औद्योगिक क्रांति के सामाजिक प्रभाव व परिणामों की विवेचना कीजिए।
आर्थिक प्रभावों की भांति ही औद्योगिक क्रांति के सामाजिक प्रभाव भी काफी महत्वपूर्ण थे। जहाँ एक और औद्योगिक क्रांति से भौतिक समृद्धि के नये मार्ग प्रशस्त हुए, वही दूसरी ओर सामाजिक उत्पीड़न वर्ग संघर्ष और शोषण की शुरूआत हुई। औद्योगिक क्रांति के सामाजिक प्रभाव इस प्रकार हैं-
(i) मध्यम वर्ग का उदयः- औद्योगिक क्रांति से पूर्व समाज में मुख्यत गरीब और अमीर दो प्रमुख वर्ग बने हुए थे। औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप मध्यम वर्ग का तेजी से विकास हुआ। औद्योगिक विकास के लिए कारखानों की स्थापना आवश्यक थी और इसके लिए पूंजी तथा व्यावसायिक बुद्धि दोनों की जरूरत थी। मध्ययुगीन समाज के सामन्तों के पास पूंजी तो थ्री व्यावसायिक बुद्धि नहीं थी। इसके अतिरिक्त सामन्त लोग व्यवसाय को निम्न समझते थे।
मध्यय वर्ग के पास आवश्यक पूंजी और व्यावसायिक बुद्धि दोनों ही थी अतः उसने इसमें पर्याप्त रूचि ली थी। फलतः औद्योगिक विकास के साथ-साथ उसका भी विकास होता गया। वे श्रमिक जो आर्थिक दृष्टि से थोड़े बहुत सम्पन्न थे उन्होंने भी अपने स्वतन्त्र व्यवसायों की शुरूआत कर दी थी। ऐसे लोग जो न मजदूरी कर सकते थे और न बड़े-बड़े उद्योग ही स्थापित कर सकते थे, उन्होंने व्यावसायिक कार्यों दलाली, ठेकेदारी तथा अन्य व्यावसायिक संस्थाओं से नये वर्ग का निर्माण किया।
(ii) श्रमिकों की दयनीय स्थितिः- औद्योगिक क्रान्ति ने उद्योगों के मालिकों को और भी अधिक अमीर बना दिया परन्तु उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति को पहले से भी अधिक दयनीय बना दिया। उन्हें काम तो मिल गया परन्तु उचित मजदूरी प्राप्त नहीं हुई। उन्हें कम से कम मजदूरी दी जाती थी तथा अधिक से अधिक काम करवाया जाता था। मजदूरों से आमतौर पर 15 घण्टो से अधिक काम लिया जाता था। महिलाओं को भी काफी घण्टे तक काम करना पड़ता था जो उनके लिए बड़ा कष्टदायक था।
औद्योगिक विकास के प्रथम चरण में कारखानो की सफाई का आमतौर पर कोई ख्याल नहीं रखा जाता था। मशीनों में सुरक्षा के भी व्यापक बन्दोबस्त नहीं हुआ करते थे। प्रायः दुर्घटनाएँ होती थी लेकिन श्रमिको की सुरक्षा के लिए कोई कदम उठाये नहीं जाते थे। घायल अथवा बीमार मजदूरों की देखरेख की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। जब किसी कारणवश कारखाने बन्द हो जाते थे उन लोगों को रोजगार से निकाल दिया जाता था और उन्हें अस्थायी तौर पर बेरोजगार रहना पड़ता था।
मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या निवास स्थान की थी। इन लोगों को नगर के गन्दे मकानों में जानवरों की भांति जीवन व्यतीत करना पड़ता था। उनके पास किसी प्रकार के राजनीतिक अधिकार भी नहीं थे। उनमें आपसी एकता का भी अभाव था। उनमें से अधिकांश गाँव के भोले भाले किसान थे जो पहली बार आजीविका की तलाश में शहरी जीवन बिता रहे थे। इन सब दोषों को दूर करने के लिए मजदूरों को एक दीर्घकालीन और तीव्र संघर्ष करना पड़ा था। प्रो. शार्प के अनुसार “अब श्रमिक सम्पत्तिहीन मुद्राहीन और गृहहीन प्रतिहारी मात्र रह गये थे।”
