

(1) कार्यालय भवन का किराया व कर, (2) कार्यालय भवन का ह्रास व मरम्मत पर व्यय, (3) कार्यालय यंत्रों, जैसे-टाइपराइटर, डुप्लीकेटर, कैलकुलेटर आदि पर व्यय, (4) कार्यालय का बीमा, (5) कार्यालय के फर्नीचर व साज-सज्जा की मरम्मत आदि पर व्यय, (6) लिपिकों, चपरासियों, कार्यालय प्रबन्धकों, लेखापालों आदि का वेतन, (7) संचालकों की फीस, (8) कार्यालय की छपाई व स्टेशनरी आदि के व्यय, (9) डाक व टेलीफोन व्यय, (10) कार्यालय में प्रकाश, वातानुकूलित संयंत्र के व्यय (11) कानूनी व्यय, (12) अंकेक्षण फीस, (13) बैंक सम्बन्धी व्यय, (14) अन्य वित्तीय व्यय, (15) व्यापारिक संस्था को दिये गये चन्दे, (16) अन्य कार्यालय सम्बन्धी व्यय ।

(C) विक्रय एंव वितरण उपरिव्यय (Selling and Distribution Overhead ) – ऐसे अप्रत्यक्ष व्यय जो माल की बिक्री एवं उसके बाहर भेजने के सम्बन्ध में होते हैं, इस शीर्षक के अन्तर्गत सम्मिलित किये जाते हैं जोकि निम्नलिखित हैं-

विक्रय सम्बन्धी- (1) विक्रय प्रतिनिधियों का वेतन, कमीशन या अन्य पारिश्रमिक, (2) विक्रय प्रतिनिधियों का यात्रा व्यय, (3) विक्रय प्रबन्धक का वेतन व अन्य सुविधाएं, (4) वस्तु-प्रदर्शन गृह (Show-room) का सम्पूर्ण व्यय, (5) विज्ञापन व्यय, (6) मूल्य सूची के नमूने भेजने के व्यय, (7) डाक व तार व्यय, (8) विक्रय से सम्बन्धी टेलीफोन व्यय, (9) ग्राहकों की आवाभगत (Entertainment) पर व्यय, (10) अप्राप्य ऋण (Bad Debts), (11) बट्टा या छूट (Discount), (12) अप्राप्य ऋणों की वसूली सम्बन्धी कानूनी व्यय, (13) विक्रय शाखाओं (एजेंसी) के व्यय, (14) टेण्डर भरने के व्यय, (15) विक्रय विभाग के वेतन व अन्य व्यय विवरण (Distribution) सम्बन्धी (15) सुपुर्दगी गाड़ियों के व्यय (संचालन व्यय, मरम्मत, बीमा आदि), (17) बाह्य ढुलाई (Carriage Outward), (16) गोदाम व्यय (किराया, ह्रास, बीमा, कर्मचारियों का वेतन आदि), (19) गोदाम में रखे गये माल की हानि, (20) पैंकिंग व्यय (पैंकिंग सामग्री, वेतन आदि)।

(II) तत्वानुसार वर्गीकरण (Elemental Classification) – इस आधार पर अप्रत्यक्ष व्ययों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

( 1 ) अप्रत्यक्ष सामग्री (Indirect Materials)- वस्तु के निर्माण में प्रत्यक्ष सामग्री अथवा कच्चे माल के अलावा जो अन्य प्रकार की समाग्री प्रयोग में लायी जाती है, अप्रत्यक्ष सामग्री कहलाती है। इसके उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. खराब कपड़ा, ब्रूश, जूट या रूई आदि।
  2. मशीनी की चिकनाई के लिए तेल।
  3. ईंधन-लकड़ी, कोयला, पेट्रोल, तथा डीजल आदि।
  4. छोटे-छोटे औजार।
  5. छोटी-छोटी वस्तुएँ, जैसे-पेंच, कीलें आदि।

(2) अप्रत्यक्ष श्रम (Indirect Labour) – उत्पादन क्रिया में प्रत्यक्ष श्रम के अतिरिक्त जो श्रम लगते हैं, उन्हें अप्रत्यक्ष श्रम कहते हैं। इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं-

