भूगोल प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानो के मध्य पुल का काम करता है’ इस कथन की समीक्षा कीजिये।
सामान्य दृष्टि से भूगोल में प्राकृतिक व सांस्कृतिक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों की व्याख्या की जाती है। अतः स्पष्ट है कि भूगोल विषय का प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ठ सम्बन्ध होना स्वाभाविक है। प्राकृतिक विज्ञानों में उसका सम्बन्ध भौतिकी, ऋतु विज्ञान, खगोलविज्ञान, प्राणी विज्ञान आदि से है और दूसरी ओर उसका सम्बन्ध इतिहास, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि से है। ये तथा अनेक अन्य विज्ञान उसे वातावरण के विभिन्न अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों की व्याख्या में सहायता देते हैं फिर भी उसका अलग-अलग व्यक्तित्व हैं जो उसके दृष्टिकोण, अवलोकन एवं अध्ययन विधियों में परिलक्षित होता है।
भूगोल एवं भौमिकी- भौमिकी में चट्टानों की उत्पत्ति, वितरण विधि, उनमें पाये जाने वाले खनिजों, पृथ्वी की आन्तरिक संरचना आदि का अध्ययन किया जाता है। इसमें उन शक्तियों का भी अध्ययन होता है जिनके द्वारा पृथ्वी के आन्तरिक भागों या ऊपर अनेक प्रकार के परिवर्तन होते रहते हैं। भूगोल में भी हमें पर्वतों, पठारों, मैदानों, अनेक प्रकार की चट्टानों आदि का बहुपक्षीय अध्ययन करना होता है क्योंकि ये सभी मानव जीवन को प्रत्यक्ष एव परोक्ष रूप से प्रभावित करते है अन्तर इतना है। कि पृथ्वी तल की बनावट में भूगोलवेत्ताओं की विशेष रूचि है। जबकि भौतिकी के विद्वान पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का भी विशद अध्ययन करते हैं। अतः इन दोनों विषयों का घनिष्ठ सम्बन्ध है। बिना भौमिकी के सामान्य ज्ञान के भूगोलवेत्ता भू-पटल की बनावट का विश्लेषण नहीं कर सकते। भौतिकी को भी उन भौगोलिक शक्तियों का अध्ययन करना पड़ता है जिनसे चट्टाने प्रभावित होती हैं। अतः भौतिकी (Geology) की एक शाखा जिसे भौमिक भौमिकी कहते हैं सीधे भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) से सीधी सम्बन्धित हैं।
ऋतु विज्ञान तथा भूगोल- सम्भवतः गणित को छोड़कर कोई भी प्राकृतिक विज्ञान शुद्ध रूप में प्राकृतिक विज्ञान नहीं है। प्रत्येक विज्ञान अन्य विज्ञानों से जुड़ा हुआ होता है। ऋतु विज्ञान स्वयं अपने विषय के लिए गणित तथा भौतिकी पर आश्रित होता है। ऋतु विज्ञान के समान ही भूगोल की एक भौतिक शाखा जलवायु विज्ञान है जो उन्हीं तत्वों का अध्ययन करती है जिनका ऋतु विज्ञान में किया जाता है। किन्तु अन्तर यह है कि जलवायु विज्ञान में जलवायु के भेदों, उनके वितरणों एवं विवरणों पर अधिक बल दिया जाता है जबकि ऋतु विज्ञान में मौसम के प्रत्येक दृश्य विश्लेषण पर बल दिया जाता है। अतः भूगोल का सीधा सम्बन्ध ऋतु विज्ञान से तथा परोक्ष में गणित तथा भौतिकी से स्थापित हो जाता है ऋतु विज्ञान के सिद्धान्तों तथा नियमों का अध्ययन हमें भूगोल की अन्य शाखाओं में भी करना पड़ता है क्यों जीव जंतुओं, वनस्पतियों, मिट्टियों आदि के विकास एवं वितरण में वायु, ताप, वर्षा आदि महत्त्वपूर्ण होते हैं।
खगोल विज्ञान तथा भूगोल- खगोल विज्ञान एक अत्यन्त प्राचीन विज्ञान है इसमें ग्रहों, उल्काओं एवं अन्य आकाशीय दृश्यों का अध्ययन किया जाता है। प्राचीन काल में यूनानियों, भारतीयों तथा मध्यकाल में अरब विद्वानों ने इस विषय में अत्यधिक रूचि दिखायी थी तथा उसका विकास किया था। प्राचीनकाल में खगोल विज्ञान तथा भूगोल में कोई भेद नहीं किया जाता था। जब सारे ब्रह्माण्ड का सामूहिक अध्ययन किया जाता था तब उसे ‘Cosmography’ और जब केवल पृथ्वी का अध्ययन किया जाता था तब उसे ‘Geography’ कहा जाता है।
