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मजदूरी भुगतान की एक आदर्श पद्धति की विशेषताएं | Features of an ideal method of wage payment in Hindi

मजदूरी भुगतान की एक आदर्श पद्धति की विशेषताएं | Features of an ideal method of wage payment in Hindi
मजदूरी भुगतान की एक आदर्श पद्धति की विशेषताएं | Features of an ideal method of wage payment in Hindi
मजदूरी भुगतान की एक आदर्श पद्धति की विशेषताएं बताइये।

मजदूरी भुगतान की एक आदर्श पद्धति की विशेषताएं (Characteristics of An Ideal System of Wage Payment) — ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

( 1 ) सरलता (Simplicity) — पारिश्रमिक भुगतान की पद्धति सरल होनी चाहिए। जिससे श्रमिक अपनी मजदूरी की गणना आसानी से कर सके, साथ ही नियोक्ता को भी पारिश्रमिक की गणना में कठिनाई न हो।

(2) दोनों पक्षों के लिए लाभदायक (Profitable for both the Parties) — मजदूरी भुगतान पद्धति ऐसी होनी चाहिए, ताकि उत्पादन लागत कम से कम हो तथा श्रमिकों को आधारभूत दरों (Minimum Wage) से अधिक पारिश्रमिक मिल सके। इससे जहाँ एक ओर से नियोक्ता को अधिक लाभ प्राप्त होगा, वहीं श्रमिकों को आकर्षक मजदूरी मिलने से उनका जीवन-स्तर ऊँचा उठेगा।

( 3 ) लोचनीयता (Flexibility) — मजदूरी भुगतान पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे परिस्थिति अनुसार उसमें परिवर्तन लाया जा सके।

( 4 ) मितव्ययी (Economy) – मजदूरी भुगतान पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे संस्था को लिपिक बगैरह पर अधिक व्यय करने की आवश्यकता नहीं पड़े तथा प्रति इकाई श्रम लागत कम आये।

(5) प्रेरणात्मक (Incentive) — मजदूरी भुगतान प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिससे श्रमिकों को अधिक कार्य करने तथा अधिक पारिश्रमिक पाने की प्रेरणा मिल सके।

( 6 ) न्यूनतम मजदूरी की गारण्टी (Guarantee of Minimum Wage)- मजदूरी भुगतान पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे श्रमिकों को एक न्यूनतम मजदूरी अवश्य मिल सके और वे निश्चित होकर कार्य का निष्पादन कर सकें।

(7) तत्काल भुगतान (Immediate Payment) – मजदूरों को उनकी मजदूरी एक निश्चित समय पर अवश्य मिल जानी चाहिए अन्यथा उनमें असन्तोष की भावना फैल जायगी।

( 8 ) किस्म सुधारन में सहायक (Helpful in improving the Quality of the Product) — भुगतान पद्धति ऐसी होनी चाहिए, ताकि श्रमिकों में सन्तोष व्याप्त हो और वे उच्च किस्म उत्पाद (Product) तैयार कर सके।

(9) कार्यक्षमता पर आधारित (Based on Efficiency)- जब कुशल एव अकुशल श्रमिकों को एक ही दर से मजदूरी दी जाती है तो कुशल श्रमिकों में असन्तोष की भावना पैदा हो जाती है और वे कार्य के प्रति उदासीन होने लगते है जिसमें उत्पादन घटता है तथा उत्पादन लागत में वृद्धि होती है। अतः मजदूरी भुगतान करने के क्रम में श्रमिकों की व्यक्तिगत कार्यक्षमता को अवश्य ही ध्यान में रखा जाना चाहिए।

(10) समायनता और न्याय पर आधारित (Based on Equality and Justice) — मजदूरी भुगतान की पद्धति समानता और न्याय के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए अर्थात् एक ही प्रकार के कार्य के लिए विभिन्न श्रमिकों को समान (Equal) मजदूरी मिलनी चाहिए (बशर्ते उनकी कार्यक्षमता समान हो)

(11) स्थायी एवं निश्चित आधार (Fixed and Certain Base) — यहाँ स्थायी का आश्य यह नहीं है कि श्रमिकों को हमेशा एक ही दर से मजदूरी मिलनी चाहिए बल्कि “भुगतान पद्धति स्थायी होनी चाहिए, ऐसा नहीं कि कभी समयानुसार तो कभी कार्यानुसार ऐसा करने से जहाँ की हिसाब-किताब करने में कठिनाई होगी, वही श्रमिकों में अविश्वास की भावना व्याप्त हो जायेगी।

(12) श्रमिकों को प्रबन्ध में भाग (Worker’s Participation in Management) – पारिश्रमिक भुगतान की पद्धति ऐसी होनी चाहिए जिससे शंकर की स्थिति में यदि श्रमिक चाहे तो अपने प्रतिनिधि के माध्यम से लेखा-पुस्तकों की जाँच कर सके।

(13) श्रम-निकासी कम-से-कम होना (Low Rate of Labour Turnover ) – किसी भी संस्था में श्रम-निकासी दर जितनी ही अधिक होती है, श्रमिकों में उतनी ही असन्तोष की भावना झलकती है। दूसरी ओर न्यूनतम श्रम निकासी दर श्रमिकों में सन्तोष का प्रतीक माना जाता है। अतः मजदूरी भुगतान प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जिससे संस्था में न्यूनतम श्रम-निकासी हो।

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Anjali Yadav

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