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ऐतिहासिक चिन्तन में क्रोचे का योगदान लिखिए।
अथवा
इतिहास लेखन की परम्परा में क्रोचे का योगदान इतिहास क्षेत्र की व्यापकता को लेकर इस कथन का परीक्षण कीजिए।
अथवा
सच्चा इतिहास समसामयिक इतिहास होता हैं क्रोचे के इस कथन की व्याख्या कीजिए।
ऐतिहासिक चिन्तन में क्रोचे का योगदान
बेनदेत्तो क्रोचे का जन्म इटली में 1886 में हुआ। वह रोम विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था। उसकी प्रारम्भिक रूचि मुख्यतः इतिहास और प्राचीन शास्त्र में थी। 1910 में वह सीनेटर बना तथा 1920-21 में वह इटली की सरकार में शिक्षा मन्त्री था। इटली में फाँसीवाद का उदय होने पर उसकी सार्वजनिक जीवन में सहभागिता समाप्त हो गई, क्योंकि वह फाँसीवाद का विरोधी था। 1952 में उसकी मृत्यु हो गई।
क्रोचे के इतिहास दर्शन को कतिपय विद्वान आदर्शवादी इतिहास दर्शन की संज्ञा प्रदान करते हैं, क्योंकि उसके विचार हीगल तथा अंग्रेज आदर्शवादियों के सिद्धान्तों से पर्याप्त मिलते हैं। वह आदर्शवादियों की भाँति ऐतिहासिक घटना को विकासशील प्रक्रिया का एक अंग मानता हैं और उसके अनुसार कोई भी घटना को तभी समझी जा सकती हैं जबकि सम्पूर्ण प्रक्रिया को समझ लिया जाए। उसने ऐतिहासिक ज्ञान और वैज्ञानिक ज्ञान के मध्य अन्तर स्पष्ट किया। क्रोचे का ऐतिहासिक चिन्तन में मुख्य योगदान निम्नलिखित बिन्दुओं में देखा जा सकता हैं।
(1) वैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक ज्ञान का अन्तर- मनुष्य की मानसिक कियाओं के मध्य स्थिति सामान्य विभाजन के प्रकाश में क्रोचे ने वैज्ञानिक तथा ऐतिहासिक ज्ञान के मध्य मौलिक अन्तर किया हैं। क्रोचे ने वैज्ञानिक तर्क वाक्यों को व्यावहारिक तरीके से प्रस्तुत किया हैं। वे सही या गलत नहीं हैं वरन् उपयोगी हैं। इसी प्रकार वैज्ञानिक अवधारणाएँ अर्द्ध-अवधारणाएँ हैं। इनका कार्य हमें विश्व के बारे में परिकल्पनाएँ और सिद्धान्त बनाने की योग्यता प्रदान करना हैं। जिनकी सहायता से प्राकृतिक आभास की घटनाओं को नियन्त्रित किया जा सके और भविष्यवाणी की जा सके।
(2) इतिहास की स्वायत्तता- क्रोचे ने विज्ञान और दर्शन के विरोध में इतिहास की स्वायत्तता पर बल दिया हैं। तदानुसार इतिहास को अपने विशेष ढंग से अपने दायित्व का निर्वाह करने का अधिकार हैं। इतिहासवाद या इतिहास के शास्त्र में यह तथ्य स्वीकार किया जाता हैं कि जीवन और यथार्थ अभिन्न हैं। यथार्थ को विचारों तथा मूल्यों के जगत और इनको प्रकट करने वाले निम्न जगत् के रूप में विभक्त नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ यह हुआ कि घटनाएँ और विचार समान रूप से इतिहास प्रवाह के अंग हैं। क्रोचे ने इतिहास के अध्ययन का अन्य रूपों से अन्तर स्थापित किया हैं। इतिहास में तथ्य यह हैं कि इतिहासकार जब केवल इतिवृताकार न होकर इतिहास के रूप में आगे बढ़ता हैं तो फिर से कल्पनात्मक व्यक्तियों और घटनाओं में रहने लगता हैं।
वह अपनी विषय-सामग्री को मूलरूप से मानवीय विचार एवं भावना की अभिव्यक्ति मानता हैं। इन विचारों और भावनाओं पर वह स्वयं के लिए पुनर्विचार करता हैं। क्रोचे का विश्वास था कि वह इस प्रकार इतिहास की मूलभूत अन्तरंगता पर जोर देकर ऐसी परिस्थितियों की नींव स्थापित करता हैं जिन पर ऐतिहासिक वर्णन एवं व्याख्या सम्भव हो सके।
