इतिहास में उपलब्धि परीक्षण का एवं उसकी तैयारी पर प्रकाश डालिए।
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उपलब्धि परीक्षण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning of Definition of Achievement Test)
उपलब्धि परीक्षण का अर्थ है- “किसी निश्चित कार्य क्षेत्र में अर्जित किये गये ज्ञान का मापन करना।” इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि अपनी बुद्धि के अनुसार विद्यार्थी उस विषय का कहाँ तक अध्ययन कर सकता है। दूसरे शब्दों में उपलब्धि परीक्षण में बुद्धि तथा व्यक्ति के उसके उपयोग करने की शक्ति की परीक्षा ली जाती है। सभी विद्यार्थियों के ज्ञान तथा ज्ञानार्जन की सीमा एक-सी नहीं होती। भिन्न-भिन्न विषयों को पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए भिन्न-भिन्न प्रश्नावलियाँ होती हैं। उदाहरण के लिए विद्वान की प्रश्नावलियाँ साहित्यिक प्रश्नावलियों से भिन्न होती हैं। प्रश्नों का निर्धारण विद्यार्थियों की आयु को ध्यान में रखकर किया जाता है। इन प्रश्नों से इस बात का पता लगाया जाता है कि विद्यार्थी ने किस विषय के अध्ययन में कितनी उन्नति की है।
उपलब्धि परीक्षण के द्वारा विद्यार्थी की बुद्धि का सही अनुमान नहीं लग पाता। ऐसे परीक्षण से उनके ज्ञान अथवा उपलब्धि की सतह की कुछ जानकारी प्राप्त होती है, इस परीक्षण का उद्देश्य यह ज्ञात करना होता है कि विद्यार्थी का मस्तिष्क किस सीमा तक तेजी और योग्यता से कार्य कर रहा है। बुद्धि परीक्षणों द्वारा व्यक्ति की केवल जन्मजात बुद्धि की परीक्षा ली जाती है। इससे इस बात का अनुमान लगाते हैं कि कोई व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में अपने को सँभालने में कहाँ तक योग्य है। बुद्धि परीक्षण की निष्पत्ति या उपलब्धि एक साधन है, जबकि उपलब्धि परीक्षण में वह साध्य है। निष्पत्ति बुद्धि से बिल्कुल अलग होती है। यद्यपि बुद्धि के बल पर ही उपलब्धि प्राप्त की जाती है। उपलब्धि परीक्षणों के अर्थ स्पष्ट करते हुए थार्नडाइक ने लिखा है- “जब हम उपलब्धि परीक्षाओं का प्रयोग करते हैं तब हम इस बात को निश्चित करने में रुचि रखते हैं कि विशेष प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति ने क्या सीखा है।”
उपलब्धि परीक्षण की परिभाषा गैरीसन महोदय ने इस प्रकार प्रस्तुत की है- “उपलब्धि परीक्षा, बालक की वर्तमान योग्यता अथवा किसी विशिष्ट विषय के क्षेत्र में उसके ज्ञान की सीमा का मापन करती है।”
डॉ० माथुर के अनुसार “उपलब्धि परीक्षण द्वारा एक निश्चित कार्य क्षेत्र में जो ज्ञान अर्जित किया जाता है, उसकी माप करते हैं।”
उपलब्धि परीक्षणों के उद्देश्य (Aims of Achievement Tests)
मनोवैज्ञानिकों द्वारा उपलब्धि परीक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये गये हैं-
- उपलब्धि परीक्षण के द्वारा विद्यार्थियों को योग्यताओं, क्षमताओं और सीमाओं की जानकारी प्राप्त होती है।
- किसी कक्षा के विभिन्न विद्यार्थियों ने वर्ष भर में विभिन्न विषयों में कितनी योग्यता प्राप्त की है, इसकी जानकारी उपलब्धि परीक्षा द्वारा ही प्राप्त होती है।
- जब विद्यार्थियों को इस बात की जानकारी होती है कि उनकी परीक्षा ली जायेगी, तो उन्हें कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।
- शिक्षकों का अध्ययन किस सीमा तक सफल हो रहा है, इसकी जानकारी ज्ञानार्जन परीक्षण द्वारा की जा सकती है।
- किसी कक्षा के विद्यार्थियों में कौन-से विद्यार्थी उच्चतर, सामान्य और निम्न है, इसका पता लगाने में यह परीक्षण काम आता है।
