पुनर्जागरण का अर्थ एवं उसकी विशेषताएँ समझाइये?
पुनर्जागरण (रेनेसा) मानव जीवन के प्रति मनुष्य के नवीन दृष्टिकोण का नाम हैं। इतिहास में इसको नवयुग “नया जन्म” बौद्धिक पुनर्जागरण आदि विभिन्न नामों से सम्बोधित किया जाता हैं। प्रोफेसर जानसन टामसन के मतानुसार रेनेसा शब्द का प्रयोग चौदहवी शताब्दी में इटली के कला एवं ज्ञान के क्षेत्र में होने वाले पुनर्जागरण अथवा नवजागरण के लिए किया गया। प्रोफेसर ल्यूकस ने इसे और अधिक स्पष्ट करते ने हुए लिखा हैं कि रेनेसा शब्द का अर्थ इटली के उन सांस्कृतिक परिवर्तनों से हैं जो चौदहवी शताब्दी से प्रारम्भ होकर 1610 ई. तक सम्पूर्ण यूरोप में फैल गये। प्रोफेसर स्वेन के अनुसार मध्य युग के अन्तिम काल में होने वाले समस्त बौद्धिक परिवर्तन ही सामूहिक रूप से पुनरूत्थान हैं।
मिकेलिट नामक विद्वान का मत हैं कि पुनरूत्थान मानव द्वारा अपनी तथा विश्व की खोज हैं। इतिहासकार सीमोण्ड ने पुनरूत्थान की व्याख्या करते हुए लिखा हैं कि यह एक ऐसा आन्दोलन था जिसके द्वारा पश्चिम के राष्ट्र मध्ययुग से निकलकर आधुनिक विचार तथा जीवन की पद्धतियों को ग्रहण करने लगे पुनरूत्थान की चारित्रिक व्याख्या करते हुए प्रो. डेविस ने लिखा हैं कि “पुनर्जागरण शब्द मनुष्य की स्वतन्त्रता प्रियता एवं साहसी विचारों की अभिव्यक्ति हैं।”
संक्षेप में पुनरूत्थान व्यक्ति को मध्ययुगीन अन्धविश्वासों, रूढ़ियों तथा चर्च एवं धर्म शास्त्रों के बन्धनों से मुक्त करके स्वतन्त्र चिन्तन तथा अपने व्यक्तित्व का विकास करने का अवसर देने वाला तथा प्राचीन यूनानी एवं रोमन संस्कृति के आधार पर एक नयी संस्कृति का निर्माण करने का प्रयास था। इसके मूल में पर लोकवाद तथा धर्मवाद् के स्थान पर मानववाद की भावना थी। इसे यूरोप के मध्ययुग एवं आधुनिक युग को मिलाने वाले सेतु कहा जा सकता हैं।
यह यूरोपीय इतिहास की एक महान युगान्तरकारी घटना थी जिसने आगे चलकर सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया और मानव सभ्यता एवं संस्कृति की प्रगति में अविस्मरणीय योगदान दिया।
पुनर्जागरण की विशेषताए
(i) पुनर्जागरण की प्रथम मुख्य विशेषता स्वतन्त्र चिन्तन हैं। मध्ययुग में व्यक्ति के चिन्तन एवं मनन पर धर्म का कठोर अंकुश लगा हुआ था। पुनर्जागरण ने आलोचना को नई गति एवं विचारधारा को नवीन निडरता प्रदान की। पुनरूत्थान का लक्ष्य परम्परागत विचारधाराओं को स्वतन्त्रता की कसौटी पर परखना था।
(ii) पुनर्जागरण की दूसरी विशेषता मनुष्य को अन्धविश्वास रूढ़ियों तथा चर्च के बन्धनों से मुक्त कराकर उसके व्यक्तित्व का स्वतन्त्र रूप से विकास करना था।
(iii) पुनर्जागरण की तीसरी विशेषता मानववादी विचारधारा थी। मध्ययुग में चर्च ने लोगों को बतलाया था कि इस दुनिया में जन्म लेना ही घोर पाप हैं। अतः तपस्या तथा निवृति मार्ग को अपनाकर मनुष्य को इस जीवन का आनन्द उठाने से मना किया और परलोक को सुधारने पर बल दिया इसके विपरीत पुनर्जागरण ने मनुष्य को इस जीवन का पूरा-पूरा आनन्द उठाने को कहा। मानव जीवन को सार्थक बनाने की शिक्षा दी। धर्म और मोक्ष के स्थान पर मानवता के उद्धार का सन्देश दिया। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता थी।
(iv) पुनर्जागरण की एक अन्य मुख्य विशेषता देशज भाषाओं का विकास थी। अब तक केवल यूनानी तथा लैटिन भाषाओं में लिखे गये ग्रन्थों को ही महत्वपूर्ण समझा जाता था। पुनर्जागरण ने लोगों की बोलचाल की भाषा को गरिमा एवं सम्मान दिया क्योंकि इन भाषाओं के माध्यम से सामान्य लोग बहुत जल्दी ज्ञानजन कर सकते थे। अपने विचारों को सुगमता के साथ अभिव्यक्त कर सकते थे। देशज भाषा का प्रयोग रेनेसा का एक मुख्य लक्षण था। चित्रकला के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी, यथार्थ का चित्रण वास्तविक सौन्दर्य का अंकन।
(v) विज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी निरीक्षण-अन्वेषण जाँच और परीक्षण। इस वैज्ञानिक भावना ने मध्ययुगीन अन्धविश्वासों और मिथ्या विश्वासों को अस्वीकार कर दिया।