इतिहास ओर इतिवृत- क्रोचे अपनी प्रसिद्ध रचना इतिहास: इसका सिद्धान्त तथा व्यवहार में इतिहास एवं इतिवृत के विषय में प्रथम अध्याय तथा नवें अध्याय के निष्कर्ष में चर्चा की हैं।
(1) सच्चा इतिहास समसामयिक इतिहास हैं- क्रोचे की मान्यता हैं कि इतिहास वर्तमानकालीन जीवन से सम्बद्ध होने के कारण हमेशा समसामयिक होता हैं। समसामयिकता की यह विशेषता ही उसे इतिवृत से पृथक करती हैं। समसामयिक इतिहास को सुदूर अतित के रूप में देखे जाने वाले कालान्तराल का इतिहास कहा जा सकता हैं। यह कालान्तराल पचास वर्षो, एक दशक, एक वर्ष, एक मास, एक दिन अथवा पिछले घण्टे या एक क्षण का भी हो सकता हैं। लेकिन सही रूप में उसी इतिहास को समसामयिक शब्द से विशेषित किया जाता हैं जो विवेचनीय कार्य के तुरन्त पश्चात् अस्तित्व में आए और जिससे उस कार्य की चेतना विद्यमान हो।
उदाहरण के लिए एक इतिहासकार लेखन कार्य करते समय अपने स्वयं का इतिहास बनाता हैं। यह उसके लेखन का विचार हैं जो लिखने के कार्य की आवश्यकता से जुड़ा हुआ हैं। आत्मा के प्रत्येक कार्य की भाँति यह समय से परे हैं। इसलिए इसे समसामयिक कहा जा सकता हैं।
(2) इतिहास तथा जीवन्त प्रमाण- क्या प्रमाण और विवरण के बीच तथा जीवन और इतिहास के बीच की कड़ी कभी टूटी हैं? इस प्रश्न का जवाब उन इतिहासकारों के बारे में सकारात्मक रूप में होगा जिसके प्रमाण खो चुके हैं अथवा और अधिक सामान्य तथा मौलिक रूप में कहा जाए कि जिसके प्रमाण मानवीय आत्मा में जिन्दा नहीं हैं। यह स्थिति इतिहास के किसी न किसी भाग के सन्दर्भ में हमारे सामने अवश्य उपस्थित होती हैं। उदाहरण के लिए, यूनानी चित्रकला का इतिहास हमारे लिए बहुत कुछ बिना प्रमाण का इतिहास हैं। इसी प्रकार लोगों के वे सभी इतिहास जिनके सम्बन्ध में हम यह नहीं जानते कि वे कहाँ रहते थे, हमें नहीं पता कि उनके विचार और भावनाएँ क्या थे तथा उन्होंने कौन-कौन से काम किए। वे साहित्य और दर्शन जिनका कोई ग्रन्थ हमारे पास नहीं हैं अथवा जिनके उपलब्ध ग्रन्थों को हम पढ़ने में असमर्थ हैं या समय के अन्तराल के कारण उनकी आन्तरिक भावना को स्वीकार नहीं कर पाते, वे सब प्रमाणहीन होने के कारण इतिहास के कलेवर से अलग हट गए। ऐसे मामलों में जब सम्र्पक सूत्र टूट जाता हैं तो हम यह नहीं जान पाते कि इतिहास क्या हैं। केवल विवरण को प्रमाणों के बिना इतिहास नहीं कह सकते। अपने जीवन्त प्रमाणों से पृथक सभी इतिहास केवल विवरण मात्र हैं। वे अपुष्ट होने के सत्य विहीन हैं।
(3) इतिहास इतिवृत से पूर्वगामी हैं- इतिहास और इतिवृत में अन्तर हैं। इतिवृत में व्यक्तिगत तथ्यों का प्रमाण रहता है जबकि इतिहास में सामान्य तथ्य होते हैं। इतिवृत में निजी प्रमाण होते हैं, इतिहास में सार्वजनिक तथ्य होते हैं। इतिहास में महत्वपूर्ण तथ्यों को लिया जाता हैं जब कि इतिवृत में गैर-महत्वपूर्ण तथ्य होते हैं। इतिहास तथा इतिवृत में अन्य अन्तर यह हैं कि प्रथम रूचिशील होता है। जबकि दूसरा रूचिहीन होता हैं। इतिहास में विभिन्न घटनाओं के बीच