गैरीबाल्डी का जीवन परिचय
जन्म : 4 जुलाई, 1807
मृत्यु : 2 जून, 1882
इतालवी विचारक मैजिनी के शिष्य एवं स्वोर्ड ऑफ यूनीफिकेशन के तौर पर चर्चित गैरीबाल्डी का विश्व इतिहास में अनन्य स्थान है। उन्होंने अपनी वीरता व दुस्साहसिक अभियानों से इटली के एकीकरण में महती योगदान दिया, किंतु कोई पद या सम्मान लेने से इनकार कर दिया।
गैरीबाल्डी का जन्म पीडमांट-सार्डीनिया में सैवॉय के अंतर्गत नीस में हुआ था। डीमेनीको गैरीबाल्डी एवं रोसा राईमोंडी की संतान ग्यूईसेप्पी गैरीबाल्डी ने समुद्रपारीय व्यापार में दक्ष पिता के नक्शे पर चलकर 1832 में मर्चेंट मैरीन कैप्टन का सर्टिफिकेट हासिल किया, किंतु 1834 में मैजिनी से भेंट के बाद वह कार्बोनरी संगठन और यंग इटली से जुड़ गया। इसी साल विद्रोह में शिरकत पर उसे जेनोआ से मृत्युदंड मिला, किंतु वह बच निकला और फ्रांस होते हुए ट्यूनीशिया और ब्राजील चला गया। दक्षिण अमेरिका में 12 साल के निर्वासन काल में उसने अत्याचारी ब्राजीली शासकों के खिलाफ उरुग्वे के लड़ाकों की मदद की। वहीं उसने अनीता से शादी की, जो जीवन व युद्ध में उसकी सही सहधर्मिणी सिद्ध हुई। उसने 1849 में युद्धभूमि में वीरगति पाई। गैरीबाल्डी ने बलिदानी जत्था तैयार कर रोम में गणतंत्र स्थापना के लिए आक्रमण किया। मिशन के विफल रहने पर वह कैप्रिरा प्रायद्वीप चला गया। सन् 1859 में पीडमांट नरेश इमैनुएल और आस्ट्रिया में जंग छिड़ने पर वह इमैनुएल की सहायता के लिए आगे आया और कैवूर के आग्रह पर उसने सिसिली और नेपल्स की मुक्ति का दुस्साहसिक अभियान छेड़ा। गैरी व उसके 1150 लाल कुर्ती-रेड शर्ट्स अनुयायियों का जनता ने पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत किया और स्पेनी – बूब राजतंत्र को उखाड़ने में जुट गए। किंग बोंबा की फौज की मात से स्पेनी आधिपत्य खत्म हुआ। उसके बाद गैरी स्पेन के खिलाफ सैनिक प्रयाण में मेसीना जलडमरुमध्य की ओर बढ़ा और विजय प्राप्त कर रोम की ओर कूच किया, ताकि फ्रेंच समर्थित पोप से उसे आजाद करा सके। फ्रेंच रोष के भय से कैवूर ने नरेश इमैनुएल को रोम की रक्षा के लिए भेज दिया। वह चाहता तो सहज ही दक्षिण इटली का शासक बन सकता था, किंतु उसका सपना था इटली का एकीकरण। उसने कई अभियानों में शिरकत की परंतु जब संधि के तहत उसकी मातृभूमि नीस फ्रेंच सम्राट नेपोलियन तृतीय को सौंपी गई तो उसकी आंखों से अश्रुधारा बह चली। उसने कैवूर से कहा- ‘तुमने मुझे मातृभूमि में ही विदेशी बना दिया।’ इस महान सेनानी ने अपना शेष जीवन कैप्रिरा में खेती-बाड़ी करते हुए गुजारा।
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