(iii) संयुक्त पारिवारिक प्रथा का छिन्न भिन्न होना:- औद्योगिक क्रान्ति में प्राचीन युग से चली आ रही संयुक्त परिवार प्रथा को छिन्न भिन्न कर दिया। कारखाना पद्धति में श्रमिकों को निश्चित समय तक काम करना पड़ता था इसीलिए उन्हें अपने परिवार के सदस्यों से अलग रहना पड़ता था। काम पाने की इच्छा से व यातायात के साधनों के विकास से श्रमिक गतिशीलता बढ़ी और संयुक्त परिवार प्रणाली का पतन आरम्भ हुआ अब उसके स्थान पर स्वतन्त्र छोटे-छोटे परिवारों का विकास हुआ। इन स्वतन्त्र परिवारों का प्रेम युगल दम्पति तक ही सीमित होता था जिससे पारिवारिक प्रेम का स्त्रोत सूखने लगा। अब उनका ध्यान केवल अपने बच्चों तक सीमित रह गया। अब नारी भी कमाने लगी थी अतः उसकी आर्थिक स्वतन्त्रता का युग आया जिससे परिवार में उसकी भूमिका नये रूप में रेखांकित होने लगी थी।
(iv) अनैतिकता का विकास:- औद्योगिक क्रान्ति का एक प्रमुख दोष यह रहा की उसने समाज को अनैतिकता की तरफ धकेल दिया। मानव समाज का नैतिक पतन शुरू हो गया। भौतिक समृद्धि से शराब और जुआ का प्रचार इतना अधिक बढ़ गया कि समाज पतन के गर्त में जा फंसा व्याभिचार, अनाचार, स्वार्थ परायणता आदि प्रवृतियों के विकास ने इसमें और अधिक सहयोग दिया। दुर्भाग्यवश इन बुराईयों का सबसे घातक प्रभाव निम्न श्रेणी के लोगों पर अधिक पड़ा था।
(v) जनस्वास्थ्य की समस्या:- औद्योगिक विकास के साथ-साथ शहरों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य की समस्या भी अपने खतरनाक रूप में प्रकट हुई। अधिक समय तक बिना विश्राम किये तथा व्यवस्था न होने के कारण गंदगी तथा रोगों का प्रकोप बढ़ता गया। कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ ने नगरों का वायुमण्डल दूषित कर दिया। पेट्रोल तथा डीजल से चलने वाली गाड़ियों ने वातावरण को और अधिक दूषित बनाने में सहयोग दिया। इन सभी के परिणामस्वरूप जनस्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ा।
(vi) गंदी बस्तियों की समस्या:- औद्योगिक क्रान्ति ने गन्दी बस्तियों के विकास में महत्वपूर्ण योग दिया श्रमिकों तथा निम्न आय के परिवारों ने कारखानो के समीप ही अपने आवास तथा व बस्ती बसा ली थी क्वार्टरों और झोपड़ों में बस गये। इस स्थिति ने गंदी बस्तियों को जन्म दिया। जहाँ कही भी कारखाने स्थापित हुए इनकी संख्या बढ़ती ही चली गयी। आज के नगरों में यह एक रोग की भाँति फैल चुका था। गन्दी बस्तियो में रहने वाले बच्चों पर वहाँ के वातावरण का घातक प्रभाव पड़ता था और अपराधी बन जाते थे। धीरे-धीरे राजनीतिज्ञों तथा समाज सुधारकों का ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ और वे अनुभव करने लगे कि ये गन्दी बस्तियाँ समाज के लिए अपराधी तैयार कर रहे हैं उनके समाधान के लिए प्रयास किये जाने लगे थे। बीसवीं सदी में बस्तियों को उजाड़कर उनके स्थान पर आधुनिक साफ सुथरी हवादार इमारते बनाई गई।
