इतिहास शिक्षण के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास किस प्रकार किया जा सकता है?
राष्ट्रीय एकता से तात्पर्य “राष्ट्र की अखण्डता, स्वतन्त्रता तथा प्रभुसत्ता सुदृढ़ बने और प्रत्येक नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो, अपने भेदभाव को भुलाकर राष्ट्र के विषय में सोच, उसकी प्रगति को अपनी प्रगति के रूप में स्वीकार करे।”
इतिहास शिक्षण के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास निम्न प्रकार से किया जा सकता है।
1. राष्ट्रवाद की भावना पैदा करना- इतिहास शिक्षण द्वारा छात्रों में राष्ट्रीयता की भावना का सहज ही विकास किया जा सकता है। राष्ट्रवाद की प्रबल भावना को जाग्रत करने के लिए छात्रों को भारतीय महापुरुषों यथा छत्रपति शिवाजी, राणाप्रताप, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, अवध की बेगम हजरत महल आदि का प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान तथा तत्पश्चात् महात्मा गाँधी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चन्द्र बोस, पंजाब केसरी लाला लाजपत राय, सरदार भगतसिंह, राजगोपालाचार्य आदि के जीवन चरित्र तथा अनेक क्रियाकलापों का विवरण समझना होगा, जिन्होंने सम्पूर्ण भारत को एक इकाई के रूप में समझ कर देश को आजाद करने का प्रयास किया।
2. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का विकास- भारतीय महापुरुषों ने सम्पूर्ण देश को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बाँधने हेतु अनेकों कार्य किये। शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धामों की यात्रा कर प्रत्येक भारतीय अपना जीवन सफल समझता है। गंगा स्नान का महत्व, बद्रीनाथ, केदारनाथ, रामसेतु, रामेश्वरम्, जगन्नाथ पुरी के दर्शन कर भारतीय भाव विभोर हो उठता है। वेदों में भारत में बहने वाली सम्पूर्ण नदियों एवं पर्वतों की वंदना की गई है। इस प्रकार इतिहास शिक्षण के माध्यम से छात्रों में सांस्कृतिक एकता के भाव विकसित किये जा सकते हैं।
3. राजनीतिक एकता की भावना का विकास- वैदिक युग में प्रत्येक भारतीय राजा चक्रवर्ती सम्राट बनने का सपना देखता था, क्योंकि उसकी दृष्टि में सम्पूर्ण भारत एक देश था। सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य, समुद्रगुप्त, अकबर आदि शासकों ने सम्पूर्ण भारत को एक शासन के नीचे लाने का प्रयास था। रामकृष्ण, महावीर, गौतम बुद्ध, उत्तर भारत के महापुरुष नहीं थे, वरन् वे सम्पूर्ण भारत वर्ष का प्रतिनिधित्व करते थे। इस प्रकार इतिहास शिक्षण के द्वारा छात्रों में राजनीतिक एकता की भावना का विकास किया जा सकता है।
4. भौगोलिक एकता की भावना का विकास- वह भू-भाग जिसकी उत्तर दिशा में गगनचुम्बी हिमालय पर्वत, दक्षिण दिशा में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर है, उसे भारत अथवा इण्डिया कहा जाता है। प्राचीन काल से वर्तमानकाल तक इसे विभिन्न नामों आर्यावत, भारत, हिन्दुस्तान, इंडिया आदि से पुकारा जाता रहा, किन्तु ऊपर वर्णित क्षेत्र के निवासी एकानुभूति का अनुभव करते रहे तथा जब भी किसी जाति ने इस भू-भाग पर आक्रमण किया तो सबने एकता का परिचय देकर दुश्मन से लोहा लिया। वर्तमान में चीन तथा पाकिस्तान के आक्रमण के समय एकत्व की भावना दृष्टिगोचर हुई। इतिहास शिक्षण में छात्रों में भौगोलिक एकता की भावना का विकास किया जाना सरल है।
देश में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास करने पर बल देते हुए माध्यमिक शिक्षा आयोग ने भी इतिहास को सामाजिक अध्ययन विषय के मुख्य अंग होने के कारण उसके द्वारा अपेक्षा की है, “इतिहास द्वारा छात्रों में न केवल राष्ट्रीय देश भक्ति की भावना तथा राष्ट्रीय धरोहर की श्लाका के भाव को विकसित किया जाना चाहिए, बल्कि उनमें विश्व एकता तथा विश्व नागरिकता की भावना जाग्रत की जानी चाहिए। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् के अनुसार छात्रों में राष्ट्रीय एकीकरण के मूल्यों तथा के अस्पृश्यता, जातिवाद तथा सम्प्रदायवाद की संकीर्ण भावना को त्यागने की भावना पर बल दिया जाना अपेक्षित है।
कोठारी शिक्षा आयोग ने अपने प्रतिवेदन में लिखा है कि “भारत विविधताओं, विभिन्न जातियों, लोगों. समदायों भाषाओं. प्रदेशों तथा संस्कृतियों का देश है। “भारत में तो विविधता में एकता आवश्यक रूप से है, उसका विद्यार्थियों को स्वयं अनुभव कराने तथा संकीर्ण निष्ठाओं से ऊपर उठकर अन्तर्राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ाने में स्कूल और विश्वविद्यालय क्या योगदान कर सकते हैं?
कोठारी शिक्षा आयोग ने राष्ट्रीय चेतना को अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए विशेष रूप से दो कार्यक्रमों को अपनाने का सुझाव दिया है। 1. हमारी सांस्कृतिक विरासत का फिर से मूल्यांकन करना तथा उसे समझना और 2. जिस भविष्य की कामना हम करते हैं, उसके प्रति दृढ़ प्रेरणा पुर्ण निष्ठा का उत्पन्न किया जाना। पहले की पूर्ति भाषाओं तथा साहित्य, दर्शन, धर्मो तथा भारतीय इतिहास के सुनियोजित अध्ययन तथा भारतीय वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत नृत्य और नाट्य से परिचित कराकर ही की जा सकती है।
अतः उपर्युक्त उदाहरणों से स्वतः ही सिद्ध होता है कि इतिहास शिक्षण ही एक मात्र ऐसा विषय हैं, जिसके अध्यापन से भारतीय एकता के मार्ग को अवरूद्ध करने वाले कारकों को दूर किया जा सकता है।