इतिहास का नागरिक शास्त्र/ राजनीतिशास्त्र विज्ञान के साथ सह-सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
प्रसिद्ध इतिहासकार ट्रेबलियन ने इतिहास के सभी विषयों का निवास ग्रह बताया है। आधुनिक इतिहास का अध्ययन केवल एक विषय के अध्ययन तक सीमित नहीं है, अपितु मनुष्य के संगठित सामाजिक समूहों के सभी पहलुओं आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक, कानून व परम्पराओं का अध्ययन है। इतिहास का राजनीति विज्ञान के साथ निकट का सम्बन्ध रहा है। राजनीतिक संस्थाओं के प्रारम्भ और विकास की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें इतिहास की सहायता लेनी पड़ती है। राजनीतिक संस्थाओं की जड़ें इतिहास में छुपी रहती हैं। मानवीय इतिहास के विभिन्न कालों में विविध शासकों द्वारा अनेक प्रशासकीय कार्य किये गये, जिनमें बहुत से कार्य ऐसे हैं, जिनका दूरगामी प्रभाव स्पष्ट रूप से इतिहास के पन्नों पर दिखाई पड़ता है। उदाहरण के लिए सम्राट अकबर ने सुलह-ए-कुल या धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई, फलतः उसका साम्राज्य सुदृढ़ तथा चिरस्थायी हो गया। यह दुखद विषय है कि उसके प्रपौत्र औरंगजेब ने इस नीति का परित्याग कर दिया और धार्मिक असहिष्णुता की नीति अपनाई। उसने हिन्दुओं पर जाजिया कर लगा दिया, अनेक पुराने मंदिरों को तुड़वा दिया तथा नए मंदिरों का निर्माण बन्द करवा दिया। राजपूतों के प्रति भी औरंगजेब ने राजनीतिक विवेकहीनता का परिचय दिया। इसी प्रकार औरंगजेब ने नवें गुरू तेग बहादुर की हत्या करवाकर दसवें सिक्ख गुरू गोविन्दि सिंह से झगड़ा ले लिया, जो मुगल साम्राज्य के पतन में सहायक सिद्ध हुआ। इस तरह अपनी धार्मिक असहिष्णुता की नीति के कारण औरंगजेब निरन्तर राजपूतों, सिक्खों, मराठों और जाटों से युद्धों में लम्बे समय तक विलीन रहा, जिसके कारण उसका साम्राज्य खण्डित हो गया। आधुनिक संविधान के निर्माताओं ने इतिहास से शिक्षा ग्रहण करके संघात्मक सरकार के ढांचे में भी शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना की।
जिस तरह राजनीति की इतिहास पर निर्भरता है, उसी तरह इतिहास की भी राजनीति पर निर्भरता है। ये वास्तव में एक-दूसरे के पूरक हैं। हमारा इतिहास का ज्ञान अधूरा रह जायेगा, यदि हम राजनीतिक घटनाओं की उपेक्षा कर दें।
उदारहण के लिए उन्नीसवीं शताब्दी का यूरोपीय इतिहास, राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, व्यक्तिवाद, लोकतन्त्र, समाजवाद तथा साम्यवाद जैसी महान विचारधाराओं के गहरे अध्ययन के बिना अधूरा रहेगा। बीसवीं शताब्दी में इटली में फासिज्म तथा जर्मनी में नाजीवाद का उदय महान राजनीतिक घटनाएं हैं। उनका न केवल इटली और जर्मनी के इतिहास पर, बल्कि विश्व के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा है, क्योंकि उनके कारण ही द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा गया है इस प्रकार भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए क्रान्तिकारियों (भगतसिंह, चन्द्रशेखर, राम प्रसाद बिस्मिल, वी. डी. सावरकर, सुभाषचन्द्र बोस इत्यादि) ने जो राजनीतिक आन्दोलन चलाए, उनकी भारतीय इतिहास पर अमिट छाप पड़ी है। महात्मा गाँधी के आन्दोलन में ये सभी राजनीतिक गतिविधियाँ इतिहास पर अपना अमूल्य ध्यान रखती हैं। 1909, 1919, 1935 के अधिनियमों तथा भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम का भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इसी आधार पर हम कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान अथवा नागरिक शास्त्र का इतिहास के साथ अति निकटता का सह सम्बन्ध है।