निम्नांकित प्रख्यात इतिहासकार पर टिप्पणी कीजिए।
(अ) गोविन्द सखाराम सरदेसाई
(ब) सर यदुनाथ सरकार
(अ) गोविन्द सखाराम सरदेसाई
गोविन्द सखाराम सरदेसाई का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार के घर में हुआ था। उन्होंने छत्रपति शिवाजी की जीवनी को 10 भागों में प्रकाशित करवाया था। मराठा इतिहास के संबंध में समय समय पर जो भी स्त्रोत उपलब्ध होते थे उन्हें वे अपने ग्रन्थ के संस्करणों में उल्लेख करते थे। मराठा इतिहास अंग्रेजी भाषा में लिखा होने के कारण लोकप्रिय रहा।
(ब) सरदेसाई यदुनाथ सरकार से सर्वाधिक प्रेरित और प्रभावित रहे। मराठा इतिहास रोखन के लिए सरदेसाई को सरकार ने पारसी ग्रन्थ उपलब्ध करवाये। सरदेसाई मराठा काल के सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक इतिहास से अनभिज्ञ थे। The new history of Marthas में सरदेसाई ने एक भी पंक्ति, तत्कालीन महाराष्ट्र के सामाजिक इतिहास के विषय में नहीं लिखी।
गोविन्द सखाराम सरदेसाई इतिहास की विज्ञान पद्धति में रूचि नहीं रखते थे। उनका प्रथम ग्रन्थ मराठा रियासत तीन खण्डों में बंटा हुआ था। प्रथम खण्ड़ में मराठों की उत्पति तथा मराठों के साथ औरगंजेब संघर्ष का वर्णन किया गया हैं। द्वितीय खण्ड में 1707 ई. से 1774 तक पेशवा प्रशासन तथा तृतीय खण्ड़ में 1774 से 1857 तक के मराठों के इतिहास पर प्रकाश डाला गया हैं।
सरदेसाई ने ब्रिटिश रियासत ग्रन्थ की रचना दो खण्डों में की हैं। प्रथम खण्ड 1600-1757 जिसका प्रकाशन 1923 में तथा द्वितीय खण्ड़ 1757-1838 जिसका प्रकाशन 1939 में हुआ था सरदेसाई ने अपने इतिहास लेखन में राजनीतिक घटनाओं का विस्तार के साथ वर्णन किया हैं लेकिन सांस्कृतिक परिवर्तनों की ओर किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया हैं।
(ब) सर यदुनाथ सरकार
सर यदुनाथ सरकार (1870-1950 ई. ):- डॉ. जायसवाल ने भारत के प्राचीन इतिहास को अपने शोध लेखन का लक्ष्य बनाया तो डॉ. सरकार ने औरंगजेब कालीन भारत को अपने शोध का विषय चुना हैं। आधुनिक इतिहासकारों में मध्यकाल पर जितना अच्छा अध्ययन यदुनाथ सरकार में प्रस्तुत किया हैं जैसा अन्यन्त्र नहीं मिलता।
ऐतिहासिक पद्धति से इतिहास लेखन के बारे में यदुनाथ सरकार का मानना था कि इतिहास लिखने से पूर्व किसी भी इतिहासकार को पहले अपने को संमत करना होता हैं उसके मन में समस्त दुराग्रह-पूर्वाग्रहों को हटा देना होता हैं और सर्वधा निष्पक्ष होकर ऐतिहासिक तथ्यों का विवरण और विश्लेषण करना होता हैं। एस. आर. तिकेकर का कहना हैं यदुनाथ की शोध विधि को चार शब्दों में अभिव्यक्त किया जा सकता हैं-
(i) मानचित्र घटना की सही व प्रमाणिक जानकारी के लिए।
(ii) पहचान-घटना के पात्रों की ऐतिहासिक रूप में पहचान बनाना।
(iii) कालानुक्रम-घटना के घटित होने का समय निर्धारण करना।
(iv) पुष्टिकरण-घटना के घटित होने को साहस के साथ पुष्टिकरण करना।
उपरोक्त इन्ही चार मूल मन्त्री के आधार पर उन्होंने इतिहास लेखन का कार्य किया था। उनका किसी भी प्रशस्ति में विश्वास नहीं था। वे सत्य इतिहास लेखन और विशुद्ध न्याय में आस्थावान रखते थे। सरकार इतिहास के जिस काल खण्ड़ का वर्णन करते थे उन स्थानों पर स्वयं जाकर स्मारकों और सम्बन्धित दस्तावेजों का अवलोकन किया करते थे।
वर्ष 1901 से 1905 तक उनके द्वारा लिखित व सम्पादित पुस्तके इस प्रकार हैं। (1) India of Aurangzeb, its Topography statistics and roads (1901 में)
(2) Ancedotes of Aurangzeb and Historical essay
(3) Chetanya his pilgrimages and Teahing (1913)
(4) Shivaji and his times (1919)
(5) Studies on mughal india (1919)
(6) India Through the Ages (1928)
(7) Fall of Mughal empire- Vol-1 1932 Vol-2-1934 Vol-3-1938 Vol-4-(1950)
(8) Poona Residency Correspondence-1930
(9) Persian Records of Martha History.
(10) Military history of india etc.
सर यदुनाथ सरकार का मूल शोध ग्रन्थ हिस्ट्री ऑफ औरगंजेब हैं जो पाँच खण्डों में उपलब्ध हैं। प्रथम में शाहजहां तथा औरंगजेब के प्रारम्भिक जीवन, द्वितीय खण्ड प्रकाशित (1912 में) में उत्तराधिकार युद्ध में औरंगजेब की सफलता, तृतीय खण्ड (प्रकाशित 1916 में) औरंगजेब का शासन, चर्तुथ खण्ड (प्रकाशित 1919) दक्षिण के बीजापुर व गोलकुण्डा के मुगल साम्राज्य में विलीनीकरण तथा पांचवे खण्ड (प्रकाशित 1924) में औरंगजेब द्वारा मराठों के साथ किये गये संघर्ष का वर्णन तथ्यों के आधार पर किया गया हैं।
सर यदुनाथ सरकार का जन्म 1870 ई. में बांग्लादेश के राजशाही इलाके में हुआ था कालान्तर में अनेक विश्वविद्यालयो कलकत्ता, पटना और बनारस के विश्वविद्यालयों में इतिहास व अंग्रेजी विषय का अध्यापन कार्य करवाया था। उनके द्वारा किये गये मानको पर आज भी इतिहास का अध्ययन अध्यापन का कार्य करवाया जाता हैं। उनके इतिहास लेखन के योगदान को निम्न बिन्दुओं के रूप में रखा जा सकता हैं।
(i) मध्यकालीन भारत के समकालीन भाषाओं तथा संस्कृत अंग्रेजी, पुर्तगाली डच व फ्रेन्च के अच्छे ज्ञान के लिए।
(ii) इन भाषाओ में उपलब्ध समस्त मूल सामग्रियों के खोज व शोध के लिये।
(iii) मूल सामग्री के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए।
(iv) यथा मानवीय सम्भावना द्वारा निष्पक्ष रूप से प्रमाणो के प्रयोग में सावधानी।
(v) निष्कर्ष को समन्वय और शोधपूर्ण शैली में प्रस्तुत करने के लिए आधुनिक इतिहास लेखन के प्रणेता रहे हैं।