  1. सहायक (Helper) श्रमिक।
  2. अवकाश वेतन (Leave Salary)।
  3. कार्यहीन काल (Idle Time) का वेतन ।
  4. चौकीदारों का वेतन
  5. कारखाना प्रबन्धक एवं फोरमैन का वेतन ।
  6. प्रॉविडेण्ट फण्ड में मालिक का अंशदान।
  7. कर्मचारियों के जीवन बीमा पर नियोक्ता द्वारा दिया गया प्रीमियम।
  8. श्रमिकों की क्षति-पूर्ति।
  9. मरम्मत व अनुरक्षण (Repairs and maintenance) कार्य में लगे श्रमिकों का परिश्रमिक व भत्ता आदि।

( 3 ) अप्रत्यक्ष व्यय (Indirect Expenses) – इसके अन्तर्गत निम्नलिखित व्यय आते हैं-

  1. अप्रत्यक्ष सामग्री (indirect Materials)
  2. अप्रत्यक्ष श्रम (Indirect Labour) ।
  3. कारखाना उपरिव्यय (Factory Overhead)।
  4. कार्यालय व प्रशासन उपरिव्यय आदि ।
  5. वितरण व बिक्री उपरिव्यय आदि।

इनका वर्णन इसी अध्याय में पूर्व में किया जा चुका है।

(iii) परिवर्तनशीलता के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Variability)– व्ययों की प्रकृति (Nature) में विभिन्नता पायी जाती है, जैसे- कुछ व्यय स्थिर प्रकृति के होते हैं, कुद व्यय सदैव परिवर्तनशील होते हैं और कुछ व्यय ऐसे होते हैं जो एक सीमा तक स्थिर रहते है और उसके बाद वे परिवर्तित होते हैं। परिवर्तनशीलता (प्रकृति) के आधार पर व्ययों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  1. स्थायी उपरिव्यय (Fixed Overhead),
  2. परिवर्तनशील उपरिव्यय (Variable Overhead),
  3. अर्द्धपरिवर्तनशील उपरिव्यय (Semi-variable Overhead)।

(1) स्थायी उपरिव्यय (Fixed Overhead)- ऐसे व्यय जो उत्पादन की मात्रा में घट-बढ़ होने पर भी अपरिवर्ति रहते है, स्थायी उपरिव्यय कहलाते हैं। इनके सम्बन्ध में कुछ बातें स्मरणीय है जो इस प्रकार हैं- (i) उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होने पर प्रति इकाई स्थायी उपरिव्यय घटने लगता है, दूसरी ओर, जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा घटती जाती है, प्रति इकाई स्थायी उपरिव्यय में वृद्धि होती जाती है। (ii) ये उपरिव्यय उत्पादन की एक निश्चित सीमा तक ही स्थिर रहते हैं। एक निश्चित सीमा के बाद ये व्यय बढ़ने लगते हैं। स्थिर व्यय के निम्नलिखित उदाहरण हैं-

(a) कारखाना स्थिर उपरिव्यय (Factory Fixed Overhead)- इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं-

  1. भूमि व भवन का किराया।
  2. कारखाना प्रबन्धक व अन्य अधिकारियों का वेतन।
  3. कारखाना भवन व मशीन का बीमा व ह्रास।
  4. कारखाने में प्रकाश आदि का व्यय ।

कार्यालय स्थिर उपरिव्यय (Office Fixed Overhead)- इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं-

  1. कार्यालय प्रबन्धक व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों का वेतन ।
  2. कार्यालय भव का किराया, ह्रास, कर, बीमा, मरम्मत आदि ।
  3. फर्नीचर का किराया या ह्रास आदि।
  4. कर्मचारियों का वेतन।
  5. प्रकाश व्यवस्था व वातानुकूलित व्यवस्था बनाये रखने व संचालन के व्यय।

