भूगोल की विषयवस्तु का विश्लेषण और संगठन किन-किन आधारों पर होना चाहिये?
सामाजिक अध्ययन में भूगोल का महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान युग में मानव के कृत्यों का दुष्परिणाम पृथ्वी पर विस्तृत समस्त जीव मण्डल को भुगतना पड़ रहा है। यह दुष्परिणाम पर्यावरण प्रदूषण है। यदि इसको रोकने के प्रयास नहीं किये तो सम्पूर्ण जीवन मण्डल के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो सकता है। भूगोल ही ऐसा विषय है जिसका अध्ययन पर्यावरण रक्षा में अधिक सहयोग दे सकता है। विषयवस्तु का विश्लेषण करने में निम्न प्रश्नों के उत्तर सहायक हो सकते हैं-
- क्या विषयवस्तु द्वारा भूगोल शिक्षण के लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति होती है।
- क्या विषयवस्तु जिन कक्षाओं के लिए संकलित की गई है उस आयुवर्ग के बालकों के मानसिक स्तर के अनुकूल है।
- क्या विषयवस्तु में छात्रों की सृजनात्मकता के विकास की दृष्टि से कुछ प्रकरणों को सम्मिलित किया गया है।
- क्या विषयवस्तु छात्रों में रूचि, जिज्ञासा तथा चिन्तन विकास में सक्रिय सहयोग देती है?
- क्या विषयवस्तु में प्रायोगिक और मानचित्र कला के कौशल विकास का प्रावधान रखा गया है।
- विषयवस्तु तथ्य आधारित है या नहीं।
- क्या विषयवस्तु छात्रों में तर्क और कल्पना शक्ति के विकास में सक्षम है।
- क्या विषयवस्तु का क्रमायोजन विषय की प्रकृति को तथा सीखने के लिए बच्चों को उत्प्रेरित करने के ढंग को ध्यान में रखकर किया गया है।
- क्या विषयवस्तु छात्रों में संसाधन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति चेतना पैदा करने में सक्षम है?
- आज वैश्वीकरण का युग है। क्या विषयवस्तु छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीयता का विकास करने में सहायक है?
विषयवस्तु का संगठन-
भूगोल की विषयवस्तु को प्रस्तुतीकरण करते समय निम्न तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिये-
(i) व्यक्तिगत विभिन्नताओं का सिद्धान्त- विषयवस्तु के संगठन में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान रखना चाहिये। कक्षा में भले ही छात्र प्राय समान आयु के होते हैं लेकिन उनकी पृथक-पृथक रूचियाँ, योग्यताएँ तथा अभिरूचियाँ होती है।
(ii) स्पष्टता का सिद्धान्तः- विषयवस्तु का संगठन स्पष्टता अनुसार होना चाहिये। विषयवस्तु का संगठन सरल से कठिन की ओर होना चाहिये।
(iii) विषय सामग्री में ऐसे प्रकरण भी सम्मिलित करने चाहिये जो प्रायोगिक कार्य करने के कौशल विकास में सहायक हों। ऐसे प्रकरण छात्रों में सृजनशीलता के विकास में सहायक होते हैं और उनमें रचनात्मक कार्य करने की प्रवृत्ति के विकास में सहयोग प्रदान करते हैं।
(iv) विषयवस्तु छात्रों के जीवन से सम्बन्धित होनी चाहिये । विषयवस्तु की उपयोगिता का संगठन में विशेष ध्यान रखना चाहिये।
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