इतिहास और अर्थशास्त्र के सह-सम्बन्ध का परीक्षण कीजिए।
इतिहास तथा अर्थशास्त्र का अति निकटता का सह-सम्बन्ध रहा है। जहां तक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध है, यह सम्पत्ति का शास्त्र है, जिसका सम्बन्ध उत्पादन, वितरण उपभोग तथा विनियम से है। इसी कारण कौटिल्य जैसे विचारक मे अपनी ऐतिहासिक रचना का नाम अर्थशास्त्र रखा था। समाज ने अपनी आजीविका के साधनों को किस प्रकार उत्पन्न किया, इसका ज्ञान हमें आर्थिक इतिहास ही प्रदान करता है। ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात आर्थिक क्रियाकलाप विश्व इतिहास पर सर्वाधिक प्रभावकारी सिद्ध हुए। कार्ल मार्क्स द्वारा इतिहास की आर्थिक व्याख्या ने अनेक इतिहासकारों को इस विषय में सोचने के लिए बाध्य किया। मार्क्स के अनुसार इतिहास का प्रत्येक युग आर्थिक परिस्थितियों से प्रभावित रहा है। आर्थिक इतिहास के क्षेत्र में मनुष्य के कार्यों को प्रभावित करने वाले विचार समाज के उद्देश्य, विभिन्न विभिन्न वर्गों का पारस्परिक सम्बन्ध तथा व्यवहार का अध्ययन आदि विषय होते हैं। इतिहासकारों का प्रयास यह देखना है कि आर्थिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप किस प्रकार सामाजिक सम्बन्धों तथा मानवीय व्यवहार में परिवर्तन होते रहे हैं। इतिहासकार का अध्ययन मानवीय व्यवहार तथा कार्यों के परिवेश में सामाजिक परिवर्तन है, यह इतिहास की आर्थिक कहानी है। सर विलियम्स ऐश्ले ने आर्थिक इतिहास के स्वरूप के सम्बन्ध में लिखा है, “मनुष्य ने आजीविका के साधनों के उत्पादन में अधिकतम संतोष प्राप्त करने के लिए क्या किया, यही आर्थिक इतिहास का सार है।”
फ्रान्स की क्रान्ति का मुख्य कारण आर्थिक विषमता थी और उसने फ्रान्स के इतिहास को ही बदल दिया। उन्नसवीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति के कारण मशीनों का निर्माण हो गया और बहुत माल बनने लगा। इसीलिए उस माल की खपत के लिए यूरोप के राष्ट्रों को नई मण्डियों की तलाश करनी पड़ी। इस प्रकार इतिहास में उपनिवेशवाद का एक नया अध्याय आरम्भ हुआ। यही उपनिवेशवाद कालान्तर में साम्राज्यवाद के रूप में परिवर्तित हो गया। यूरोप के राष्ट्रों ने अपने उत्पादों के लिए एशिया तथा अफ्रीका के महाद्वीपों में अपने उपनिवेश स्थापित कर इन राष्ट्रों के खनिज संसाधनों का प्रयोग अपने लाभ के लिए किया। 1917 की रूसी क्रान्ति में भी प्रमुख रूप से आर्थिक कारक ही थे। रूस में जारी की दुर्बल आर्थिक नीतियों के कारण ही कृषक तथा मजदूर वर्ग में असन्तोष व्याप्त था। अंग्रेज भारत में व्यापारी बनकर आये और बाद में व्यापार की रक्षा ने उन्हें यहाँ पर अपना राज्य स्थापित करने पर विवश कर दिया था। जर्मनी में नाजीवाद तथा इटली में फासीवाद के उदय का कारण भी 1930 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी थी। पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के कारण भी मुख्यतया आर्थिक ही थे, जिन्होंने सब देशों की विदेश नीति को उग्र बनाने में योगदान दिया। रूस अपनी आर्थिक विवशता के चलते. बाल्कन क्षेत्र में ऑस्ट्रिया के प्रभाव को बढ़ने नहीं देना चाहता था।
उपरोक्त, सभी उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं आर्थिक क्रियाकलापों से बहुत हद तक प्रभावित रही हैं। मार्क्सवादी लेखन का तो आधार ही आर्थिक रहा है। मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित अनेक भारतीय विद्वानों ने आर्थिक इतिहास की विभिन्न शाखाओं का अध्ययन किया है। हिरेन मुखर्जी, रजनी पामदन्त, डी.डी. कोसाम्बी तथा इरफान हबीब ने अपने इतिहास लेखन का आधार ही आर्थिक रखा है।
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