आज यद्यपि भूगोल की परिभाषा बदल चुकी है उसमें नई प्रवृत्तियाँ प्रविष्ट हो चुकी हैं किन्तु अक्षांश, देशान्तर, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण और मण्डल के ग्रहों तथा उपग्रहों के पारस्परिक सम्बन्ध आज भी भूगोल में अपना महत्त्व रखते हैं। अतः ये दोनों विज्ञान एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
प्राणी विज्ञान तथा भूगोल- प्राणी विज्ञान में जानवरों तथा विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों की उत्पत्ति, विकास, वितरण तथा उनकी किस्मों में संशोधन आदि का अध्ययन होता है। चूंकि जीवधारी तथा उनका वातावरण भूगोल का विषय है। अतः काफी सीमा तक भूगोल जीव विज्ञान से जुड़ा हुआ है। आज भूगोल में Bio Geography तथा Medical Geography का इसी कारण विकास हो रहा है ताकि जीवधारियों पर वातावरण के प्रभावों को ठीक-ठीक समझा जा सके।
भूगोल तथा इतिहास – कुमारी सेम्पुल के यह शब्द कितने मार्मिक हैं “आज तो भूगोल है, कल वही समय के अन्तर से इतिहास बन जाता है।”
काण्ट के अनुसार, “भूगोल ऐतिहासिक घटनाओं की पृष्ठभूमि तैयार करता है। बिना इस पृष्ठभूमि के इतिहास का कोई अस्तित्व स्वीकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक ऐतिहासिक घटना का एक विशिष्ट स्थान तथा वातावरण होता है।”
इतिहास तथा भूगोल का घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने वाले सबसे प्रसिद्ध विद्वान बकिल महोदय थे। उनके अनुसार विश्व का सम्पूर्ण इतिहास मनुष्य तथा प्रकृति की क्रिया-प्रतिक्रियाओं से ओत-प्रोत है। मानव सभ्यता के विकास का इतिहास इन सम्बन्धों से कदापि विच्छेदित नहीं किया जा सकता।
भूगोल तथा राजनीतिशास्त्र – राजनीतिशास्त्र का मुख्य अध्ययन विषय ‘राज्य’ है। इससे सम्बन्धित राजनीतिक संगठन, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय नीति तथा राजनीतिक कार्य इस शास्त्र में आ जाते हैं, परन्तु इनमें से लगभग सभी भौगोलिक तत्त्वों से प्रभावित होते हैं। शासन को अपनी नीति सदैव राष्ट्रीय उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखते हुए अपनानी पड़ती है। राज्य की समृद्धि के लिए सरकार अन्य क्षेत्रों से वस्तुएँ प्राप्त करने में प्रयत्नशील रहती है। यह प्रयत्न दो रूप धारण कर लेता है –
(1) अन्तर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान तथा विनिमय, (2) साम्राज्यवाद।
भूगोल तथा राजनीति का इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि भूगोल के विद्वानों को भी राजनीतिक भूगोल को जन्म देना पड़ा।
भूगोल तथा समाजशास्त्र – साधारण भाषा में भूगोल मनुष्य एवं उसके भौतिक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन है। यह सम्बन्ध क्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं द्वारा सांस्कृतिक वातावरण के रूप में प्रस्फुटित हो जाता है। सांस्कृतिक वातावरण की केन्द्रीय विचारधारा मनुष्य के वातावरण के प्रति समायोजन में निहित है। ‘भारतीय संस्कृति एक विशिष्ट प्रकार की है, भौगोलिक दृष्टि से इसका अर्थ यही है कि मनुष्यों ने अपने आपको यहाँ के वातावरण से समायोजित कर लिया है। अतः ये मनुष्य किसी भी जाति, धर्म या सम्प्रदाय के क्यों न हों, इनमें एक आश्चर्यजनक सांस्कृतिक समानता सी उत्पन्न हो गयी है। प्रो. रॉक्सबी इस मत को स्वीकार नहीं करते हैं।
यद्यपि समाजशास्त्रीय अध्ययन से भौगोलिक अध्ययन बहुत अधिक प्रभावित हुआ है और इसी प्रकार समाजशास्त्र ने भी भौगोलिक वातावरण को अपने अध्ययन में उचित स्थान दिया है, फिर भी इनमें थोड़ा अन्तर विद्यमान हैं।
(1) भूगोल सम्पूर्ण पृथ्वी पर पायी जाने वाली मानव जातियों, समुदायों तथा वर्गों का व्यापक अध्ययन है। समाजशास्त्र इतना व्यापक नहीं है। अतः इसके आदर्श अध्ययन क्षेत्र महानगर, नगर, कस्बा तथा ग्राम हैं।