निकट का बन्धन होता हैं। जबकि इतिवृत में असम्बद्धता रहती हैं। इतिहास में तार्किक व्यवस्था हैं। जबकि इतिवृत में विशुद्ध रूप से समय क्रम रहता हैं। इतिहास घटनाओं की गहराई में प्रविष्ट हो जाता हैं जबकि इतिवृत का सम्बन्ध ऊपरी और बाहरी होता हैं। यह भिन्नताएँ अधिक सुविचारित ओर तथ्यपूर्ण नहीं हैं। क्रोचे के शब्दों में सत्य यह हैं कि इतिवृत और इतिहास को दो रूपों की भाँति भिन्न नहीं किया जा सकता । ये पारस्परिक अनुपूरक हैं। अथवा एक दूसरे का पूरक होते हुए भी दो अलग आध्यात्मिक दृष्टिकोण हैं। इतिहास जीवन्त इतिवृत हैं और इतिवृत मृत इतिहास हैं। इतिहास समसामयिक इतिहास हैं जबकि इतिवृत अतीत का इतिहास हैं।
(4) आत्मा स्वयं इतिहास हैं- मानवीय इतिहास मानवीय आत्मा इतिहास के मरणशील अवशेषों को सुरक्षित रखती हैं। यही आत्मा अतीत कालीन जीवन के चिन्हों को, अवशेषों को तथा प्रमाणों को एकत्रित करती हैं। उनकी यथासम्भव अपरिवर्तित रूप में सुरक्षित रखने का प्रयास करती हैं और जब वे विकृत होने लगते हैं तो उनकी रक्षा करती हैं। जो कुछ खाली तथा मृत हैं उसकी सुरक्षा के लिए किए गए संकल्प के प्रयास का क्या उद्देश्य हो सकता हैं। सम्भवतः मतिभ्रम या मूर्खता के कारण ही मरणशीलता के अवशेषों को कब्र या समाधि बनाकर सुरक्षित रखने की चेष्टा की जाती हैं। क्रोचे का कहना हैं कि समाधियाँ मूर्खता या भ्रम नहीं हैं। वरन् इसके विपरीत वे नैतिकता पूर्ण कार्य हैं जिसके द्वारा व्यक्तियों ने जो कार्य किए हैं उनकी अमरता को स्वीकार किया जाता हैं। यद्यपि व्यक्ति मर जाते हैं लेकिन वे हमारी स्मृति में जिन्दा रहते हैं तथा आने वाले समय में भी वे जीवित रहेंगें। मृत प्रमाणों को एकत्रित करना तथा रोते इतिहासों को लिखना जीवन कार्य हैं जो जीवन की सेवा करता हैं। एक क्षण ऐसा आएगा जबकि वे अतीत के इतिहास को पुनः उजागर करने में सहायता करेगें उसे सम्पन्न करेगें तथा हमारी आत्मा के लिए उसे वर्तमान बना देंगें।
(5) प्राकृतिक इतिहास एवं मानवीय इतिहास- प्राकृतिक इतिहास तथा मानवीय इतिहास एक स्तर पर समान हैं। एक तरफ तो भू-गर्भ शास्त्रीय स्तरीकरण तथा वनस्पतियों एवं पशुओं के अवशेष हैं जिनके बारे में शृंखलाबद्ध प्रबन्ध करना तो सम्भव हैं लेकिन उनकी संतति के साथ जीवित द्वन्द्व के रूप में नहीं सोचा जा सकता। दूसरी और मानवीय इतिहास के अवशेष हैं जिनको न केवल प्रागैतिहासिक कहा जा सकता हैं वरन् हमारे कल के इतिहास के भी ऐसे ऐतिहासिक अभिलेख हैं। जिनको हम भूल चुके हैं तथा उनको समझ नहीं पाते इनको निश्चय ही एक श्रृंखला में वर्गीकृत एवं प्रतिबन्धित किया जा सकता हैं लेकिन इसके बारे में पुनः सोचा नहीं जा सकता। ये दोनों बाते यद्यपि भिन्न-भिन्न दिखाई देती हैं लेकिन इनकी प्रकृति एक जैसी प्रतीत होती हैं। जिसे हम मानवीय इतिहास कहते हैं और जिसे हम प्राकृतिक इतिहास कहते हैं। उसमें मानवीय इतिहास निहित हैं। अथवा यह पहले मानवीय था। भारतीय पौराणिक ग्रन्थों का यह विवरण कि एक जमाने में पेड़-पौधे, नदी पहाड़ आदि भी बोलते चलते थे तथा मनुष्यों के साथ उनका सम्भाषण होता था, मात्र कोरी कल्पना नहीं हैं।
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