पाठ योजना क्या है ? पाठ योजना का महत्त्व स्पष्ट कीजिए। पाठ योजना के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
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पाठ-योजना का अर्थ (Meaning of Lesson Plan)
पाठ-योजना अध्यापक के शिक्षण कार्य को व्यवस्थित करती है जिससे अध्यापक के समय, श्रम तथा शक्ति की बचत होती है। पाठ-योजना निर्माण से अध्यापक शिक्षण की प्रक्रिया निर्धारित करता है, जिससे शिक्षण के शिथिल स्थलों पर विशेष ध्यान देकर वह उन्हें सशक्त बनाता है और शिक्षण प्रभावशाली हो जाता है।
बोसिंग के अनुसार, “पाठ-योजना किये जाने वाले कार्यों के कथन का शीर्षक है। इसके अन्तर्गत निश्चित समय में विशेष साधनों द्वारा की जाने वाली क्रियाओं के परिणामस्वरूप विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति का वर्णन होता है।” उसमें अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार में लाये जाने वाले परिवर्तन, शिक्षण विधि, सीखने की विभिन्न अवस्थाओं तथा विद्यार्थियों के ज्ञान को परखने के लिए मूल्यांकन विधियों स्पष्ट संकेत मिलता है।
पाठ योजना के प्रकार (Types of Lesson Plan)
वर्तमान समय में शिक्षण में अनेक प्रकार की पाठ योजनाएँ प्रारम्भ हो गई हैं जिसमें से निम्नलिखित तीन प्रकार की प्रमुख हैं-
- सामान्य पाठ योजना (Macro Lesson Plan)
- सूक्ष्म पाठ योजना (Micro Lesson Plan)
- इकाई पाठ योजना (Unit Lesson Plan)
(I) सामान्य पाठ योजना (Macro Lesson Plan)
सामान्य पाठ योजना एक पाठ योजना है। यह कक्षा के पाठों को सभी बालकों को पढ़ाने प्रयुक्त होती है। इस पाठ योजना का निर्माण हरबर्ट ने पंचपदी प्रणाली के आधार पर किया में है। पाठ योजना का सामान्य प्रारूप निम्नवत् होता है-
(II) सूक्ष्म पाठ योजना (Micro Lesson Plan)
यह पाठ योजना नवीन प्रकार की पाठ योजना है। इसका प्रयोग सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त के लिए किया जाता है। शिक्षक प्रशिक्षक कार्यक्रम में शिक्षक के गुणों को विकसित करने के लिए शिक्षक के विभिन्न कौशलों से सम्बन्धित सूक्ष्म प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें छात्राध्यापक को प्रत्येक कौशल दिखाने के लिए अलग-अलग पाठ योजनाएँ लघु अवधि अर्थात् 5-10 मिनट की तैयारी की जाती है। यह सूक्ष्म पाठ योजनाएँ चक्रीय आधार पर चलती हैं। इसमें एक समय में एक ही कौशल सिखाया जाता है। उदाहरणार्थ शिक्षक को प्रश्न करने की कला सिखाने के लिए केवल प्रश्न निर्माण से सम्बन्धित सूक्ष्म पाठ योजनाएँ तैयार कराई जाती हैं। इसमें किसी खण्ड पर कुछ छात्राध्यापक प्रश्न बनाते हैं, फिर उन प्रश्नों को कक्षा में छात्रों के सम्मुख रखा जाता है। इस प्रकार यह चक्र शिक्षक प्रशिक्षक की सहायता से तब तक चलता रहता है जब तक छात्राध्यापक प्रश्न करने की कला में निपुण नहीं हो जाता है। इन पाठ योजनाओं का निर्माण भी बहुत कुछ सामान्य पाठ योजना की भाँति ही होता है, किन्तु प्रस्तुतीकरण में केवल उस अंश पर विशेष ध्यान दिया जाता है जिसका कौशल सीखना होता है।
(III) इकाई पाठ योजना (Unit Lesson Plan)
इकाई पाठ योजना भी नवीन प्रकार की पाठ योजना है। वर्तमान समय में ज्ञान को एक इकाई मानकर समय रूप से अध्ययन करने हेतु विषयों के शिक्षण में इकाई पद्धति का प्रचलन काफी हो गया है। इकाई योजना के निम्नलिखित सोपान हैं-
