‘भूगोल एक अन्तरा अनुशासक विषय है’ इस कथन की विवेचना कीजिये।
आदिकाल से ही भूगोल का स्वरूप परिवर्तनशील रहा है। इसके विकास पर समय-समय पर तात्कालिक सामाजिक मान्यताओं और वैज्ञानिक चिन्तन का प्रभाव पड़ा है। इस प्रभाव के अनुसार इसके विकास की प्रकृति निर्धारित होती रही है। प्राचीनकाल में भूगोल पृथ्वी के विवरण के रूप में था। उस समय पृथ्वी के तल पर स्थिति तत्वों का ही अध्ययन किया जाता था। इस काल में पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों के बारे में जानकारी प्राप्त की गई। पृथ्वी के आकार के बारे में कल्पनाएँ की गई। भूगोल का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी के ज्ञात क्षेत्रों का विवरण प्रस्तुत करने तक सीमित था।
मध्यकाल में मुस्लिम विद्वानों का प्रभुत्व रहा। इन विद्वानों ने नक्षत्र विज्ञान को अधिक विकसित किया। यह काल भी विवरणात्मक भूगोल तक सीमित रहा।
पुनर्जागरण काल में भूगोल के अध्ययन का केन्द्र पृथ्वी तल रहा। पृथ्वी तल पर स्थित धरातलीय स्वरूपों, जलवायु, जल, वन, पशु, मानव आदि का अध्ययन के मुख्य विषय रहे।
आधुनिक काल का प्रारम्भ 1700 ई. 1800 ई. तक पृथ्वी की उत्पत्ति पर विद्वानों का ध्यान केन्द्रित रहा। इसी अवधि में यात्राओं और संग्रहित तथ्यों के विश्लेषण को वैज्ञानिक रूप प्रदान किया गया। शास्त्रीय युग में भूगोल के विवरणात्मक स्वरूप को विश्लेषणात्मक रूप दिया गया और तत्वों के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या की गई। द्वैत युग में भूगोलविदों के एक वर्ग ने भूगोल को प्राकृतिक विज्ञान माना जबकि दूसरे वर्ग ने इसके अध्ययन में मानवीय तत्वों को सम्मिलित करने पर बल दिया। रेटजल ने भूगोल को मानव और वातावरण के परस्पर संबंधों का अध्ययन करने वाला विज्ञान बताया। इसके आधार पर निश्चयवाद और सम्भववाद विचारधाराओं का विकास हुआ। इसके बाद भूगोल में अनेक परिवर्तन हुए। लेकिन इन परिवर्तनों ने भूगोल को वैज्ञानिक रूप प्रदान करके विज्ञान का दर्जा दिलवाने में सहायता की। विज्ञान की विशेषताओं के आधार पर भी भूगोल खरा उतरता है।
विज्ञान की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित अध्ययन,
- नियम प्रतिपादन की क्षमता,
- यथार्थ वर्णन,
- वस्तुनिष्ठता,
- प्रत्यक्ष अनुभवपरक ज्ञान।
भूगोल एक अन्तर्विषयक विज्ञान – भूगोल एक ऐसा मध्यस्थ विषय है जो प्राकृतिक विज्ञानों और मानवीय विज्ञानों के मध्य एक कड़ी स्वरूप है। भूगोल में पृथ्वी तल का अध्ययन किया जाता है। चूंकि मानव पृथ्वी तल का ही एक अंग है उसकी समस्त क्रियाएँ पृथ्वी तल पर होती है। अत: भूगोल के अध्ययन में मानव भी प्राकृतिक तत्वों की भाँति एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता है। इसीलिए मानव से संबंधित मानव विज्ञानों जैसे राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास, समाजशास्त्र आदि की विषयवस्तु भूगोल की विषय वस्तु से संबंधित है। दूसरी और भूगोल की विषय वस्तु में प्राकृतिक तत्वों का विवरण सम्मिलित है अतः प्राकृतिक विज्ञानों जैसे भौतिकी, रसायन, वनस्पति, मृदा, भूगर्भ, जन्तु आदि की विषय वस्तु का भूगोल में समावेश होना स्वाभाविक है।
हार्टशोर्न नामक विद्वान ने भूगोल को एक अन्तरा अनुशासन विज्ञान के रूप में परिभाषित किया है। उसने भूगोल का उद्देश्य पर्यावरण और मानव के मध्य संबंध को समझना बताया है।
एनसाइक्लोपिडिया ब्रिटेनिका में भूगोल को प्राकृतिक एवं मानव विज्ञानों की जननी कहा है। (Geography has been called the mother of all Sciences) भूगोल ऐसा विज्ञान है जिसमें अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की विषयवस्तु को सम्मिलित किया जाता है जिसका उदाहरण निम्नलिखित है-
मृदा- यह मृदा विज्ञान का विषय है लेकिन भूगोल में मृदा के प्रकार और – मृदा के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन होता है।
चट्टानें – भूगर्भशास्त्र का विषय होने पर भी चट्टानों की रचना, चट्टानों का वितरण आदि बिन्दु भूगोल में अध्ययन के बिन्दु है।
जलवायु – मौसम विज्ञान का विषय है लेकिन भूगोल में जलवायु के तत्व एवं सामान्य नियमों का अध्ययन सम्मिलित है।
उच्चावच – भू-आकृति विज्ञान का विषय है लेकिन भूगोल में स्थूलरूपों के प्रकार और उनके निर्माण में सक्रिय अपरदन तथा निक्षेपण की प्रक्रिया का अध्ययन होता है।
सामाजिक विज्ञान – भूगोल चूंकि मानव केन्द्रित भौतिक विज्ञानों का अध्ययन करता है। अतः मानव तथा उसके क्रियाकलापों से संबंधित सामाजिक विज्ञानों की विषय वस्तु भी इसमें महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करती है। समाज विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीतिक क्रियाओं का अध्ययन भूगोल में इस कारण सम्मिलित हैं क्योंकि ये क्षेत्र की भौगोलिक दशाओं से प्रभावित होती है। अतः इनमें क्षेत्रीय भिन्नताओं का उद्भव स्वाभाविक है। इन सामाजिक विज्ञानों के भूगोल मे प्रवेश ने भूगोल की अनेक शाखाओं को जन्म दिया है जैसे सामाजिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, वाणिज्य भूगोल, राजनीतिक भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल, कृषि भूगोल आदि ।
हैटनर नाम के विद्वान ने कहा है कि “भूगोल केवल प्राकृतिक या मानव विज्ञान नहीं है अपितु यह संयुक्त विज्ञान है।”
एक अन्य भूगोलवेत्ता डिकिन्सन ने भी भूगोल को अन्तर्विषयक विषय बताते हुए लिखा है कि “भूगोल का विषय क्षेत्रं अन्य विज्ञानों से अध्यारोपण करता है। यह किसी विषय की विशिष्टता या कमजोरी नहीं है जबकि समसामयिक ज्ञान के विकास के लिए नवीन सुझाव विभिन्न विषयों के परस्पर आश्रितों पर ही निर्भर है।”
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