टोली शिक्षण के आधारभूत सिद्धान्त क्या हैं ? टोली शिक्षण के प्रकार बतलाते हुए इसके लाभों को प्रकट कीजिए।
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टोली-शिक्षण के आधारभूत सिद्धान्त (Fundamental Principles of Team Teaching)
टोली-शिक्षण की प्रक्रिया प्रारम्भ करने से पहले कुछ सिद्धान्तों का पालन करना अति आवश्यक होता है। यह आवश्यक नहीं कि इनका पालन बहुत ही कठोरता से किया जाये, लेकिन फिर भी स्कूल की स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार इन सिद्धान्तों का पालन अवश्य किया जाना चाहिए ताकि टोली- शिक्षण के वांछित परिणाम प्राप्त हो सकें। इसके सिद्धान्त निम्न हैं-
(1) समय कारक (Time Factor) — टोली शिक्षण में विषय के महत्त्व के अनुसार ही समय निर्धारित किया जाना चाहिए। कम महत्त्व के विषय को अधिक समय दिये जाने से टोली- शिक्षण प्रभावहीन होकर रह जायेगा।
(2) अनुदेशन का स्तर (Level of Instruction) — टोली-शिक्षण के दौरान अनुदेशन प्रदान करने से पूर्व विद्यार्थियों का प्रारम्भिक व्यवहार कर अवश्य अनुमान लगा लेना चाहिए तथा अनुदेशन का स्तर विद्यार्थियों के अनुसार ही होना चाहिए।
(3) निरीक्षण (Supervision) – निरीक्षण कैसा हो तथा किस प्रकार हो यह सब कुछ है। समूह के उद्देश्य पर ही निर्भर करता है। अतः समूह के उद्देश्यों को निरीक्षण के समय ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है।
(4) आकार और रचना (Size and Composition) – वर्तमान युग में कक्षा निर्धारण आकार की बात अब पुरानी पड़ चुकी है। समूह का आकार टोली शिक्षण के उद्देश्य के अनुसार बदलता रहता है। अतः विद्यार्थियों के समूह का आकार और रचना समूह के उद्देश्यों और अधिगम अनुभवों के अनुसार ही उपयुक्त होनी चाहिए।
(5) अधिगम वातावरण (Learning Environment)— टोली शिक्षण तभी सफल हो सकता है जबकि इसके लिए ठीक प्रकार का अधिगम वातावरण प्रदान किया जाए; जैसे पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कर्मशाला आदि की व्यवस्था ।
(6) शिक्षकों के उपयुक्त उत्तरदायित्व (Duties Assigned to Teachers should be Appropriate)— टोली शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षकों को उनके कर्त्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों का बँटवारा उपयुक्त ढंग से हो । उनको ये कर्त्तव्य उनकी शैक्षिक योग्यताओं, रुचियों तथा व्यक्तित्व की विशेषताओं के अनुसार ही प्रदान किये जाने चाहिए। अतः टोली- शिक्षण में टोली के सदस्यों का चयन बहुत ही सावधानी से किया जाना चाहिए।
टोली-शिक्षण के प्रकार (Types of Team Teaching )
टोली शिक्षण का वर्गीकरण व्यवस्था के स्वरूप के आधार पर किया जा सकता है। यह वर्गीकरण निम्न प्रकार हो सकता है-
(1) एक ही विभाग के शिक्षकों की टोली- इस प्रकार के वर्गीकरण के अन्तर्गत एक ही विभाग के शिक्षण आते हैं। इस प्रकार की व्याख्या माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं के लिए की जाती है। ऐसा तभी संभव है जब एक ही विषय के एक से अधिक शिक्षण होते हैं।
(2) विभिन्न संस्थाओं के एक ही विभाग के शिक्षकों की टोली- इस प्रकार के टोली-शिक्षण में अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञों को भी आमन्त्रित किया जाता है। इस टोली- शिक्षण की व्यवस्था प्रत्येक स्तर पर की जा सकती है। प्रत्येक प्रकरण के लिए इस प्रकार के टोली-शिक्षण की व्यवस्था बड़ी सुगमता से की जा सकती है। इस टोली शिक्षण का प्रयोग वहाँ बहुत लाभदायक होता है जहाँ पर एक विषय का एक ही शिक्षक होता है। इस प्रकार के टोली- शिक्षण से सहकारी-शिक्षण करे ? बढ़ावा मिलता है। ऐसे टोली-शिक्षण का प्रभावशाली उपयोग तब और भी संभव हो जाता है जब एक ही शहर में एक से अधिक प्रशिक्षण संस्थाएँ होती हैं।
