मानव भूगोल को परिभाषित कीजिये।
व्यापक रूप में भूगोल की प्रधानतः दो शाखाएँ भौतिक भूगोल और मानव भूगोल के रूप में स्वीकार की गई। प्रारम्भ में भूगोल का अध्ययन स्थल रूपों, नदियों, सागरों, महाद्वीपों तक ही सीमित था। विद्वानों ने भूगोल के स्वरूप की आलोचना करनी प्रारम्भ की। उनकी आलोचना का आधार था कि इस अध्ययन से क्या लाभ है जब तक कि यह अध्ययन मानव के सन्दर्भ में न हो। इसी विचारधारा ने मानव भूगोल को जन्म दिया। मानव भूगोल ऐसा विज्ञान है जिसमें पृथ्वीतल पर मानवीय तथ्यों को स्थानिक वितरणों का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल को परिभाषित करते हुए कुमारी सैम्पुल ने लिखा है कि ‘मानव भूगोल अस्थायी पृथ्वी और चंचल मानव के पारस्परिक परिवर्तनशील सम्बन्धों का अध्ययन है।’ एल्सवर्थ इंटिगटन के अनुसार, ‘मानव भूगोल में भौगोलिक वातावरण तथा मानवीय क्रियाओं और गुणों के पारस्परिक सम्बन्धों के वितरण और स्वरूप का अध्ययन होता है।’ जीन ब्रून्स ने लिखा है ‘वे समस्त दृश्य जिनमें मानवीय क्रियाएँ काम करती है, हमारी पृथ्वी के तल पर एक विशेष वर्ग के दृश्य होते हैं और इस प्रकार के भौगोलिक तथ्यों के अध्ययन को मानव भूगोल कहते हैं।’ उपरोक्त परिभाषाओं के विवेचन से स्पष्ट है कि मानव भूगोल में विभिन्न प्रदेशों के भौतिक वातावरण तथा मानव समूहों के पारस्परिक कार्यात्मक सम्बन्धों का अध्ययन होता है। सभी विद्वानों के विचारों में मतभेद होते हुए भी उनमें मानव भूगोल के अर्थ के बारे में यह समानता मिलती है कि मानव भूगोल मानव और उसके भौगोलिक वातावरण के अन्तर्सम्बन्धों से उत्पन्न प्रारूपों का अध्ययन स्थानिक भिन्नता के आधार पर करता है। इसमें मानव के अपने वातावरण के साथ अनुकूलन और समायोजन तथा आवश्यकतानुसार परिवर्तन करने का अध्ययन किया जाता है।
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