- किस कक्षा के कौन-से विद्यार्थी उच्च कक्षा में प्रवेश करने के योग्य हैं, इसका पता लगाने में उपलब्धि परीक्षण सहायक होते हैं।
- छात्र-छात्राओं के बौद्धिक विकास का अनुमान ज्ञानार्जन परीक्षणों द्वारा ठीक प्रकार से लगाया जा सकता है।
- उपलब्धि परीक्षण के द्वारा इस तथ्य की जानकारी है प्राप्त की जा सकती है कि शिक्षा के उद्देश्य की पूर्ति किस सीमा तक हो रही है।
- शिक्षण प्रणाली की उपयोगिता और उसकी त्रुटियों की जानकारी उपलब्धि अथवा निष्पत्ति परीक्षण के आधार पर ही की जा सकती है।
- उपलब्धि परीक्षणों के द्वारा हमें जो आँकड़े प्राप्त होते हैं उन्हें ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम में आवश्यक परिवर्तन किया जा सकता है।
- शैक्षिक और व्यावसायिक तथा व्यक्तिगत निर्देशन के लिए निष्पत्ति परीक्षण का बहुत अधिक महत्त्व है।
उपलब्धि परीक्षणों के प्रकार (Kinds of Achievement Tests)
उपलब्धि परीक्षणों का वर्गीकरण दो दृष्टिकोणों से किया जाता है-
- (अ) परीक्षण के उद्देश्य की दृष्टि से और
- (ब) परीक्षा की विधि की दृष्टि से।
(अ) परीक्षण के उद्देश्य की दृष्टि से-
परीक्षण के उद्देश्य की दृष्टि से उपलब्धिं अथवा निष्पत्ति परीक्षणों को दो रूपों में विभाजित किया जा सकता है-
(i) सामान्य उपलब्धि परीक्षण (General Achievement Tests)- इस परीक्षण के द्वारा किसी व्यक्ति अथवा बालक के अर्जित ज्ञान का परीक्षण किया जाता है।
(ii) निदानात्मक उपलब्धि परीक्षण (Diagnostic Achievement Tests)– निदानात्मक परीक्षण के अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि शिक्षक ने जो ज्ञान अथवा शिक्षा बालक को प्रदान के है उसमें उसे कहाँ तक सफलता प्राप्त हुई है।
उपर्युक्त दोनों प्रकार की परीक्षाओं के मध्य कोई स्पष्ट विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती है, क्योंकि सामान्य उपलब्धि परीक्षण के अनेक रूप ऐसे हैं जो शिक्षक द्वारा कक्षा में दिये जाते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से निदानात्मक भी हो सकते हैं। चूँकि परीक्षाओं द्वारा ज्ञानार्जन में कमी प्रकट हो जाती है जो इस ओर संकेत करती है कि शिक्षक की सफलता इस विषय में कम है।
(ब) परीक्षा की विधि की दृष्टि से-
परीक्षा की विधि की दृष्टि से उपलब्धि परीक्षाओं के चार रूप होते हैं- जिनका उल्लेख यहाँ संक्षेप में किया जा रहा है-
(i) मौखिक परीक्षण (Oral Tests)- इस परीक्षण द्वारा बालक से लिखित प्रश्न के स्थान पर मौखिक प्रश्न पूछे जाते हैं। इस प्रकार की परीक्षा का प्रमुख दोष यह है कि इसमें बालक के विस्तृत ज्ञान की जाँच नहीं हो पाती। मौखिक परीक्षण में पक्षपात भी हो सकता है।
(ii) क्रियात्मक परीक्षण (Performance Tests)- इस तरह की परीक्षा में लिखित प्रश्न न पूछकर चित्रों और लकड़ी के टुकड़ों आदि का प्रयोग होता है। इस तरह की परीक्षा का प्रयोग प्रायः व्यावसायिक कुशलता की जाँच के हेतु किया जाता है। इसमें शाब्दिक योग्यता पर ध्यान नहीं दिया जाता।
(iii) निबन्धात्मक परीक्षण (Essay Type Tests)- इस तरह की परीक्षाओं में छात्रों को निबन्ध के रूप में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देना होता है। निबन्धात्मक परीक्षण का विस्तृत वर्णन आगे किया गया है।
(iv) वस्तुनिष्ठ परीक्षण (Objective Tests) – आधुनिक युग में वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का विशेष महत्त्व है।
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