इतिहास शिक्षण की विधि की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए उसके गुण-दोषों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
कथन विधि पर टिप्पणी लिखिए।
कथन विधि से आशय
इतिहास शिक्षण की सबसे प्राचीन विधि कथन विधि है। इस विधि के माध्यम से अध्यापक छात्र को ज्ञान देता है। छात्र उसे सुनकर याद कर लेता है। इस विधि में छात्र केवल श्रोता की भूमिका में होता है। अतः इस विधि को नीरस कहा जाता है। इसी कारण कथन के स्थान पर छात्र सहयोग भी जोड़ा गया है। इसे उपयोगी बनाने के लिए चित्र, मानचित्र आदि की सहायता तथा श्यामपट्ट का उपयोग भी किया जाता है। छात्रों से लिखित कार्य भी कराया जाता है, ताकि कथन की बहुत-सी कमियाँ दूर हो सकें। अपने कथन को प्रभावशाली बनाकर श्रोताओं पर अमिट प्रभाव छोड़ते है। छोटे बालकों के लिए यह विधि बहुत अधिक प्रभावी और कारगर नहीं हो सकती।
कथन विधि की विशेषताएँ
कथन विधि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) नए पाठ, विषय या अध्ययन का आरम्भ करते समय कथन द्वारा छात्रों को प्रेरित किया जा सकता है।
(ii) जब कोई अंश या विषय वस्तु आसानी से स्पष्ट न हो रही हो तो कथन का सहारा लिया जा सकता है।
(iii) अतिरिक्त सामग्री के प्रस्तुतीकरण, अनुभव घटनाएँ आदि सुनाते समय कथन विस्तार किया जा सकता है।
(iv) पाठ को संक्षिप्त करने, मुख्य बिन्दु को सार के रूप में प्रस्तुत करने में इसका प्रयोग होता है।
(v) समय की बचत की दृष्टि से भी कथन का उपयोग लाभप्रद हो सकता है।
कथन विधि से लाभ/गुण- इतिहास शिक्षण की विधि से निम्नांकित लाभ हैं-
(अ) कथन अधिक प्रभावशाली – अध्यापक अपनी भाव-भंगिमा, विशेष शब्दों पर जोर देकर तथा अपनी शैली से छात्रों पर वह प्रभाव डाल सकता है, जो छपे शब्द नहीं डाल सकते। अतः छात्रों पर कथन विधि अधिक प्रभावशाली होती है।
(ब) छात्रों को सुनकर सीखने का प्रशिक्षण देना- व्यक्ति को बहुत कुछ जीवन में सुनकर ही सीखना एवं समझना पड़ता है। अतः विद्यालय में इस विधि से छात्रों को यह प्रशिक्षण मिलता है, ताकि भावी जीवन में वे सफलता प्राप्त कर सकडे ।
(स) समय व शक्ति की बचत- इस विधि के माध्यम से बहुत कम समय व श्रम से नया ज्ञान प्राप्त कर लेते है। अतः समय व शक्ति की बचत होती है।
कथन विधि से हानि/अवगुण/दोष- इस विधि के निम्नलिखित दोष है –
(अ) छात्र के स्थान पर अध्यापक अधिक सक्रिय- कथन विधि में छात्र के स्थान पर शिक्षक अधिक सक्रिय होता है। अधिगम में मूल भूमिका छात्र की होनी चाहिए। इस विधि में मूल भूमिका शिक्षक की रहती है, छात्र मात्र श्रोता रहता है।
(ब) अध्यापक पर अधिक दबाव एवं भार- कथन विधि का सही उपयोग करने के लिए अध्यापक को विषय वस्तु की बहुत तैयारी करनी पड़ती है। अतः अध्यापक पर अधिक भार रहता है।
(स) छात्रों को क्रिया द्वारा सीखने का अवसर नहीं- छात्रों को क्रिया द्वारा सीखने का अवसर नहीं होता। अतः ज्ञान अस्थायी रहता है। छात्र केवल श्रोता रहता है।
(द) नीरस तथा ऊबाऊ विधि- सभी अध्यापक प्रभावशाली वक्ता नहीं बन सकते। अतः इस विधि से कक्षा में नीरसता बढ़ती है। छात्र निष्क्रिय बैठे रहते हैं।