पृथ्वी पर संस्कृति के विकास का मूल्यांकन कीजिये।
संस्कृति, मानव के द्वारा एकीकृत शैली का प्राप्त आचरण प्रतिरूप है, जो समाज के सदस्यों की विशेषता होती है उसके आचरण में परिलक्षित होती है। संस्कृति एक प्रकार की जीवन पद्धति है जो समाज का प्रत्येक सदस्य अर्जित करता है। इसी लिए प्रत्येक संस्कृति में विचार पद्धति, सामाजिक संगठन, औद्योगिक दक्षता और अभियांत्रिक ज्ञान सम्मिलित रहता है। इस प्रकार संस्कृति ऐतिहासिक काल से अर्जित आचरण का आदर्श स्वरूप होता है।
संस्कृति में गतिशीलता के कारण इसमें परिवर्तन और परिमार्जन निरन्तर होता रहता है। भौगोलिक परिस्थितियों की प्रादेशिक भिन्नताएँ संस्कृति में भी भिन्नता पैदा करती हैं। परिवर्तन सभी संस्कृतियों का मौलिक गुण है लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों में भिन्नता के कारण संस्कृतियों में परिवर्तन की प्रकृति और दर में भिन्नता का पाया जाना स्वाभाविक है। सामाजिक और भौतिक वातावरण में परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होते हैं।
संस्कृति के अन्तर्गत मानव की उन समस्त कृतियों को सम्मिलित करते हैं। जिन की रचना उसने प्राकृतिक भू-दृश्यों को प्रयोग करके या रूपान्तरण करके की है। मानव की संस्कृति पर या सांस्कृतिक रचना पर उस क्षेत्र विशेष की भूमि, मिट्टी, जल प्रवाह, खनिज, वनस्पति और जीव जन्तुओं का प्रभाव अवश्य ही लक्षित होता है। संस्कृति में अनेक तत्व जैसे जनसंख्या मानवीय बस्तियों, कल कारखाने, बाजार, नदियों के बाँध, परिवहन व संचार के साधन, कृषि, शिक्षा संस्थाएँ, कला व सौन्दर्य के साधन, धार्मिक संस्थाएँ आदि सम्मिलित किए जाते हैं। इन सांस्कृतिक तत्वों पर स्थानिक दशाओं का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता है। भारत में ही दक्षिण भारत के मन्दिरों में कलात्मक रूप में उत्तर भारत के मन्दिरों से भिन्न होता है। मानव के रीति रिवाज भी भौगोलिक कारकों के कारण भिन्न-भिन्न होते हैं। पृथ्वी तल पर उपरोक्त सांस्कृतिक तत्वों के वितरण प्रारूप और वातावरण के कारकों का उन पर प्रभाव का मूल्यांकन करना भूगोल का उद्देश्य है।
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