(2) समाजशास्त्र में उन सभी कारणों का वर्णन किया जाता है जो एक विशिष्ट समाज अथवा सम्प्रदाय पर प्रभाव डालते हैं। भूगोल में केवल भौगोलिक वातावरण और मानवीय क्रियाओं द्वारा मानव समाज को समझाने की कोशिश की जाती है।
समाजशास्त्र भी भूगोल से उतना ही प्रभावित हुआ है, जितना भूगोल समाजशास्त्र से। लीप्ले तथा गिडिस ने समाज तथा सम्प्रदाय पर भौगोलिक परिस्थितियों के अभाव को उचित रूप से मापने की चेष्टा की है। इसी आदान-प्रदान के कारण एक विशिष्ट अध्ययन जिसे हम सामाजिक भूगोल कहते हैं, उत्पन्न हो गया।
भूगोल तथा मानव शास्त्र – मनुष्य जितनी जिज्ञासा अपने आपको जानने में रखता है, शायद ही अन्य किसी वस्तु में रखता हो। मानव शास्त्र मानव प्रजाति से सम्बन्धित है। वह मानव प्रजाति के प्रादुर्भाव से लेकर मानव प्रजाति की संस्कृति एवं सभ्यता तक का एक विशद अध्ययन है। इस विशाल अध्ययन के दो प्रमुख अंग है।
(1) भौतिक मानवशास्त्र (2) सांस्कृतिक एवं सामाजिक मानवशास्त्र ।
सामान्य मानव शास्त्र मानव जातियों के शारीरिक एवं मानसिक गुणों से लेकर संस्कृति तक का अध्ययन करता है। भूगोल में भी हम मानव प्रजातियों तथा उनके अन्य छोटे वर्गों तथा सम्प्रदायों का अध्ययन करते हैं। इस प्रकार मानवशास्त्र तथा भूगोल, विशेषतः मानव भूगोल आरम्भ से ही साथ-साथ हो जाते हैं। भूगोलवेत्ता भी मानव प्रजातियों के प्रादुर्भाव, विकास तथा प्रसार में मानव शास्त्रियों की भांति ही अभिरूचि रखता है।
अर्थशास्त्र तथा भूगोल – व्यापक दृष्टि से अर्थशास्त्र प्राकृतिक साधनों के उचित उपयोग का अध्ययन है। मनुष्य की कुछ आवश्यकताएँ होती हैं। इनकी पूर्ति के लिए वह प्राकृतिक साधनों की ओर देखता है, उन्हें उपलब्ध करता है तत्पश्चात् उनका वितरण विनिमय और अन्त में उपभोग करता है इस प्रकार मनुष्य की आवश्यकताएँ मनुष्य तथा प्राकृतिक साधनों को एक सूत्र में बाँध देती है। प्राकृतिक साधनों द्वारा मनुष्य की जो आवश्यकताएँ पूरी हो जाती हैं वे केवल भौतिक आवश्यकताएँ हैं, परन्तु मनुष्य की कुछ और आवश्यकताएँ भी हैं, जैसे सरकार, राज्य, शिक्षा, विज्ञान तथा कला आदि। आर्थिक साधन हमारी दोनों भौतिक तथा उच्च आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, अतः अर्थशास्त्र एवं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सामाजिक विज्ञान है।
अर्थशास्त्र एवं भूगोल का सामान्य दृष्टि से घनिष्ठ सम्बन्ध वहाँ हो जाता है, जहाँ भौतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण के अंग आर्थिक साधन बन जाते हैं। उदाहरणार्थ न्याग्रा जल प्रपात उस समय तक केवल प्राकृतिक सौन्दर्य का ही दृश्य था जब तक उससे जलविद्युत का निर्माण नहीं किया गया था, जैसे ही इससे औद्योगिक शक्ति उत्पन्न हो जाने लगी, वह एक आर्थिक साधन बन गया। वातावरण के जो अंग आर्थिक महत्त्व नहीं रखते हैं, अर्थशास्त्र में उनका महत्त्व नहीं होता। यह आर्थिक साधन जो अर्थशास्त्र के अध्ययन के विषय हैं, भूगोलवेत्ताओं के लिए भी उतने ही महत्त्वपूर्ण विषय हैं और इनका अध्ययन विशेष रूप से आर्थिक तथा वाणिज्यिक भूगोल में किया जाता है। आर्थिक भूगोल का अध्ययन हमें बताता है कि हमारे कौन-कौन से आर्थिक साधन हैं, वे किस प्रकार प्राकृतिक वातावरण से प्रभावित होते हैं, किस प्रकार हम इन प्राकृतिक साधनों को प्राप्त कर सकते हैं, किस प्रकार इन्हें संरक्षण प्रदान कर सकते हैं तथा किस प्रकार उनका उचित उपभोग कर सकते हैं।
आर्थिक कार्य जो अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आते हैं, वे सभी अवस्थाओं में भौगोलिक वातावरण के अंगों को प्रभावित होते रहते हैं। स्पष्ट है कि भूगोल तथा अर्थशास्त्र का एक दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है।
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