मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? भूगोल शिक्षण के मूल्यांकन में प्रयुक्त होने वाली प्रविधियों का वर्णन कीजिये।
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मूल्यांकन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definitions of Evaluation)
मूल्यांकन शैक्षिक प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है, और शिक्षा के साथ वह सतत् प्रक्रिया के रूप में सदैव ही विद्यमान रहता है। मूल्यांकन के अभाव में हमारी समस्त प्रक्रिया महत्वहीन बन जाती है। इसके द्वारा हम छात्रों को उनकी सफलता या विपुलता या उपलब्धि स्तर का ज्ञान करवा सकते है। वास्तव में देखा जाएं तो मूल्यांकन व्यवहार परिवर्तन की एक प्रक्रिया है और यह परिवर्तन सदैव ही सकारात्मक दृष्टि से किया जाता । मूल्यांकन का सम्बोधन बहुत ही नवीन सम्बोधन है और वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में इसकी आवश्यकता शिक्षा प्रणाली में प्रचलित परीक्षा पद्धतियों की कमी के कारण पड़ी है।
विद्वानों द्वारा दी गई मूल्यांकन की परिभाषा इस प्रकार हैं-
1. मौफात के अनुसार- “मूल्यांकन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, और यह छात्रों की औपचारिक शैक्षिक उपलब्धि से अधिक है। यह व्यक्ति के विकास में अधिक रूचि रखती है। यह व्यक्ति के विकास को उसकी भावनाओं, विचारों तथा क्रियाओं से संबंधित वांछनीय व्यवहार परिवर्तनों के रूप में व्यक्त करता है।”
2. वैस्ले के अनुसार, “मूल्यांकन एक समावेशित धारणा है, जो इच्छित परिणामों के गुण, महत्त्व तथा प्रभावशीलता का निर्णय करने के लिए समस्त प्रकार के प्रयासों एवं साधनों की ओर संकेत करता है। यह वस्तुगत प्रमाण तथा आत्मगत निरीक्षण का मिश्रण है। यह सम्पूर्ण एवं अन्तिम अनुमान है। यह नीतियों के रूप, परिवर्तनों एवं भावी कार्यक्रमों के लिए महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक पथ प्रदर्शक है।”
3. माध्यमिक शिक्षा प्रसार कार्यक्रम निदेशालय के अनुसार, “मूल्यांकन का सम्बन्ध सम्पूर्ण शिक्षा कार्य से है। इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षण में सुधार करना है, यह उन कार्यक्रमों का पता लगाने (अभिवृत्ति, स्वभाव, कौशल, बोध, सौन्दर्यात्मक) में समर्थ है, जिसका सम्बन्ध छात्र के विकास से होता है। “
4. माइकेलिस के अनुसार, “मूल्यांकन उद्देश्य की प्राप्ति की सीमा का निर्धारण करने वाली प्रक्रिया है। इसमें निर्देश के परिणामों को जांचने के लिए शिक्षक, बालकों, प्रधानाचार्य तथा विद्यालय के अन्य कर्मचारियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली सब सम्मिलित हैं।”
5. राइट स्टोन के अनुसार, “मूल्यांकन वह नवीन प्राविधिक है जो मापन के व्यापक प्रत्यय को प्रस्तुत करता है।”
6. जे.एम.ली. के अनुसार, “मूल्यांकन विद्यालय, कक्षा तथा स्वयं के द्वारा निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति करने के सम्बन्ध में छात्रों की प्रगति की जांच है। मूल्यांकन का मुख्य प्रयोजन छात्रों की सीखने की प्रक्रिया को अग्रसर एवं निर्देशित करना है। इस प्रकार मूल्यांकन एक नकारात्मक प्रक्रिया न होकर सकारात्मक प्रक्रिया है।”
7. कोठारी आयोग के अनुसार, “मूल्यांकन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया – है। यह समस्त शिक्षा क्रम का महत्त्वपूर्ण अंग है और इस प्रकार इसका शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है।”
भूगोल शिक्षण में प्रचलित मूल्यांकन प्रविधियाँ या तकनीकियाँ (Evaluation Methods or Techniques used in Hindi Teaching)
शिक्षा विशेषज्ञों ने विभिन्न उद्देश्यों के मूल्यांकन के लिए विभिन्न प्रविधियों (तकनीकों) की खोज की है। मूल्यांकन की प्रविधि को निम्नलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
(अ) मूल्यांकन की विवरणात्मक प्रविधियाँ
मूल्यांकन की विवरणात्मक प्रविधियों में निम्नलिखित प्रविधियाँ प्रमुख है-
