भूगोल के स्वरूप (Nature) को स्पष्ट कीजिये।
प्रत्येक विषय कुछ विशेषताओं से युक्त होता है और ये विशेषताएँ उसके सम्पूर्ण रूप पर प्रकाश डालती है। ये विशेषताएँ ही विषय की प्रकृति को स्पष्ट करती है। ये विशेषताएँ विषयवस्तु, चिन्तन की प्रवृत्ति, उपागम, अध्ययन विधियों द्वारा निर्धारित होती है। भूगोल भी एक गत्यात्मक विषय है तथा अन्य विज्ञानों की भाँति इसकी विषय वस्तु उपागम और अध्ययन विधियों में परिवर्तन होते रहे हैं लेकिन इस विषय की कुछ विशेषताएँ अपरिवर्तित रहीं है जो इसकी प्रकृति पर प्रकाश डालती है-
1. भूगोल के अध्ययन में ‘स्थान का महत्व’- प्रत्येक विषय का मूल पृथक पृथक होता है जैसे अर्थशास्त्र के अध्ययन में ‘धन’, इतिहास के अध्ययन में ‘समय’, समाजशास्त्र के अध्ययन में ‘समाज’ मुख्य केन्द्र बिन्दु होते हैं उसी प्रकार भूगोल के अध्ययन का मूल ‘स्थान’ है। स्थान का सम्बन्ध पृथ्वी तल से है इसी कारण भूगोल को पृथ्वी तल का विज्ञान कहते हैं। पृथ्वी तल पर स्थित प्रत्येक स्थान अपनी कुछ भौगोलिक विशेषताओं के कारण अन्य स्थानों से भिन्न अपना विशिष्ट स्थान रखता है। स्थान से ही क्षेत्र या प्रदेश का निर्माण होता है जो भौगोलिक दशाओं में समानता प्रकट करते हैं ल्यूकर मैन के अनुसार भूगोल की विषयवस्तु स्थानों का अध्ययन है क्योंकि स्थान भूतल की यथार्थता का स्पष्ट रूप होता है।
2. भूगोल एक गतिशील विज्ञान है- प्रारम्भ से ही भूगोल को स्थान सम्बन्धी विज्ञान माना जाता है। भूगोल भी अन्य विषयों की भाँति तात्कालिक दार्शनिक और सामाजिक विचारों से प्रभावित रहा है और इसी के अनुरूप इस में परिवर्तन होता रहा है। प्रारम्भ में भूगोल का स्वरूप विवरणात्मक था। यूनानी काल में भूगोल में मानव जीवन पर प्राकृतिक वातावरण के प्रभाव का अध्ययन प्रारम्भ हुआ। इसके बाद वातावरण और सम्भववाद की विचारधारा का प्रवेश प्रारम्भ हुआ। हटेनर ने इसे क्षेत्रवाद का रूप दिया और हार्टशोर्न ने क्षेत्रीय विभेदीकरण की संकल्पना को इसमें स्थान दिया और सन् 1953 के बाद सांख्यिकी विश्लेषण, मॉडल निर्माण, तन्त्र विश्लेषण आदि तकनीकों के प्रवेश से इसे वैज्ञानिक विषय बनाने का प्रयास हुआ। मार्क्सवादी विचारधारा के कारण इस पर समाजवादी दृष्टिकोण प्रभावी हुआ। इन परिवर्तनों से स्पष्ट है कि भूगोल एक गत्यात्मक विषय है।
3. भूगोल एक अर्न्तविषयक विज्ञान – भूगोल का अध्ययन पृथ्वी तल से सम्बन्धित है और मानव, वनस्पति तथा अन्य प्राणियों के क्रियाकलाप पृथ्वी तल पर ही सम्पन्न होते हैं। अतः इनसे सम्बन्धित अन्य विज्ञानों की सामग्री पृथ्वी तल से जुड़ी होना स्वाभाविक है। इसी कारण प्राकृतिक और मानव विज्ञानों की विषयवस्तु का भूगोल से जुड़ा होना आवश्यक है। हार्टशोर्न के अनुसार भूगोल एक अन्तर्विषयक विज्ञान है। ब्रिटेनिक विश्व कोष के अनुसार भूगोल सभी विज्ञानों की जननी है। हेटनर के अनुसार भूगोल प्राकृतिक और मानवीय दोनों विज्ञान है। डिकिन्सन ने तो माना है कि भूगोल का विषय क्षेत्र अन्य विषयों से अध्यारोपण करता है।
4. भूगोल एक तत्व का नहीं बल्कि तत्वों के समूहन का अध्ययन है – भूगोल में किसी एक कारक का अध्ययन नहीं होता है। अपितु किसी स्थान पर विद्यमान तत्वों की विविधता के समूहन तथा परस्पर निर्भरता का भी अध्ययन होता है। भूगोल में भू-दृश्य के अध्ययन पर विशेष ध्यान दिया गया है। एक भू-दृश्य में तत्वों की विविधता होती है। भूगोल में इन विविध तत्वों के समूहन और उनमें परस्पर निर्भरता का अध्ययन किया जाता है। ब्लाश महोदय ने भूगोल के अध्ययन के उद्देश्य के रूप में इसी बिन्दु को प्रधानता दी है। “
5. भूगोल कार्य-कारण सम्बन्ध का विवेचन करता है- पृथ्वी तल पर विभिन्न प्रदेशों में पाये जाने वाले तत्वों में अन्तर्सम्बन्ध कार्य-कारण के सिद्धान्त पर आधारित होता है। भूगोल में विभिन्न तत्वों का विवेचन करते समय उनके प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए पृथ्वी के घूर्णन का अध्ययन करते समय उससे प्रभावित तत्व का विवेचन करना आवश्यक है। घूर्णन से दिन-रात की अवधि में अन्तर तथा सूर्य ताप की प्राप्ति प्रभावित होती है। पृथ्वी तल पर होने वाली समस्त क्रियाएँ कार्य-कारण का परिणाम होती है। भूगोल में इसका विवेचन होने से भूगोल को विवेचनात्मक विज्ञान भी कहा जाता है।
उपरोक्त बिन्दु भूगोल की प्रकृति को स्पष्ट करते हैं। आजकल भूगोल को एक व्यावहारिक विज्ञान माना जाता है क्योंकि यह मानव की विविध समस्याओं के समाधान में यथा सम्भव सहायता करता । भूगोल संसाधनों की खोज तथा उनके सही उपयोग में सहायता करता है। न्यून विकसित क्षेत्रों की पहचान कर उसके विकास के लिए सुझाव देता है। इस प्रकार भूगोल मानन्द के दैनिक जीवन की समस्याओं के समाधान में सहायता करता है।
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