इतिहास शिक्षण में क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख सोपानों की विवेचना कीजिए।
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क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान एवं प्रविधियाँ (Steps of Action Research)
क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख सोपान एवं प्रविधियाँ निम्नलिखित हैं-
- समस्या की पहचान एवं परिभाषीकरण (To Identify and Define the Problem),
- समस्या के सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण (Analysis of Causes of the Problem),
- क्रियात्मक परिकल्पना का निर्माण (Formulation of the Action Hypothesis),
- क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण हेतु अनुसंधान की रूपरेखा तैयार करना (Preparation of Research Design to Test the Action Hypothesis)
- निष्कर्ष निकालना (Deriving Conclusion )
(1) समस्या की पहचान एवं परिभाषीकरण – प्रत्येक सोपान का सबसे पहला सोपान यह होता है कि जिस समस्या का समाधान करना है उसे भली-भाँति पहचान लिया जाय। यह कार्य इस हेतु आवश्यक है कि जब तक समस्याओं की पहचान नहीं होगी तब तक उसका समाधान नहीं ढूँढ़ा जा सकेगा। प्रायः यह देखा जाता है कि विद्यालय के प्रधानाचार्य और शिक्षक समस्या से पूर्णतः परिचित नहीं होते। उन्हें समस्या का भली-भाँति ज्ञान नहीं होता फलस्वरूप उन्हें सर्वप्रथम समस्याओं को पहचानना चाहिए और तत्पश्चात् उसका ठीक प्रकार से विश्लेषण करके उसका परिभाषित एवं सीमांतित रूप प्रस्तुत करना चाहिए। समस्या को परिभाषित करते समय उसके अन्तर्गत बहुअर्थक और जटिल शब्दों का सरल अर्थ स्पष्ट कर लेना चाहिए। समस्या सीमांकन करने के लिए उसके अत्यन्त व्यापक स्वरूप को थोड़ा विशिष्ट बना लेना चाहिए।
(2) समस्या से सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण – अनुसंधानकर्ता को यह चाहिए कि जब उसके द्वारा समस्या का विशिष्ट रूप निश्चित कर लिया जाय तो साक्ष्यों सहित उससे सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण करें। उसके द्वारा सम्बद्ध कारणों की एक सुस्पष्ट और विस्तृत सूची तैयार की जानी चाहिए तथा कारणों के सामने उनके साक्ष्यों का भी उल्लेख किया जाना चाहिए।
(3) क्रियात्मक परिकल्पना का निर्माण- समस्या से सम्बद्ध कारणों का विश्लेषण कर लेने के पश्चात् उसके समाधान पर विचार किया जाता है। यह विचार किया जाता है कि यदि हमारे द्वारा ऐसा कार्य किया जायेगा तो समस्या का समाधान निकल आयेगा। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि समस्या का एक सम्भावित समाधान निकाला जाता है और एक निश्चित दिशा में कार्य करने हेतु कदम बढ़ाया जाता है। इस तरह संक्षेप में, क्रियात्मक परिकल्पना किसी समस्या के सम्भावित समाधान हेतु दिया गया सुझाव है।
(4) क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण हेतु अनुसंधान की रूपरेखा तैयार करना- परिकल्पना का निर्माण करने के बाद उसके यथार्थ और प्रभावशीलता का परीक्षण करना आवश्यक है। इस कार्य के लिए अनुसंधान की एक रूपरेखा तैयार की जाती है। इस तरह की रूपरेखा तैयार कर लेने से अनुसंधानकर्ता को काफी आसानी हो जाती है। इस कल्पना की यथार्थता का पता लगाने में अशुद्धियों के होने की बहुत कम सम्भावना रहती है। अनुसंधानकर्त्ता अपनी कार्य-विधियों में होने वाली भूलों को सफलतापूर्वक पहचान लेता है और कुछ निश्चित परिणामों तक पहुँच जाता है। यही नहीं बल्कि सम्पूर्ण अनुसंधान कार्य पूरी तरह से वैज्ञानिक हो जाता है।
क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण के लिए तैयार की गयी रूपरेखा में निम्न बातों का समावेश होता है-
- क्रियाएँ जो प्रारम्भ करनी हैं-क्रियात्मक परिकल्पना के परीक्षण के हेतु जिन •क्रियाओं को प्रारम्भ करना है उनका स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया जाता है।
- विधि-इन क्रियाओं को सम्पादित करने हेतु जिस विधि का प्रयोग किया जायेगा उसका वर्णन किया जाता है।
- अपेक्षित साधन-इन क्रियाओं के सफलतापूर्वक सम्पादन के लिये जिन साधनों की आवश्यकता होती है उनका उल्लेख किया जाता है।
- अनुमानित समय-क्रियाओं के सम्पादन में जो अनुमानित समय लगता हैं उसका उल्लेख किया जाता है।
(5) निष्कर्ष निकालना- परिकल्पना का परीक्षण करने के पश्चात् उसका निष्कर्ष निकाला जाता है, सामान्यीकरण प्राप्त किए जाते हैं तथा उनका पुनर्परीक्षण किया जाता है। प्राप्त परिणाम के आधार पर परिकल्पना को सत्य अथवा असत्य घोषित किया जाता है। यदि उस परिकल्पना के अन्तर्गत सम्पादित क्रियाओं द्वारा लक्ष्य की प्राप्ति होती है तो परिकल्पना को सत्य माना जाता है, परन्तु जब लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती तो परिकल्पना को असत्य अथवा अस्वीकृत मान लिया जाता है। परिकल्पना को अस्वीकार कर देने के पश्चात् दूसरी नई परिकल्पना का निर्माण किया जाता है और तत्पश्चात् उसका परीक्षण करके निष्कर्ष निकाला जाता है।
क्रियात्मक अनुसंधान के प्रमुख तत्त्व (Important Elements of Action Research)
क्रियात्मक अनुसंधान के सोपानों का परिचय प्राप्त करने के पश्चात् उसके प्रमुख तत्त्वों की जानकारी भी आवश्यक हो जाती है। इसके प्रमुख तत्व निम्न हैं-
- क्रियात्मक अनुसंधान का प्रमुख तत्त्व ऐसे समस्या क्षेत्र से परिचित होना है जो कि एक व्यक्ति अथवा समूह को इतना महत्त्वपूर्ण लगे कि वह किसी क्रिया को करने हेतु तैयार हो।
- एक विशिष्ट समस्या का चयन तथा उससे सम्बन्धित परिकल्पना का निर्माण।
- एक उद्देश्य का निर्धारण और उस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उपयुक्त विधि का चयन।
- प्रदत्त सामग्री का एकत्रीकरण और उसका विश्लेषण।
- विश्लेषण के आधार पर यह देखना कि उद्देश्य की प्राप्ति किस सीमा तक हो सकी है।
- सामान्यीकरण प्राप्त किया जाना चाहिए और यह देखा जाना चाहिए कि प्रारम्भ की गयी क्रिया और वांछित उद्देश्य में क्या सम्बन्ध है।
- प्राप्त सामान्यीकरणों का क्रियात्मक परिस्थितियों में परीक्षण किया जाना चाहिए।
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