प्रोजेक्ट विधि के अर्थ एवं स्वरूप को समझाइये ।
प्रोजेक्ट विधि के अर्थ एवं स्वरूप
जिस विधि से छात्रा किसी भी शैक्षणिक समस्या का हल स्वाभाविक परिस्थिति में खोजने का प्रयास करता है, तर्क द्वारा जानकारी प्राप्त करता है और उस ज्ञान के आधार पर अपने व्यवहार में परिवर्तन कर समस्या का समाधान करता है, उसे प्रोजेक्ट पद्धति कहते है। इस विधि में समस्या का हल खोजने के लिये प्रयोजन पूर्ण कार्य किये जाते है। यह विधि जॉन डीवी की विचारधारा पर आधारित है। इसको विकसित करने का श्रेय किलपैट्रिक को जाता है।” उसके अनुसार “प्रयोजन एक उद्देश्यपूर्ण कार्य है जिसे सामाजिक वातावरण में पूर्ण तन्मयता के साथ सम्पन्न किया जाता है। बेलार्ड ने प्रोजेक्ट को यथार्थ जीवन का एक अंश बताया जिसे स्कूल में आयात कर लिया जाता है। स्टीवेन्सन ने कहा “योजना एक समस्यामूलक कार्य हैं, जिसे प्राकृतिक स्थिति में पूरा किया जाता है।” जी. बॉसिग के अनुसार, प्रोजैक्ट समस्यामूलक क्रिया की ऐसी इकाई है जो विद्यार्थियों द्वारा स्वाभाविक रीति से आयोजित एवं पूर्ण की जाती है।” इसमें अनुभव की पूर्ति के लिए भौतिक साधनों तथा वस्तुओं का प्रयोग आवश्यक हैं।
इसमें जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का वास्तविक रुप में चयन करते है। समस्याओं के लिये योजना तैयार की जाती है। छात्र अपनी समस्या के हल ढूँढ़ने के लिये जो क्रियाएं करता है, उन क्रियाओं को भली प्रकार पूरा करने के लिये अनेक सूचनायें एकत्रित करता है। छात्रा को विषय ज्ञान-अनुभवों एवं क्रियाओं द्वारा प्राप्त होता है। अध्यापक का स्थान गौण होता है। उसका कार्य निर्देशन देना होता हैं।
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