भूगोल विषय की मानव के दैनिक जीवन में उपादेयता या महत्व को स्पष्ट कीजिये।
भूगोल एक गत्यात्मक विज्ञान है जिसकी प्रकृति, उद्देश्य, विषयवस्तु और विधियों में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। इसी कारण यह एक सजीव, सक्रिय और प्रगतिशील विज्ञान के रूप में मान्य है। यह एक एकाकी विषय न होकर अन्तरा अनुशासक विषय के रूप में मान्य है। यह एक महत्वपूर्ण जो प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञानों के मध्य एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। इसीलिए इस विषय में भौतिक और सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्वों में परस्पर चलने वाली प्रक्रियाओं और उनके प्रभावों का अध्ययन होता है। वर्तमान युग में मानव को अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। भूगोल ही एक मात्र ऐसा विषय है जो समस्याओं के समाधान में सहायता करने में सक्षम है। मानव के लिए भूगोल की उपादेयता निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है।
1. प्राकृतिक संसाधनों की खोज और उनके उपयोग में सहायक – संसाधनों का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। संसाधन पर्यावरण की वे विशेषताएँ है जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम मानी जाती है। कोई भी तत्व, पदार्थ या वस्तु उसी दशा में संसाधन होती है जबकि उस में मानव की आवश्यकता पूर्ति की क्षमता होती है। संसाधन भौतिक एवं जैविक दो प्रकार के होते है। भूमि, मृदा, जल, खनिज, शक्ति के स्रोत आदि भौतिक संसाधन हैं जबकि मानव, पशु-पक्षी और वनस्पति जैविक संसाधन है। भूगोल इन संसाधनों की खोज में मानव की सहायता करता है। इतना ही नहीं इनसे निर्मित वस्तुओं के उपयोग के लिए बाजार का ज्ञान भी भूगोल करवाता है।
2. उर्वरक मृदा और फसलों के चयन में सहायक- मिट्टी पर्यावरण के भौतिक तत्वों में से एक महत्वपूर्ण तत्व है जो कृषि उपजों के उत्पादन में विशेष योगदान देता है। मिट्टी की संरचना तथा उसके प्रकारों का अध्ययन भूगोल विषय के क्षेत्र में सम्मिलित है। भूगोल मिट्टियों के प्रकार तथा उनकी उर्वरता पर प्रकाश डालता है। इसी प्रकार किसी फसल के उत्पादन में मिट्टी के अतिरिक्त जलवायु के कारक भी प्रभावी होते है। प्रत्येक फसल को उगने के लिए निश्चित तापमान और वर्षा जल की आवश्यकता होती है। चूंकि भूगोल से विश्व के सभी प्रदेशों की जलवायु दशाओं का ज्ञान होता है, अत: इस ज्ञान से किसी स्थान पर उगाने के लिए फसलों का चयन करने में सहायता मिलती है।
3. मानव निवास योग्य स्थानों के चयन में सहायता- मानव की तीन आवश्यक आवश्यकताओं में से एक आवश्यकता निवास संबंधी है। मानव हर प्रकार के भूतल पर निवास नहीं कर सकता है। निवास का चयन करते समय मानव को अनेक बिन्दुओं पर विचार करना पड़ता है जैसे पीने के लिए शुद्ध जल की उपलब्धता, आवागमन के साधनों से स्थान का जुड़ाव, कार्य स्थल की दूरी, जलवायु दशाएँ, हवा का प्रवाह तथा गति, बाढ़ के प्रकोप से सुरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं से स्थान का ग्रसित होना आदि। भूगोल इन सभी कारकों पर प्रकाश डालकर निवास योग्य भूमि के चयन में मानव की सहायता करता है।
4. प्राकृतिक और सामाजिक आपदाओं के समाधान में सहायता- भूगोल की अनेक शाखाएँ है जिनमें भौतिक भूगोल, भू-आर्थिक भूगोल और सामाजिक सांस्कृतिक भूगोल दोनों प्रकार की आपदाओं का अध्ययन करके उसके समाधान में मानव की सहायता करते है। प्राकृतिक आपदाओं में भूकम्प का आना, ज्वालामुखी विस्फोट, आँधी-तूफान आना, सुनामी लहरों की उत्पत्ति, चट्टानों का फिसलकर गिरना, बाढ का आना आदि सम्मिलित है। सामाजिक आपदाओं में सामाजिक विघटन, उभनिवेष स्थापित , लोकतांत्रिक से राजशाही में बदलना आदि घटनाएँ है। भूगोल का ज्ञान करना, इन आपदाओं के कारणों का विश्लेषण करके उनके समाधान में सहायता करता है।
5. उद्योगों के लिए उपयुक्त स्थिति का चयन उद्योग- चाहे जहाँ स्थापित नहीं किये जा सकते हैं। औद्योगिक विकास के लिए उद्योगों की उपयुक्त स्थिति आवश्यक है। आर्थिक भूगोल और औद्योगिक भूगोल में उद्योगों की स्थिति का विश्लेषण करके उनकी स्थिति के चयन में सहायता पहुँचाई जाती है। स्थिति को कच्चे माल की प्रकृति तथा शक्ति के साधन अधिक प्रभावित करते है। इनके अतिरिक्त समतल धरातल, परिवहन के साधनों द्वारा स्थान का जुड़ाव, श्रमिकों की उपलब्धता, जल की आपूर्ति आदि कारक भी स्थिति को प्रभावित करते हैं।
6. भूमि उपभोग सर्वेक्षण द्वारा भूमि की उपादेयता में वृद्धि – भूगोल की एक शाखा कृषि भूगोल और दूसरी शाखा नगरीय भूगोल में भूमि उपभोग सर्वेक्षण पर बल दिया जाता है। कृषि भूगोल भूमि उपयोग सर्वेक्षण द्वारा यह निर्धारित करता है कि भूमि का कौनसा भाग किस फसल के लिए उपयुक्त है। नगरीय भूगोल में भूमि उपभोग सर्वेक्षण द्वारा निश्चित होता है कि नगरीय कार्यों के लिए भूमि का कौनसा भाग उपयुक्त होगा।
7. पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान – भूगोल की शाखा मानव भूगोल में मानव और पर्यावरण के संबंधों का अध्ययन होता है। भूगोल पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में सहायता करता है। 8. नगरीय नियोजन में सहायता करना- नगरों के विकास के लिए नियोजन आवश्यक है। इसके लिए नगर नियोजक मास्टर प्लान बनाते है। यह कार्य बिना भौगोलिक ज्ञान के सम्भव नहीं है।
9. प्रादेशिक नियोजन में सहायक – भूगोल प्रदेशों के आर्थिक विकास के नियोजन में भी सहायता करता है। भूगोल के द्वारा पिछड़े प्रदेशों की पहचान कर उनके विकास की योजना बनाने में सहायता की जाती है।
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