(1) सामान्य उद्देश्य का चयन- इसके अन्तर्गत इकाई के उद्देश्य एवं क्षेत्र को स्पष्ट किया जाता है।
(2) इकाई खण्डों का चयन- इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण इकाई के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध ढंग से खण्डों में विभाजित किया जाता है, किन्तु इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इकाई की समग्रता बनी रहे।
(3) इकाई खण्डों का चयन- इकाई खण्डों के चयन के उपरान्त प्रत्येक खण्ड का विकास किया जाता है। प्रत्येक खण्ड के विकास में निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है
- (अ) खण्ड के विशिष्ट उद्देश्यों का चयन करना,
- (ब) खण्ड के अन्तर्गत विषयवस्तु का निर्धारण,
- (स) खण्ड के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए छात्र क्रियाओं का निर्धारण ।
(4) इकाई की भूमिका का प्रस्तुतीकरण- इसमें छात्रों को प्रेरित करने के लिए इकाई की प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है।
(5) छात्र की वैयक्तिकता के अनुरूप कार्य विभाजन- इसमें छात्रों की व्यक्तिगत रुचियों, अभिलाषाओं आदि को ध्यान में रखकर प्रत्येक छात्र के लिए कार्य विभाजन किया जाता है।
(6) मूल्यांकन- इसमें प्रगति का मूल्यांकन किया जाता है। छात्रों ने इस इकाई योजना से क्या सीखा है, इसका मापन किया जाता है।
(7) शिक्षण सामग्री व सन्दर्भ पुस्तकों का चयन- इसमें छात्रों को इकाई पूर्ण करने में सहायता प्रदान करने वाली शिक्षण सामग्री व सन्दर्भ पुस्तकों की सूची दी जाती है।
पाठ-योजना की आवश्यकता एवं महत्त्व पाठ (Need and Importance of Lesson Planning)
कक्षा में पढ़ाने से पूर्व पाठ की योजना बनाने का महत्त्व निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है-
(1) आत्म-विश्वास– पाठ-योजना बना लेने से शिक्षक का कक्षा के सम्मुख पढ़ाते समय आत्म-विश्वास बना रहता है क्योंकि उसने पाठ से सम्बन्धित पहले से तैयारी की हुई है और उसे पहले से ही ज्ञात है, कौन-कौन से उदाहरण, विधि और अभ्यास आदि कराये जाने हैं जिससे वह कक्षा में बिना किसी डर के, आत्म-विश्वास के साथ जा सकता है।
(2) उपयुक्त उदाहरण – पूर्व पाठ-योजना बना लेने से अध्यापक को कक्षा में किसी भी प्रकार के उदाहरण नहीं सोचने पड़ते, पहले से ही सोचे हुए उपयुक्त उदाहरण कक्षा में प्रस्तुत करने से समय की बचत होती है।
(3) उचित अभ्यास– पाठ-योजना से बच्चों के सम्मुख उचित अभ्यास प्रस्तुत करने में भी आसानी होती है। यदि पूर्व पाठ-योजना नहीं है तो उसी समय ही सोचना पड़ता है तथा अभ्यास कराना पड़ता है। ऐसी अवस्था में कठिनाई भी आ सकती है।
(4) उचित विधि– पाठ-योजना के पूर्व निर्धारण करने से अध्यापक को उचित विधि ढूँढ़ने में आसानी होती है। छात्रों को किस समय मौखिक कार्य कराना ठीक होगा यह बिना पाठ-योजना के निश्चित नहीं किया जा सकता।
(5) विद्यार्थियों को सुगमता – पाठ योजना से जहाँ अध्यापक को सुविधा और सहायता मिलती है वहाँ विद्यार्थियों को भी सुगमता रहती है, क्योंकि पाठ-योजना द्वारा पढ़ाये गये पाठ विधिपूर्वक पढ़ाये जाते हैं। इनमें उचित उदाहरणों, उचित सहायक सामग्री और उचित अभ्यास आदि के द्वारा विद्यार्थियों को विषय अधिक स्पष्ट हो जाता है।
(6) समय विभाजन- पाठ-योजना की सहायता से अध्यापक पाठ्यक्रम को उपयुक्त समय में बाँटकर पाठ्यक्रम समय पर पूरा करने का प्रयत्न करता है।
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