(vii) सामाजिक मान्यता तथा परम्पराओं में बदलाव:- औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप जो परिवर्तन हुए उससे समाज का कायाकल्प हो गया। पुराने रीति रिवाज रहन-सहन का तरीका वेशभूषा धार्मिक विश्वास कला और साहित्य तथा विज्ञान सब कुछ बदल गये। नये ढंग से नये समाज का उदय हुआ जिसका स्वरूप आज हमारे सामने हैं। औद्योगिक क्रान्ति ने मानव समाज की सुख सुविधा की वृद्धि में अदभुत भूमिका निभाई हैं। तड़क भड़क चमक दमक और भोग विलास की वस्तुओं की माँग दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी थी। अच्छा कपड़ा सुगन्धित तेल पाउडर फर्नीचर बर्तन यातायात के उन्नत साधन मनोरंजन के बढ़िया साधन इत्यादि का निर्माण तथा उनकी माँग निरन्तर बढ़ती ही जा रही हैं। धन सम्पन्न लोग शान शौकत से रहने में विश्वास करने लगे थे।
(viii) मनोरंजन के साधनों का विकासः- 19वीं सदी के अन्त में मनोरंजन अधिक लोगों के लिए सुलभ हो गया। सस्ते टिकट पर दिखाये जाने वाले नाटक और कनसर्ट यूरोप के अधिकांश शहरों और अमेरिका में रंगमंच पर खेले जाते थे। बाद में सिनेमा रेडियो और टेलीविजन ने नये किस्म का मनोरंजन प्रदान किया और दुनिया के सभी देशों में सर्वसाधारण को ये ज्यादा सुलभ हो गये। अब मनोरंजन भी अधिक से अधिक बाहर होने लगा था।
(ix) शिक्षा के प्रति चेतना का उदयः- औद्योगिक क्रान्ति का प्रभाव लोगों में शिक्षा के प्रति चेतना का उदय हैं। अब अधिकांश लोग न केवल अपने बच्चों को शिक्षित बनाने की लालसा रखने लगे अपितु वे स्वयं भी थोड़ा बहुत पढ़ लिखकर अपने समय की राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने के उत्सुक थे बहुत से यूरोपीय देशों में जापान और अमेरिका में प्राथमिक स्कूलो के माध्यम से निशुल्क सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था की गई तथा बड़े लोगो के लिए रात्रि में स्कूले खोली गयी। कुछ देशों में तो अनिवार्य स्कूली शिक्षा के कानून बनाये गये जिससे शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो सके।
(x) औद्योगिक क्रान्ति से नगरों को प्रोत्साहन:- औद्योगिक क्रान्ति से औद्योगिक केन्द्रों और नगरों के विकास में प्रोत्साहन मिला। ग्रामीण लोग रोजगार पाने की दृष्टि से शहरों की ओर आकर्षित हुए। इससे ग्रामीण जनसंख्या धीरे-धीरे कम होने लगी और गाँव उजड़ने लगे। उदाहरण के लिए जहाँ इंग्लैण्ड में 1700 ई. में 77 प्रतिशत लोग गाँवो में बसते थे वहाँ 1900 ई. में केवल 20 प्रतिशत लोग गाँवो में रह गये और 80 प्रतिशत लोग शहरों में रहने लगे। इस तरह बड़ी तीव्र गति से जनसंख्या का शहरीकरण हुआ।
IMPORTANT LINK
- डाल्टन पद्धति का क्या तात्पर्य है ? डाल्टन-पद्धति का उद्देश्य, कार्य प्रणाली एंव गुण-दोष
- बेसिक शिक्षा पद्धति | Basic Education System In Hindi
- मेरिया मॉन्टेसरी द्वारा मॉण्टेसरी पद्धति का निर्माण | History of the Montessori Education in Hindi
- खेल द्वारा शिक्षा पद्धति का क्या तात्पर्य है ?
- प्रोजेक्ट पद्धति क्या है ? What is project method? in Hindi
- किण्डरगार्टन पद्धति का क्या अर्थ है ? What is meant by Kindergarten Method?