(c) विक्रय स्थिर उपरिव्यय (Selling Fixed Overhead)- इसके निम्नलिखिन उदाहरण हैं-

  1. विक्रय विभाग के स्थायी कर्मचारियों का वेतन ।
  2. विक्रय प्रबन्धक व अधिकारियों का वेतन ।
  3. प्रदर्शन गृह के व्यय-किराया, हास, कर व बीमा आदि।
  4. मूल्य सूचियाँ तैयार करने के व्यय ।
  5. दुकान का किराया बीमा व ह्रास ।
  6. फर्नीचर का किराया, ह्रास, बीमा आदि।
  7. विक्रय प्रतिनिधियों का वेतन ।
  8. तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों का वेतन।
  9. दुकान व प्रदशन गृह की प्रकाश व्यवस्था आदि।

(d) वितरण स्थिर उपरिव्यय (Distribution Fixed Overhead)- इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं-

  1. सुपुर्दगी गाड़ी के ड्राइवर का वेतन, बीमा, कर, ह्रास आदि।
  2. गोदाम का किराया ह्रास कर बीमा आदि।
  3. गोदाम के समस्त कर्मचारियों का वेतन व भत्ता आदि।
  4. गोदाम के प्रकाश आदि में व्यय ।

(2) परिवर्तनशील उपरिव्यय (variable Overhead)— वे अप्रत्यक्ष व्यय जो उत्पादन की मात्रा के अनुपात में घटते-बढ़ते रहते हैं, परिवर्तनशील उपरिव्यय के रूप में जाने जाते हैं। प्रत्यक्ष सामग्री, प्रत्यक्ष श्रम एवं प्रत्यक्ष व्ययों की तरह परिवर्तनशील उपरिव्यय उत्पादन में कमी होने पर घटते हैं तथा उत्पादन में वृद्धि होने पर बढ़ते हैं। इसके उदाहरण निम्नलिखित हैं-

(a) परिवर्तनशील कारखाना उपरिव्यय (Variable Factory Overhead)- इसके निम्नलिखित हैं-

  1. शक्ति व ईंधन।
  2. मशीन व संयंत्रों की मरम्मत व टूट-फूट।
  3. मशीन के संचालन व्यय-तेल, रुई, ब्रुश आदि।
  4. भण्डार व्यय ।
  5. आगम गाड़ी भाड़ा (Carriage Inward)।

(b) परिवर्तनशील कार्यालय उपरिव्यय (Variable office Overhead) इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं-

  1. बैंक व्यय ।
  2. कानूनी खर्चे ।
  3. स्टेशनरी ।
  4. डाक व्यय ।

(c) परिवर्तनशील विक्रय उपरिव्यय (Variable Selling Overhead)- इसके निम्नलिखित उदाहरण हैं-

  1. ग्राहकों की आवभगत पर किये गये व्यय।
  2. अप्राप्त ऋण।
  3. डाक व्यय ।
  4. ग्राहकों को दिया गया कमीशन व बट्टा।
  5. विक्रय प्रतिनिधियों को यात्रा व्यय व कर्म शन।

(d) परिवर्तनशील वितरण उपरिव्यय (Variable Distribution Overhead) –

  1. बाह्य गाड़ीभाड़ा (Carriage Outward)।
  2. पैकिंग व्यय ।
  3. सुपुर्दगी गाड़ियों का संचालन व्यय-पेट्रोल, ह्रास आदि।
  4. गोदाम में निर्मित माल की हानि ।

(3) अर्द्धपरिवर्तनशील उपरिव्यय (Semi-Variable Overheads) – कुछ अप्रत्यक्ष व्यय इस प्रकारके होते हैं जो उत्पादन में वृद्धि होने पर अनुपात से कम बढ़ते हैं तथा उत्पादन में कमी होने पर अनुपात से कम घटते हैं, अर्द्धपरिवर्तनशील उपरिव्यय कहे जाते हैं। दूसरे शब्दों में, इन व्ययों से का एक भाग स्थायी और शेष भाग परिवर्तनशील होता है। उदाहरणत, भवन एवं फर्नीचर की मरम्मत, डाक व्यय, लेख पुस्तकों पर व्यय, अप्रत्यक्ष श्रम पर व्यय, टेलीनफोन व्यय, प्रकाश व्यय आदि ।

परिवर्तनशीलता के आधार पर उपरिव्ययों को विभाजित करने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है-