( 1 ) निरीक्षण प्रविधि :- इस प्रविधि के द्वारा छात्रों के व्यवहार, क्रियाओं, संवेगात्मक तथा बौद्धिक परिपक्वता तथा सामाजिक व्यवस्थापन के संबंध में प्रमाण प्रदान किए जाते हैं। यह प्रविधि आदतों तथा कुशलताओं के विकास को जाँचने के लिए भी उपयोगी है। सतर्कता एवं क्रमबद्ध रूप से किया गया निरीक्षण छात्रों के संबंध में उपयुक्त निर्णय करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
( 2 ) प्रश्नावली :- छात्रों से उनकी स्वयं की रूचियों एवं अभिवृत्तियों के विकास से संबंधित तथा अन्य प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए प्रश्नावली एक सरल तथा उपयोगी प्रविधि है।
( 3 ) साक्षात्कार :- विद्यालय में मूल्यांकन के लिए साक्षात्कार एक महत्त्वपूर्ण प्रविधि है। इसको केवल सूचना संग्रह करने वाली प्रविधि के रूप में नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसके द्वारा छात्र के व्यवहार का निदान एवं व्यक्ति की निष्पति का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
(ब) परीक्षणात्मक मूल्यांकन प्रविधियाँ :-
परीक्षणात्मक मूल्यांकन प्रविधियों को मोटे रूप से दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-
(1) गुणात्मक परीक्षाएँ और (2) परिमाणात्मक परीक्षाएँ।
(1) गुणात्मक परीक्षाएँ (Qualitative Tests)
गुणात्मक परीक्षाओं का उद्देश्य छात्रों का निरन्तर सुधार करना होता है। यह छात्रों को उनकी वास्तविक स्थिति से ऊँचा उठाने का प्रयत्न करते हैं। इसमें हम निम्नलिखित परीक्षणों का प्रयोग करते हैं-
(अ) पड़ताल सूचियाँ (Check Lists) –
पड़ताल सूची कुछ चुने हुए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों या अनुच्छेदों की एक सूची है, जिसके आगे निरीक्षक (✓) इस प्रकार का चिन्ह लगा देता है जो निरीक्षण की उपस्थिति या अनुपस्थिति का सूचक होता है। अध्यापक छात्रों के समक्ष कुछ कथन प्रस्तुत करता है और उनका उत्तर हाँ या नहीं में देने को कहा जाता है। बालक द्वारा दिए गए उत्तरों की जाँच अध्यापक करता हैं तथा छात्र की रूचि, अभिवृत्ति आदि के संबंध में जानकारी करता है।
(ब) क्रम-निर्धारण मान (Rating Scale)
क्रम निर्धारण मान में कुछ चुने शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों, अनुच्छेदों की सूची होती है, जिसके आगे निरीक्षण मूल्यों के किसी वस्तुनिष्ठ मान के आधार पर कोई मूल्य या क्रम अंकित करता है। इसके द्वारा छात्रों की किसी के संबंध में निर्णय करने की क्षमता को मापा जाता है।
(स) अभिलेख (Records)
छात्रों की डायरियाँ, शिक्षकों द्वारा तैयार किए गए घटनावृत्त (Anecdotal Records) तथा संचित अभिलेख पत्र (Cumulative Records) भी मूल्यांकन की महत्त्वपूर्ण प्रविधियाँ हैं, यथा
(i) छात्रों की डायरियाँ :- ये छात्रों की रूचियाँ, अभिवृत्तियां, व्यक्तिगत एवं सामाजिक, समस्याओं आदि पर पर्याप्त रूप से प्रकाश डालती है।
(ii) घटना आलेख:- इसमें छात्रों के व्यवहार से संबंधित घटनाओं व कार्यों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। प्रस्तुत करने का आधार अध्यापक द्वारा किया जाने वाला निरीक्षण होता है। निरीक्षणकर्ता छात्रों की रूचियों एवं झुकावों को इनमें लिखता जाता है और तत्पश्चात् छात्रों के संबंध में सामान्यीकरण किया जा सकता है तथा छात्रों की कमजोरियों के संबंध में अध्यापक उन्हें निर्देशन देता है।
(iii) संचित अभिलेख (Cumulative Records ) :- संचित अभिलेख पत्र छात्रों के निर्देशन के लिए आवश्यक सूचना को लेखबद्ध करने, फाइल बनाने तथा उसका उपयोग करने की एक विधि है। प्रत्येक विद्यालय में संचयी अभिलेख में छात्रों के संबंध में सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जाता है। अध्यापक द्वारा छात्रों द्वारा की गई प्रगति के साथ-साथ उनकी कमजोरियों का भी आलेख किया जाता है। इस तरह छात्र के शैक्षिक, मानसिक, शारीरिक तथा संवेगात्मक संचित विकास की व्यक्तिगत सूची प्रदान करता है। इस अभिलेख पत्र द्वारा छात्रों की विभिन्न दिशाओं में हुई प्रगति एवं अवनति के विषय में ज्ञान प्रदान किया जाता है।
