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प्रयोगशाला विधि (Laboratory Method)
गणित शिक्षण की विधियों के दोषों को दूर करने के लिए प्रयोगशाला विधि का आविष्कार हुआ। इस विधि में बालक गणित के तथ्यों (Facts) की खोज करते हैं।
गणित शिक्षण की यह प्रणाली छात्रों की क्रियाशीलता को प्रोत्साहित करने की एक प्रक्रिया है। इस प्रणाली में स्थूल. से सूक्ष्म की ओर’ नामक सूत्र का सहारा लिया जाता है। गणित शिक्षण की यह विधि वास्तव में ह्यरिस्टिक विधि से मिलती-जुलती है। इसमें और ह्यूरिस्टिक विधि में अन्तर केवल इतना है कि ह्यूरिस्टिक विधि में खोज कराने के लिए अध्यापक द्वारा किये गये प्रश्न होते हैं, जबकि प्रयोगशाला विधि में खोज के साधन छात्रों द्वारा किए गये प्रयोग होते हैं। भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र और जीवविज्ञान की प्रयोगशालाओं की भाँति गणित की भी प्रयोगशाला होती है, जिसमें प्रयोगकर्त्ता गणित का ज्ञान प्राप्त करते हैं। छात्र स्वयं प्रयोगों द्वारा नियमों को निकालते हैं और स्वयं ही उसकी पुष्टि करते हैं और इस प्रकार इस विधि के अन्दर आगमन और निगमन प्रणालियों को प्रयोगों के आधार पर अपनाया जाता है। प्रत्येक गणितीय ज्ञान प्रयोगों द्वारा ही होता है।
इस विधि के अन्तर्गत क्षेत्रफल, आयतन, कोणों और वृत्त का क्षेत्रफल एवं अर्द्धव्यास सम्बन्ध आदि के प्रयोगों को ज्ञात किया जाता है। उदाहरण के लिए वृत्त की परिधि और उसके व्यास का सम्बन्ध सिखाने के हेतु एक दफ्ती या काठ का वृत्त बनवाया जाता है, फिर तागे से उसकी परिधि और व्यास को नपवाया जाता है। छात्र यह देखते हैं कि वृत्त की परिधि उसके व्यास की लगभग 22/7 गुना है। इसी प्रयोग को छात्र अन्य वृत्त बनाकर दोहराते हैं और इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वृत्त की परिधि उसके व्यास का 22/7 गुना होती है। इसी तरह आयताकार ठोसों का आयतन निकालना समझाने के लिए छात्रों से विभिन्न नापों के आयताकार ठोस तौलवाये जाते हैं और फिर उनकी तुलना एक घन इकाई के टुकड़े के तौल से करवायी जाती है। आयताकार ठोसों को घन इकाई के टुकड़ों से कटवायां भी जाता है। और कई एक घन के इकाई के टुकड़ों से विभिन्न नापों के आयताकार ठोस भी बनवाये जाते हैं। इन प्रयोगों के द्वारा छात्र इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आयताकार ठोस का आयतन = लम्बाई x चौड़ाई x ऊंचाई।
प्रयोगशाला विधि के गुण
अंकगणित शिक्षण में प्रयोगशाला विधि के निम्नलिखित गुण हैं-
1. इससे बालक ‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर’ सूत्र के अनुसार कार्य करते हैं। अतएव यह विधि रुचिकर और आसान होती है।
2. इस विधि में छात्रों की रुचि सदैव बनी रहती है। तथ्यों को जानने के लिए न तो उन्हें रटना पड़ता है और न अरुचिकर ढंग का अध्ययन करना पड़ता है।
3. इस विधि में छात्र स्वयं कार्य करके सीखते हैं। अतएव उन्हें कार्य में आनन्द आता है। उन्हें जिस ज्ञान की प्राप्ति होती है, वह स्थायी होता है। साथ ही इस विधि में सभी ज्ञानेन्द्रियों का प्रशिक्षण और समायोजन हो जाता है।
4. इस विधि के द्वारा गणित शिक्षण से गणित का अन्य विषयों के साथ सह-सम्बन्ध स्थापित करना आसान हो जाता है।
5. इस विधि के द्वारा शिक्षण से छात्र गणित का अनुप्रयोग गणित की विभिन्न समस्याओं को हल करने में तथा जीवन की अन्य समस्याओं में सरलता से कर सकता है।
6. प्रयोगशाला विधि में अध्यापक और छात्रों का सम्बन्ध बढ़ जाता है। अध्यापक छात्रों के नेता और मित्र होते हैं और आवश्यकता पड़ने पर उनकी सहायता करते हैं।
7. यह विधि छात्रों को स्थान (Space) का सही बोध कराती है।
8. इस विधि के प्रयोग से छात्र विभिन्न प्रकार के यन्त्रों का प्रयोग ठीक ढंग से करना सीख जाते हैं।
प्रयोगशाला विधि के दोष
यह ठीक है कि गणित शिक्षण में प्रयोगशाला विधि का प्रयोग किया जा सकता है परन्तु इस विधि के कुछ अपने दोष भी हैं जिनका उल्लेख यहाँ संक्षेप में किया जा रहा है-
1. इस विधि के द्वारा गणित के सभी पाठों को नहीं पढ़ाया जा सकता।
2. इस विधि के अन्तर्गत अत्यधिक समय लगता है और इसी विधि के द्वारा शिक्षण प्रदान किया जाये तो पाठ्यक्रम कभी पूरा नहीं हो सकता।
3. प्रयोगों द्वारा गणितीय तथ्यों की खोज करना आसान कार्य नहीं है और छात्र अक्सर इन तथ्यों को खोज नहीं पाते हैं।
4. इस विधि के द्वारा छात्रों को गणित के तथ्यों की जानकारी करा दी जाती है, परन्तु यह विधि गणित सम्बन्धी तर्कों का विचार करने में सहायक सिद्ध नहीं होती।
5. यदि गणित की प्रयोगशाला में केवल एक ही अध्यापक होता है तो वह अध्यापक सभी छात्रों की कठिनाइयों को सीमित समय में हल नहीं कर पाता।
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2. वर्णनात्मक विधि (Descriptive Method)
4. भ्रमणात्मक विधि (Excursion Method)
5. प्रश्नोत्तर प्रणाली (Questioning Technique or Socratic Method)
6. प्रादेशिक पद्धति (Regional Method)
7. तुलनात्मक विधि (Comparative Method)
8. आगमन विधि (Inductive Method)
9. निगमन विधि (Deductive Method)
10. डाल्टन विधि (Dalton Method)
11. प्रोजेक्ट विधि (Project Method)
12. समस्या विधि (Problem Method)
13. वैज्ञानिक विधि (Scientific or Laboratory Method)
14. क्रियात्मक विधि (Activity Method)
15. कार्य-कारण सम्बन्ध विधि (Causal Relation Method)
16. संकेन्द्रिय विधि (Concentric Method)