किसी वस्तु की उत्पादन लागत निर्धारित करने के उद्देश्य से यह आवश्यक हो जाता है कि व्ययों की प्रकृति का अध्ययन कर लिया जाय। यदि व्यय परिवर्तनशील है तो उत्पादन की मात्रा का प्रति इकाई लागत पर कोई प्रभाव नहीं होगा। ऐसी स्थिति में उत्पादन विभाग कम वस्तुओं के उत्पादन का निर्णय ले सकता है किन्तु यदि उत्पादन में स्थायी प्रकृति के व्यय अधिक है तो अधिक उत्पादन करने पर प्र. इकाई लागत घटती चली जायेगी इसी प्रकार अर्द्धपरिवर्तनशील व्यों की दशा में भी अधिक उत्पादन प्रति इकाई लागत कम करता है। इस विवेचन का आशय यह हुआ कि उत्पादन नीति का टैण्डर मूल्य निर्धारित करते समय व्ययायें की प्रकृति का अध्ययन आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।

स्थायी एंव परिवर्तनशील उपरिव्ययों में अन्तर करना निम्न कारणों से आवश्यक है-

  1. शुद्ध उत्पादन लागत की जानकारी के लिए।
  2. लोचदार बजट (Flexible Budget) का निर्माण करने हेतु ।
  3. सीमान्त लागत (Marginal Cost) की गणना करने हेतु ।
  4. उत्पादन की किस मात्रा पर लागत कितनी होगी, इसका निर्धारण इसी वर्गीकरण से सम्भव हैं।
  5. कार्यहीन काल (Idle Time) की लागत की गणना करने हेतु ।
  6. टैण्डर मूल्य (Tender Price) की गणना करने हेतु ।
  7. प्रति इकाई उत्पादन लागत की गणना करने हेतु ।
  8. विक्रय मूल्य में कटौती करने का निर्णय लेने के सम्बन्ध में या स्थिति में ।

(IV) नियन्त्रण के आधार पर वर्गीकरण (Classification on The Basis of Controllability)

(1) नियन्त्रण योग्य उपरिव्यय (Controllable Overhead)- जिन व्ययों पर व्यवसाय (संस्था) के अधिकारी अपने प्रयास से नियन्त्रण रख सके तथा कुछ सीमा तक उसमें कमी करने में सकल हो सकें, नियन्त्रण योग्य व्यय कहलाते हैं। सामान्यतया ऐसे व्यय परिवर्तनशील व्यय होते हैं।

( 2 ) अनियन्त्रणीय उपरिव्यय (Uncontrollable Overhead)- ऐसे व्यय जिन्हें व्यवसाय (संस्था) के अधिकारी अपने प्रयासों के बावजूद नियन्त्रित नहीं कर सकें अथवा उन्हें कम नहीं कर सकें, अनियन्त्रणीय उपरिव्यय कहे जाते हैं। सामान्यतया स्थायी उपरिव्यय इनके अन्तर्गत आते हैं।

(V) सामान्यता के आधार पर वर्गीकरण (Classification on The Basis of Normality)- इस आधार पर उपरिव्ययों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है जो निम्नलिखित हैं-

(1) सामान्य व्यय (Normal Expenses)- सामान्य व्ययों का आशय ऐसे व्ययों से है जो उत्पादन लागत में अवश्य शामिल किये जाते हैं। इन व्ययों को ध्यान से हटाया नहीं जा सकता है। दूसरे शब्दों में, ये ऐसे व्यय होते हैं जो उत्पादन की सामान्य दशाओं में किये जाते हैं। उदाहरणतः भवन का किराया, मरम्मत, बीमा, कर्मचारियों का वेतन, स्टेशनरी आदि।

( 2 ) सामान्य व्यय (Abnormal Expenses)- ऐसे व्यय जो विशेष परिस्थितिवश किये जाते हैं और जो सामान्य नहीं होते, असामान्य व्यय कहे जाते हैं, जैसे-अग्नि से हानि, चोरी से हानि, विम्फोट से यन्त्र की हानि, बाढ़ के कारण हानि, हड़ताल तथा तालाबन्दी से हानि आदि। वस्तुनः ऐसे व्यय लागत का अंग नहीं होते, अतः इन्हें लाभ-हानि खाते में लिखा जाता है।

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Anjali Yadav

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