( 4 ) छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुएँ (Pupils Products) – छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुएँ भी उनके व्यवहार एवं रूचि संबंधी सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण साधन प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, चित्रकला की कृत्तियाँ छात्रों की कुशलता के विषय में पर्याप्त प्रमाण प्रदान करती है।
( 2 ) परिमाणात्मक परीक्षाएँ (Quantitative Tests)
इस विधि में छात्रों की उपलब्धि के संबंध में निश्चित अंक प्रदान किए जाते हैं। इसमें हम निम्नलिखित परीक्षणात्मक परीक्षाओं को शामिल करते हैं।
(1) प्रयोगात्मक परीक्षा (Practical Examination) – यह वह माध्यम है जिसमें छात्र अपनी व्यावहारिक दक्षता को प्रस्तुत करता है। परीक्षण के दौरान किसी विशेष क्षेत्र कला, संगीत आदि में किया जाता है।
(2) मौखिक परीक्षा (Orel Examination) – इस प्रविधि का प्रयोग पढ़ने की योग्यता, उच्चारण, सूचनाओं की जाँच तथा लिखित परीक्षा के पूरक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा छात्रों के व्यक्तिगत गुणों एवं अवगुणों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसमें छात्र परीक्षक के समक्ष उसके प्रश्नों का उत्तर देता है जिससे परीक्षक उसके आत्मविश्वास, अभिव्यंजना शक्ति आदि की जाँच करे लेता है।
( 3 ) लिखित परीक्षा (Written Examination) सामान्यतः विद्यालयों में परीक्षा के इस रूप का प्रचलन है। इससे छात्रों की लेखन अभिव्यक्ति, लेखन क्षमता, लेखन गति की जाँच की जाती है। इसमें कार्य समर्पण, प्रतिवेदन लिखना, प्रश्नों के उत्तर लिखना एवं कागज-पैंसिल परीक्षाएँ आती हैं। कागज-पैंसिल परीक्षाएँ छात्रों की ज्ञान प्राप्ति एवं पाठ्य-वस्तु को संगठित एवं व्याख्या करने की योग्यता आदि की जाँच करने में बहुत उपयोगी है। लिखित परीक्षाओं के तीन रूप निम्न हैं-
(i) निबंधात्मक प्रश्न, (ii) लघूत्तरात्मक प्रश्न, (iii) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(i) निबंधात्मक प्रश्न (Essay type Question) :- यह परीक्षा प्रणाली लिखित, परम्परागत एवं विषय निष्ठ होती हैं। इसमें छात्रों को निश्चित समय में प्रश्नों का उत्तर निबंध के रूप में देना होता है। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों की लिखित अभिव्यक्ति, सुलेख व भाषा-शैली का मापन करना होता है।
(ii) लघूत्तरात्मक प्रश्न (Short type Question) :- इन प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त रूप में प्राय: 50 शब्दों में दिए जाते हैं। ये प्रश्न छात्रों की अभिव्यक्ति की जाँच के साथ वस्तुपरकता की दृष्टि से भी उपयुक्त रहते हैं।
(iii) वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Question) :- वस्तुनिष्ठ परीक्षण वह परीक्षण है जिसमें विभिन्न अंकन करने वाले स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करके एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं या किसी कार्य के लिए एक से अधिक अंक प्रदान करते हैं। ये परीक्षाएँ प्रायः एकान्तर प्रत्युत्तर, बहुनिर्वचन, तुलना या रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्नों पर आधारित होती हैं और सहीं उत्तरों की कुंजी के द्वारा जाँच की जाती है। यदि कोई उत्तर कुँजी के विपरीत है, तो उसे अशुद्ध माना जाता है।
वस्तुनिष्ठ जाँच दो प्रकार की होती है। यथा-
(क) प्रमापीकृत वस्तुनिष्ठ जाँच :- प्रमापीकृत जाँच को प्रमापीकृत करके दिया जाता है और इसका प्रयोग सामान्य रूप से किया जाता है। प्रमापीकृत वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का निर्माण विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है।
(ख) अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ जाँच :- इनका निर्माण अध्यापक द्वारा विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है। इसलिए इनका प्रयोग सामान्य रूप से नहीं किया जाता है, बल्कि इनका प्रयोग विशेष स्थानों पर विशेष परिस्थितियों में किया जा सकता है।
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