(3) एक ही संस्था के विभिन्न विभागों के शिक्षकों की टोली- इस प्रकार के वर्गीकरण के अन्तर्गत विभिन्न विषयों के शिक्षकों की टोली बनाई जाती है तथा इस टोली का प्रयोग प्रशिक्षण संस्थाओं में किया जाता है; जैसे- मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र आदि शिक्षकों की टोली द्वारा शिक्षण की व्यवस्था बड़ी सुगमता से की जा सकती है। उदाहरणार्थ, बी० एड०, एम० एड० का प्रशिक्षण आदि। संक्षेप में इस प्रकार के टोली शिक्षण द्वारा अन्तः अनुशासन शिक्षण को प्रोत्साहन दिया जाता है।
टोली-शिक्षण के लाभ (Advantages of Team Teaching)
टोली- शिक्षण प्रविधि की निम्नलिखित उपयोगिताएँ हैं-
(1) अनुदेशन की गुणवत्ता (Quality of Instruction)– टोली-शिक्षण की सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोगिता है कि इससे अनुदेशन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
(2) समूहों का अधिक विशेषज्ञों से सामना (Exposure of Group to More Specialistis) — टोली- शिक्षण का एक यह भी सबसे बड़ा योगदान है कि विद्यार्थी को अधिक से अधिक विशेषज्ञों का सामना करने का अवसर मिलता है। इस प्रकार विद्यार्थियों को विभिन्न शिक्षकों के विशिष्ट ज्ञान का लाभ मिल जाता है।
(3) आर्थिक दृष्टि से लाभदायक (Financially Profitable) — टोली शिक्षण आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है। इस प्रकार के शिक्षण से समय और शक्ति की बचत तो होती ही है, साथ में कक्षा में अनुशासन स्थापित करने में भी सहायता मिलती है।
(4) मानव सम्बन्धों का विकास (Development of Human Relations)- सामाजिक समायोजन के लिए मानव सम्बन्धों का विकास बहुत आवश्यक होता है। पारस्परिक “शिक्षण में मानव सम्बन्धों के विकास की कमी रहती है। टोली-शिक्षण में मानव सम्बन्धों के विकास को अवसर मिलता है।
(5) शिक्षक के व्यावसायिक स्तर का विकास (Development of the Professional Status of the Teacher) — टोली शिक्षण द्वारा शिक्षकों का व्यावसायिक स्तर भी विकसित होता है, क्योंकि इसमें शिक्षकों को नया साहित्य पढ़ने का अवसर मिलता है। टोली शिक्षण स्वयं में भी बहुत परिश्रम करता है
(6) लचीलापन (Flexibility) — टोली शिक्षण द्वारा स्कूल भवन, स्कूल स्टाफ तथा स्कूल के अन्य साधनों का प्रयोग बड़े ही लचीले ढंग से किया जा सकता है। टोली शिक्षण द्वारा पारम्परिक समय-सारिणी से छुटकारा मिलता है।
(7) स्वतन्त्र बहस के अवसर – टोली शिक्षण द्वारा टोली के सभी सदस्य विद्यार्थियों को बहस में भाग लेने के कई अवसर मिलते हैं। टोली-शिक्षण द्वारा विद्यार्थियों और शिक्षकों में विचारों को उद्दीपन प्रदान किया जा सकता है। टोली शिक्षण में विद्यार्थियों और शिक्षकों में भाग लेने की शक्तिशाली इच्छा और उत्तरदायित्व का विकास होता है।
(8) मूल्यांकन- टोली-शिक्षण का लाभ मूल्यांकन के चरण में बहुत उठाया जा सकता है। इसमें सभी शिक्षकों को एक-दूसरे शिक्षक के कार्य का मूल्यांकन करने का अवसर मिल जाता है तथा आवश्यक सुझाव भी दिये जा सकते हैं ताकि शिक्षण में आवश्यक सुधार किये जा सकें। पारम्परिक शिक्षण पद्धति में कोई भी शिक्षण दूसरे शिक्षकों के शिक्षण कार्य की ओर कोई ध्यान नहीं देता। टोली-शिक्षण द्वारा सभी शिक्षकों को एकत्रित किया जा सकता है और उन्हें उनके शिक्षण के बारे में बताया जा सकता है।
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